संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की फ़र्श पर जब भारतीय स्थायी प्रतिनिधि ने अपनी आवाज़ उठाई, तो वहाँ जो सिर्फ़ कूटनीतिक भाषण होना था, वह एक निर्णायक मोमेंट बन गया। पर्वतनेनी हरीश ने उस मंच से साफ़, निर्णायक और बिना किसी बुहार के कहा जो कई सालों से कई जगह छुपा कर रखा गया था — पाकिस्तान स्थित आतंकवादी नेटवर्क अफ़गानिस्तान को अपने नए ठिकाने के रूप में उपयोग कर रहे हैं और इस खेल की जवाबदेही पाकिस्तान से मांगनी होगी।
यह कोई मामूली आरोप-प्रत्यारोप नहीं था; यह एक खुला उजागर था। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों का नाम लिया गया — वही नाम जिनके पीछे लंबे समय से रावलपिंडी की परछाईं देखी जाती रही है। लेकिन अब दुनिया की निगाहों के सामने पाकिस्तानी संरक्षण और सहारे की तस्वीर और साफ़ हो गई।
पाकिस्तान की नाकामी — अब बहाने नहीं बचेंगे
पाकिस्तान वर्षों से आतंकवाद को “रणनीतिक उपकरण” के तौर पर अपनाता आया है — सीमा पार एजेंसियों के गेम, दुश्मन-निर्माण, और कूटनीतिक बहानों के गुहामीन खेल। पर वह सपनों का खेल अब टूट रहा है। यूएन जैसे सार्वभौमिक मंच पर ऐसे संगठनों का नाम लेना इस बात का प्रतीक है कि पाकिस्तान के पास अब फिर से वही पुरानी बहाने—“हम पर नियंत्रण नहीं है”, “यह घरेलू मामला है”—काम नहीं कर रहे।
अफगानिस्तान की अस्थिरता का दुरुपयोग कर के आतंकियों को पनाह देना, स्थानीय समुदायों और क्षेत्र की सुरक्षा के साथ खुले धोखे के बराबर है। पाकिस्तान का जो दांव उसने दशकों से खेला, वह आज उसकी कूटनीतिक विफलता बन कर उभरा है — न सिर्फ़ उस क्षेत्र के देशों के सामने बल्कि उनके अपने रुख़ में भी फासला बढ़ गया है।
भारत की ताक़त — संवाद, प्रमाण और कार्रवाइयों का संयोजन
भारत ने इस बार केवल ज़ुबानी हमला नहीं किया। उसने सबूतों, संवाद और कूटनीतिक नेटवर्क का संयोजन पेश किया। अफगानिस्तान के साथ हमारी सभ्यतागत जुड़ाव की बात कर के हमने यह दिखाया कि हम इस मुद्दे के रखवाले हैं — केवल आरोप लगाने वाले नहीं। विदेश मंत्री की त्वरित बातचीत, भारतीय राजनयिकों की सक्रियता और यूएन में स्पष्ट रूपरेखा — यह सब भारत की परिपक्वता और रणनीतिक परिपक्वता की निशानी है।
ये वही भारत है जो अपने सुरक्षात्मक हितों को लेकर कठोर है और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कार्रवाई की माँग करने में पीछे नहीं हटता। हमने कहा कि नामित संगठन और उनके सहायक अफगानिस्तान का दुरुपयोग न कर सकें — और यह माँग सिर्फ़ रियायत नहीं, दुनिया की सुरक्षा का मसला है।
अब पाकिस्तान के पास बचने की गुंजाइश कम हैं
यूएन में इस तरह का खुला आरोप लगना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की रणनीति अब अंतरराष्ट्रीय सहमति और दबाव से मुक्त नहीं रह पाएगी। जो प्रणाली वर्षों तक छिपी रही, अब उसे जवाबदेह ठहराया जा रहा है। और जहाँ कार्रवाई की गुंजाइश है, वहाँ दुनिया नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगी।
यह वही क्षण है जब तथ्यों के सामने बहाने फुर्र होते हैं — और पाकिस्तान को इस बार अपनी नीति पर पुनर्विचार करना होगा: क्या वह आतंकवादी नेटवर्क का पनाहघर बने रहेगा या क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के पक्ष में कदम उठाएगा।
संदेश साफ़ — भारत ही नहीं, क्षेत्र सुरक्षित होना चाहिए
भारत का यह यूएन बयान सिर्फ़ प्रतिशोधी तकरार नहीं था; यह एक स्पष्ट संदेश था कि दक्षिण एशिया की शांति और सुरक्षा के लिए जवाबदेही जरूरी है। हम अपने पड़ोसी के साथ सभ्यतागत और विकास सहयोग कायम रखेंगे, पर आतंकवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे — न सीमाओं के पार और न ही किसी मंच पर। जो देश आतंकवाद को अपने हित में उपयोग कर रहे हैं, वे समझ लें कि अब दुनिया के नजरिए बदल गए हैं। भारत मजबूती से खड़ा है — संवाद, डर और दबाव, और आवश्यक होने पर कार्रवाई के लिए तैयार।