आजकल चर्चा में ये बातें होना बहुत आम है कि हमारे समाज में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है, युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहे हैं, पढ़े-लिखे सड़कों पर भटक रहे हैं और बड़ी-बड़ी डिग्रियां लिए लोग चपड़ासी की नौकरी के लिए आवेदन करते रहते हैं। पर क्या यह वास्तव में सही है? आखिर बेरोजगारी की परिभाषा क्या मान कर चले? सरल शब्दों में कहें तो आज के समय में बेरोजगार केवल वही है जो काम करने से शर्माता है या काम करना नहीं चाहता है, क्योंकि दुनिया भर के काम उपलब्ध हैं। इस बात को दावे के साथ कहा जा सकता है कि उपरोक्त बातें हिन्दू समाज में बहुत ज्यादा होती है।
पढ़ाई लिखाई हमारा बौद्धिक स्तर बढ़ा सकती है, परंतु हमारे हाथ की कुशलता हमारी आजीविका को बढ़ाती है। लेकिन आज के समय में यदि देखा जाए तो अपना रोजगार खड़ा करने में मुस्लिम समुदाय के लोग बहुत आगे हैं। ये लोग राजनीतिक कारणों से भाजपा के विरोध में ऐसा जरुर कहते हैं कि बहुत बेरोजगारी है, परन्तु हर कोई काम करता रहता है। फिर चाहें वो कबाड़ बीनने, मजदूरी करने, पंचर बनाने, फल सब्जी बेचने का काम हो या फिर फेरी लगाने और नाई-दर्जी का काम हो। ये लोग हर छोटे से छोटे से काम करते हैं। वहीं हिन्दू समाज में ज्यादा पढ़ लिख कर सभी नौकरी ही करना चाहते हैं और यदि नौकरी ना मिले तो कहते हैं कि बेरोजगारी है।
अपने हाथ से काम करने के मामले में मुस्लिम समाज सब से आगे हैं । आईये एक उदाहरण से समझते हैं। हम देखते हैं कि हमारे समाज में आज के समय में कपड़े सिलने वाले ज्यादातर दर्जी मुस्लिम हैं। दर्जी का काम करने वाले हिन्दू नाम मात्र हैं और यदि हैं भी तो उनके पास काम कम है। यह सत्य है कि बहुत छोटी उम्र में ही मुस्लिम समुदाय के लोग इस प्रकार के काम सीखना शुरू कर देते हैं । उसका एक कारण भी है कि मुस्लिम समुदाय में परिवार बड़ा होता है। आठ से दस बच्चे होते हैं । सीमित संसाधन होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते । फिर काम सीखना शुरू करते हैं। यदि परिवार में दस बच्चे हैं तो वे सभी अलग-अलग काम सीखते हैं, जैसे लकड़ी का काम, मकान का काम, पलस्तर, टाइल, बिजली, पलंबर, गाड़ी का काम और दर्जी आदि का काम।
जहाँ तक दर्जी के काम की बात है तो यह सीधे-सीधे हिन्दू महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित है। इससे स्थानीय लोगों के व्यवसाय और आर्थिक पक्ष पर भी बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में हम देख सकते हैं कि हर गाँव, कस्बों या शहरों में खान टेलर, मिर्जा टेलर, मॉडर्न टेलर और यहाँ तक छद्दम नामों से दर्जियों की दुकानों की भरमार हो गई है। ये सभी प्रवासी लोग हैं और इन दुकानों पर काम करने वाले सभी दर्जी मुस्लिम ही होते हैं और सब से बड़ी बात ये खान टेलर पुरुषों के कपड़े नहीं सिलते हैं, वे केवल महिलाओं के ही कपड़े सिलते हैं।
वैसे तो गाँव में महिलाएं भी कपड़े सिलती हैं और सिलाई भी कम लेती हैं पर इन मुस्लिम दर्जियों के कारण उनका काम कम हो गया है। अब प्रश्न गंभीर प्रश्न उठते हैं कि जितने भी ये ‘खान टेलर’ हैं वो केवल महिलाओं के ही कपड़े क्यों सिलते हैं? और क्यों खान ही हिन्दू महिलाओं का नाप लेता है? क्या कोई महिला नाप नहीं ले सकती ? एक बात और रोजगार की तलाश में मुस्लिम महिलायें क्यों नहीं निकलती? बेरोजगारी के नाम पर छाती पीटने वालों ने कभी सोचा है कि ये प्रवासी मुस्लिम दर्जी कपड़े सिलकर महीने का कितना पैसा कमाते हैं?
