कोहिनूर: भारत की धरती से ब्रिटिश ताज तक – लूट और अपमान की गाथा
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कोहिनूर: भारत की धरती से ब्रिटिश ताज तक – लूट और अपमान की गाथा

कोहिनूर की कहानी भारत के गौरव, उसकी पराजयों और उसकी लूट का आईना है। आज जब भारत फिर से वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, तब यह सवाल और भी गूंजता है – क्या कोहिनूर अपने घर लौटेगा?

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
13 September 2025
in इतिहास, चर्चित, ज्ञान, विश्व
कोहिनूर: भारत की धरती से ब्रिटिश ताज तक – लूट और अपमान की गाथा

कोहिनूर की कहानी भारत के गौरव, उसकी पराजयों और उसकी लूट का आईना है।

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इतिहास की धूल में दबी कुछ कहानियां ऐसी हैं, जिनकी चमक आज भी आंखें चौंधिया देती है। कोहिनूर हीरा ऐसी ही एक कहानी है। यह केवल एक बेशकीमती रत्न नहीं, बल्कि भारत की समृद्धि, उसकी लूट और उपनिवेशवाद के घाव का प्रतीक है। आज यह ब्रिटिश ताज का हिस्सा है, लेकिन इसका हर पहलू भारत की गाथा बयान करता है – सोने की चिड़िया से गुलाम भारत तक की।

पहला अध्याय: रहस्यमयी जन्म

इतिहासकारों का मानना है कि कोहिनूर का जन्म आंध्र प्रदेश की खान में हुआ। कहा जाता है कि 12वीं शताब्दी में काकतीय राजवंश के खजाने में यह हीरा था। वारंगल के प्रसिद्ध मंदिरों की दीवारों और दक्षिण भारत की भव्यता में कोहिनूर की चमक भारत की समृद्धि को और उजागर करती थी। कोहिनूर का पहला लिखित उल्लेख हमें बाबरनामा में मिलता है। बाबर ने इसे इतना अद्भुत बताया कि उसकी तुलना किसी और हीरे से करना संभव ही नहीं था। यह वही दौर था जब भारत दुनिया का सबसे धनी साम्राज्य था।

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दूसरा अध्याय: मुगल शान का गहना

शाहजहां के समय कोहिनूर को मयूर सिंहासन में जड़ा गया। सोने-चांदी से जड़ा वह सिंहासन और उस पर चमकता कोहिनूर, भारत को सचमुच सोने की चिड़िया सिद्ध करता था। लेकिन मुगलों की वैभवशाली दुनिया धीरे-धीरे सड़ने लगी। उनकी इसी कमजोरी को भांपकर ईरान का शासक नादिर शाह भारत पर टूट पड़ा।

तीसरा अध्याय: 1739 – दिल्ली का कत्लेआम

नादिर शाह का हमला भारतीय इतिहास के सबसे काले अध्यायों में गिना जाता है। करनाल की लड़ाई में मुगल सेना घुटनों के बल गिर गई। दिल्ली पहुंचकर नादिर शाह ने ऐसा नरसंहार करवाया कि पूरा शहर दहल गया। लाल किले से लेकर चांदनी चौक तक खून बहा। यही वह क्षण था जब भारत की प्रतिष्ठा का प्रतीक कोहिनूर भी उसकी झोली में चला गया। लाल किले से उठाकर मयूर सिंहासन और कोहिनूर फ़ारस ले जाया गया। नादिर शाह ने इसे देखकर कहा – “यह प्रकाश का पर्वत है”। यानी कोहिनूर का नाम उसी ने दिया।

चौथा अध्याय: अफगानों की झोली में

नादिर शाह की हत्या के बाद कोहिनूर उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के हाथ आया।
अब्दाली के वंशजों ने इसे अफगानिस्तान में दशकों तक संभाला। लेकिन अफगान राजनीति की उठापटक और लगातार युद्धों ने कोहिनूर की किस्मत को फिर बदल दिया।

