सूरज अभी धीरे-धीरे बंगाल की खाड़ी पर अपनी रोशनी फैला रहा था। ग्रेट निकोबार द्वीप पर हवा में नमक की हल्की खुशबू थी और समंदर की लहरें तट पर टकरा रही थीं। लेकिन इस खूबसूरत परिदृश्य के पीछे भारत की रणनीतिक योजना चल रही थी, जो हिंद महासागर के भविष्य को बदल सकती है।
एक रणनीतिक द्वीप की कहानी
ग्रेट निकोबार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी हिस्से में स्थित, भारत की मुख्य भूमि से लगभग 1,800 किलोमीटर दूर है। यह द्वीप केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि यह भारत के लिए सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। 26 दिसंबर 2004 को आयी विनाशकारी सुनामी ने इसे इतिहास के पन्नों में दर्ज करा दिया था। उस दिन समुद्र की ताकत ने 12 देशों में तबाही मचाई और 2 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली।
आज वही द्वीप भारत के सामरिक दृष्टिकोण में बदलाव की कहानी कह रहा है। केंद्र सरकार ने यहां ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की है। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है, इस द्वीप को एक आधुनिक, सुरक्षित और अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्मार्ट सिटी में बदलना, जिसमें मालवाहक बंदरगाह, इंटरनेशनल एयरपोर्ट और 450 मेगावॉट की सौर और गैस आधारित ऊर्जा परियोजना शामिल है।
समुद्र और सुरक्षा: भारत का बड़ा खेल
यहां बता दें कि ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट केवल एक विकास योजना नहीं है। यह भारत का हिंद महासागर और अंडमान सागर में नजर रखने का सामरिक कदम भी है। इस इलाके से गुजरने वाले समुद्री मार्ग दुनिया के व्यापार के सबसे व्यस्त मार्गों में से हैं। मलक्का और सिंगापुर जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण चैनल यहीं से जुड़े हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि यहां पर भारत ने पहली बार कुछ किया हो, भारत की नजरें पहले से ही इस इलाके पर थीं। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर में अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ाई है। म्यांमार के कोको द्वीप में चीन की मिलिट्री फैसिलिटी केवल 55 किलोमीटर दूर है। ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के जरिए भारत इस दबदबे को चुनौती देगा और हिंद महासागर में अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगा।
पर्यावरणविदों ने दी चेतावनी
हालांकि, यह परियोजना चुनौतियों से मुक्त नहीं है। यहां की शौंपेन जनजाति और प्राकृतिक जैव विविधता पर इसका असर पड़ सकता है। कोरल रीफ, मेगापोड पक्षी और लेदरबैक कछुए जैसी प्रजातियां खतरे में हैं। इसके साथ ही पर्यावरणविदों ने चेताया है कि यहां पर बड़े निर्माण कार्य भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी इस परियोजना को लेकर चिंता जताई है। उनका तर्क है कि स्थानीय जनजातियों और पर्यावरण पर इसका असर गंभीर हो सकता है।
इन सबके बीच भारत का ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट अब धीरे-धीरे आकार ले रहा है। बंदरगाह में कंटेनर जहाजों की आवाजाही और एयरपोर्ट की शुरुआत जैसे संकेत दिखा रहे हैं कि यह प्रोजेक्ट भारत की सामरिक और आर्थिक ताकत को बढ़ाने वाला है। भारत के लिए यह केवल विकास का मामला नहीं है। यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में रणनीतिक संतुलन बनाने की कहानी है। चीन और पाकिस्तान के लिए यह नए खेल की शुरुआत है, और भारत ने अपने मजबूत ताले के साथ इस खेल में कदम रखा है।