बरेली का हालिया बवाल महज़ एक स्थानीय विवाद भर नहीं है, बल्कि यह उस गहरी साजिश और कट्टरपंथी राजनीति का प्रतीक है जो धर्म और भावनाओं की आड़ में समाज और राज्य की स्थिरता को चुनौती देती रही है। नया खुलासा यह बताता है कि इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) प्रमुख मौलाना तौकीर रजा के बेहद भरोसेमंद डॉ. नफीस और उनके साथी केवल उकसाने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि भीड़ को संगठित कर हिंसा में झोंकने का काम किया।
नफीस और नदीम का नेटवर्क
बवाल के केंद्र में खड़े डॉ. नफीस की भूमिका साफ़ है। वह न केवल आईएमसी की रणनीति तय करता था, बल्कि शहर के भीतर अपने ठिकाने से पूरे घटनाक्रम को संचालित करता था। नगर निगम द्वारा सील की गई उसकी मार्केट और आईएमसी दफ़्तर इस बात के प्रतीक हैं कि धार्मिक नेतृत्व और अवैध कारोबार अक्सर एक-दूसरे के सहारे फलते-फूलते हैं। वहीं, मौलाना तौकीर का खास गुर्गा नदीम पुलिस का वायरलेस सेट छीनकर ले गया। यह महज़ गुंडागर्दी नहीं, बल्कि राज्य के सुरक्षा ढांचे को बाधित करने की सोची-समझी चाल थी। पुलिस की गोपनीय सूचनाएँ सुनना और टीमों के बीच संवाद तोड़ना, किसी भी शहर को अराजकता में धकेल सकता था।
धार्मिक भावनाओं की आड़
विवाद की जड़ “आई लव मोहम्मद” पोस्टर उतारने से जुड़ी है। इस नारे के जरिए सड़कों पर भीड़ जुटाना और पुलिस को खुली धमकियां देना बताता है कि भावनाओं को हथियार बनाकर लोकतांत्रिक ढांचे को चुनौती देने की आदत पुख़्ता हो चुकी है। यह महज़ धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि राज्य की संप्रभुता के ख़िलाफ़ खड़ी की गई सुनियोजित लामबंदी थी।
प्रशासन की सख्ती और संदेश
इस बार राज्य के प्रशासन ने कोई ढिलाई नहीं दिखाई। 31 से अधिक गिरफ्तारियां, आईएमसी जिलाध्यक्ष सादिक तक की गिरफ्तारी, अवैध मार्केट पर ताला और एसआईटी की गठन—ये सारे कदम यह संदेश देते हैं कि लोकतंत्र में असहमति की जगह है, लेकिन हिंसा और अराजकता की नहीं। विशेष जांच दल की कार्यवाही इस मामले की गहराई तक जाएगी और नेटवर्क की जड़ें उजागर करेगी।
दिलचस्प बात यह है कि इसी दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने साफ कहा—”नबी के प्रति प्यार दिलों में होना चाहिए, सड़कों पर नहीं।” यह कथन उस भारतीय मुस्लिम समाज की आवाज़ है जो हिंसा और भीड़तंत्र के बजाय आस्था को व्यक्तिगत आचरण और शांति से जोड़ता है। यह अंतर बताता है कि कट्टरपंथी नेता पूरे समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि अपने स्वार्थ और सत्ता की भूख में मुसलमानों को ढाल बनाते हैं।
साफ शब्दों में कहें तो बरेली का बवाल एक चेतावनी है कि कानून और व्यवस्था को चुनौती देने वाले चाहे किसी भी धार्मिक या राजनीतिक चोले में आएं, राज्य को सख़्ती से निपटना होगा। भारत का लोकतंत्र और उसकी संप्रभुता भीड़ के हाथों बंधक नहीं बन सकती। यह भी उतना ही स्पष्ट है कि धार्मिक उन्माद फैलाने वाले संगठनों की सियासत को तभी रोका जा सकता है जब आम नागरिक और समुदाय खुद आगे आकर कट्टरपंथ से दूरी बनाएं।
बरेली की घटना यह साबित करती है कि भारत के भीतर लोकतांत्रिक अधिकारों के नाम पर हिंसा की राजनीति अब और बर्दाश्त नहीं होगी। यह केवल एक शहर की लड़ाई नहीं, बल्कि उस भारत की आत्मा की रक्षा है, जो कानून, संविधान और राष्ट्रीय एकता पर टिकी हुई है।