बाल विवाह कोई छाटी बात नहीं है, यह बच्चों की पूरी ज़िंदगी बदल देता है। जब कोई लड़की या लड़का अपने बचपन में ही शादी के बंधन में बंध जाता है, तो उसकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है, उनके सपने अधूरे रह जाते हैं और उनके स्वास्थ्य पर भी गहराऔ असर पड़ता है। बहुत बार यह मानसिक दबाव और घरेलू हिंसा तक ले जाता है। बच्चे बचपन में ही जिम्मेदारियों और चुनौतियों के बोझ तले दब जाते हैं। यही वजह है कि बाल विवाह को रोकना सिर्फ कानून का मामला नहीं, बल्कि समाज की जिम्मेदारी है।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति
भारत ने इस दिशा में हाल के वर्षों में क़ाबिले तारीफ़ सफलता हासिल की है। 2023 से अब तक लगभग 4 लाख बाल विवाह रोके गए हैं। 1 नवंबर, 2007 को बाल विवाह निरोधक कानून लागू हुआ था, जिसके बाद से यह सबसे बड़ा आंकडा है। अगर पिछले कुछ सालों (2019–2021) की बात करें, तो हर साल लगभग 1 लाख बाल विवाह होते थे, यानी बच्चों का जीवन खतरे में पड़ता था। अब सरकार और एनजीओ मिलकर बच्चों को बचाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, जिससे अब बाल विवाह की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की रिपोर्ट ‘टिपिंग पॉइंट टू जीरो: एविडेंस टूवर्ड्स अ चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ में बताया गया है कि पिछले 3 साल में बाल विवाह में 69% की कमी आई है। यह एक ऐसा संकेत है कि अगर सही दिशा में लगातार कदम उठाए जाएँ तो इस सामाजिक कुरीति को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
अलग-अलग राज्यों में तुलना
कुछ राज्यों में बदलाव और भी स्पष्ट है। असम में नो टॉलरेंस नीति लागू करने के बाद बाल विवाह 84% तक घट गए। महाराष्ट्र और बिहार में बाल विवाह की घटनाएँ लगभग 70% कम हुईं, राजस्थान में 66% की कमी आई और कर्नाटक में यह संख्या 55% तक घट गई। ये आंकड़े दिखाते हैं कि नीति और जागरूकता से समाज में बड़ा बदलाव संभव है।
सक्रियता और पहल
इस काम के पीछे जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन और अन्य संगठनों की मेहनत और योजना की भूमिका अहम रही है। 2023 में 257 ऐसे जिले चिन्हित किए गए, जहाँ बाल विवाह की दर 23% से अधिक थी। इसके लिए 270 संगठन जुड़े और हर संगठन को एक जिले के 50 गांवों में सिर्फ 6 बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी दी गई। हर बचाए गए विवाह का प्रमाण पोर्टल पर अपलोड किया गया। इस पहल के परिणामस्वरूप, 25 सितंबर तक 4,00,742 बाल विवाह रोके जा चुके हैं।
इस पहल में कानून का सही पालन, समाज की पूरी भागीदारी और बच्चों के भविष्य के प्रति लोगों की सचमुच की जिम्मेदारी साफ दिखी। ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम’, स्कूलों और पंचायतों में चलाए गए जागरूकता अभियान और स्थानीय लोगों का सहयोग इन सब ने मिलकर बच्चों को बचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
बच्चों और समाज पर असर
बाल विवाह रोकने का असर सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह बच्चों के जीवन में सच्चे बदलाव की कहानी है। लड़कियाँ स्कूल में पढ़ाई जारी रख पाती हैं, अपने सपनों को पूरा कर पाती हैं और उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है। मानसिक रूप से भी बच्चे अधिक सशक्त और आत्मविश्वासी बनते हैं। समाज में यह संदेश जाता है कि बच्चों के बचपन का अधिकार सुरक्षित है और उनका भविष्य उनके अपने हाथों में है।
इस पहल से यह स्पष्ट हो गया है कि जब सरकार, NGOs और समाज मिलकर काम करते हैं, तो कोई भी सामाजिक कुरीति चाहे वह कितनी पुरानी क्यों न हो को जड़ से खत्म किया जा सकता है।