हिन्दू समाज को और विशेषकर हिन्दू महिलाओं को इन प्रश्नों पर विचार करना होगा। कहीं ये कोई साजिश तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि केवल हिन्दू महिलाओं को ही टारगेट कर के जिहादी सोच पर काम किया जा रहा है ? ऐसे बहुत से प्रकरण हैं जिनसे सिद्ध होता है कि दर्जी का काम करना वाले खान टेलर की दुकान भी लव जिहाद के अड्डे बन चुके हैं और हिन्दू महिलाएं फैशन के चक्कर में इन अड्डों के जाल में फँसती जा रही हैं।
हिन्दू महिलाओं ने पता नहीं कभी ध्यान दिया हो पर जब भी वे इन खान टेलर को अपना नाप दे रही होती हैं तो शायद उनको मालूम भी नहीं होता कि उस समय उस खान टेलर के दिमाग में 72 हूरें घूम रही होती हैं और बाद में फिटिंग के नाम पर कहता है कि आपका नाप तो कस कर लिया था। हिन्दू त्योहारों में अक्सर नए कपड़े सिलवाए जाते हैं। नया त्योहार है इसलिए कपड़े भी नए होने चाहिए ऐसा भाव रहता है। त्योहार में पवित्रता का भी ध्यान रखा जाता है । पर हमने अक्सर सोशल मीडिया पर देखा भी होगा कि होटलों में खाना बनाते समय यही लोग थूकते हुए पाए जाते हैं और ऐसे ही नए कपड़ों पर भी थूकते हुए प्रेस करते हुए वीडियो भी देखे जा सकते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि करवा चौथ के व्रत में हिन्दू महिला अपने पति की लंबी उम्र की कामना क्या ऐसे अपवित्र कपड़े और वो भी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा सिले हुए कपड़े पहन कर करेगी, जो उनके धर्म को मानता ही नहीं है? इन खान टेलर का काम इसलिए अच्छा चल पड़ता है क्योंकि हिन्दू समाज को अभी इन बातों हल्के में लेता है। जब भी किसी हिन्दू महिला के साथ लव जिहाद कि घटना होती है तो वो परिवार किसी को कुछ भी नहीं बता पता और अन्य यही मान कर चलते हैं कि हमे क्या? हमारे घर में थोड़ा ना कुछ हुआ है । बस इसी सोच ने हिन्दू समाज का बेड़ागर्क कर के रखा हुआ है।
क्या आपने कभी किसी मुस्लिम महिला को किसी हिन्दू सैलून में जाते हुए देखा है? क्या किसी मुस्लिम महिला को किसी हिन्दू दर्जी के पास नाप देते हुए या कपड़े सिलवाते हुए देखा है? इन प्रश्नों का उत्तर ‘नहीं’ होगा। इसके पीछे क्या कारण है इसका उत्तर हिन्दू समाज को ही देना है। यह बात कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि अपने संस्कारों की तिलांजलि देकर फैशन की हवा में बहकर जिस भी महिला ने अपने कपड़े इन खान टेलर से सिलवाए हैं उन्होंने कहीं ना कहीं अपनी अगली पीढी के लिए लव जिहाद के दरवाजे खोल दिए हैं।
हिन्दू समाज में बड़ी संख्या में हिन्दू महिलाएं अच्छे बुटीक चला रही हैं और उनको महिला होने के नाते नाप देने में भी कोई दिक्कत नहीं हो सकती । अपने हिन्दू समाज की मातृशक्ति यदि सशक्त होगी तभी हिन्दू महिलाएं सुरक्षित होंगी। नहीं तो जिस प्रकार की तैयारी में ये हिन्दू विरोधी लगे है वहाँ तक हमारा समाज अभी सोच ही नहीं पा रहा है। हिन्दू मातृशक्ति को ही इस गंभीर समस्या पर कोई कदम उठाना होगा जिससे कि हिन्दू महिलाओं को लव जिहाद के चंगुल में जाने से बचाया जा सके।
विचार हिन्दू समाज को करना है कि बेरोजगारी का रोना रोना है या रोजगार करना और देना सीखना है। अभी समय है जागने का, नहीं तो जो पाकिस्तान और बंगलादेश में हुआ वो यहाँ भी होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)