पांचवां अध्याय: सिख साम्राज्य की शान

1813 में कोहिनूर लाहौर पहुंचा और महाराजा रणजीत सिंह के पास आया। रणजीत सिंह ने इसे सिख साम्राज्य की शक्ति का प्रतीक बना दिया। रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब से अफगानिस्तान की सीमाओं तक फैला था। उनके लिए कोहिनूर केवल एक हीरा नहीं था, बल्कि यह भारतीय शक्ति और गौरव का प्रतीक था। कहा जाता है कि रणजीत सिंह ने अपने अंतिम दिनों में इच्छा जताई थी कि कोहिनूर को काशी स्थित जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया जाए। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्ज़ा कर लिया और यह इच्छा अधूरी रह गई।

छठा अध्याय: ईस्ट इंडिया कंपनी की चालबाज़ी

1849 में लाहौर संधि हुई। इसके तहत पंजाब अंग्रेजों के अधीन हो गया। संधि की शर्तों में साफ लिखा था कि “कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया जाएगा।” बस यहीं से कोहिनूर की यात्रा भारत से बाहर शुरू हुई। भारत की धरती से छीनकर यह हीरा लंदन भेजा गया।

सातवां अध्याय: ब्रिटिश ताज की शोभा

1850 में कोहिनूर इंग्लैंड पहुंचा। 1852 में इसे काटकर छोटा कर दिया गया और महारानी विक्टोरिया के ताज में जड़ दिया गया। ब्रिटिश साम्राज्य के लिए यह हीरा केवल आभूषण नहीं था। यह उनके लिए भारत पर विजय और उपनिवेशवाद की ताकत का प्रतीक था। आज यह लंदन टॉवर में रखा है और ब्रिटिश शाही परिवार की ताजपोशी का हिस्सा है।

एक हीरे में गुलामी की पूरी कहानी

कोहिनूर की यात्रा भारत की ही यात्रा है।

काकतीयों के पास – स्वतंत्र और समृद्ध भारत।

मुगलों के पास – शाही वैभव और संस्कृति।

नादिर शाह और अब्दाली – पराजय और अपमान।

रणजीत सिंह – शक्ति और गौरव।

अंग्रेजों के पास – औपनिवेशिक लूट और गुलामी।

कोहिनूर यह साबित करता है कि भारत की असली लड़ाई केवल सत्ता की नहीं, बल्कि सम्मान की भी थी।

कोहिनूर विवाद – आज भी गूंजता सवाल

भारत, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान – चारों देश कोहिनूर पर दावा करते हैं। लेकिन सबसे बड़ा और वैध दावा भारत का है, क्योंकि इसकी खान से यह निकला और इसकी सभ्यता में यह पला-बढ़ा। ब्रिटेन बार-बार कहता है कि कोहिनूर “कानूनी संधि” से मिला। लेकिन सच्चाई यह है कि वह संधि जबरदस्ती और उपनिवेशवाद की ताकत से थोप दी गई थी।

क्यों जरूरी है वापसी?

न्याय का सवाल – औपनिवेशिक लूट का प्रतिकार।

गौरव की वापसी – भारत की अस्मिता का सम्मान।

विश्व संदेश – औपनिवेशिक शक्तियों को यह मानना होगा कि उन्होंने जो छीना, वह लौटाना होगा।

पीढ़ियों का सवाल – कोहिनूर केवल इतिहास नहीं, आने वाली पीढ़ियों का गर्व है।

कब लौटेगा कोहिनूर?

कोहिनूर की कहानी भारत के गौरव, उसकी पराजयों और उसकी लूट का आईना है। आज जब भारत फिर से वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, तब यह सवाल और भी गूंजता है – क्या कोहिनूर अपने घर लौटेगा? यह केवल एक हीरे की वापसी नहीं होगी, बल्कि भारत की आत्मा को उसके गौरव से फिर से जोड़ने का क्षण होगा और उस दिन भारत यह कह सकेगा– “सोने की चिड़िया से छीना गया हीरा अब फिर अपनी मातृभूमि की गोद में है।”

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