पंजाब में हर साल फरवरी में बाढ़ पूर्व तैयारी के लिए उच्चस्तरीय बैठक होती है, ताकि समय रहते तटबंधों की मरम्मत, नालों की सफाई और जलाशयों के जलस्तर का प्रबंधन किया जा सके। लेकिन इस बार यह बैठक जून में हुई- यानी ठीक मानसून से पहले। इसका कारण केवल यह है कि पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली के चुनाव में व्यस्त थी। इसके बाद राजनीतिक लड़ाई में लगी रही।
इस देरी का सीधा असर यह हुआ कि मरम्मत कार्य आधे-अधूरे रह गए, कई नाले समय पर साफ नहीं हो पाए और जब पानी आया तो कई इलाकों में उसकी निकासी रुक गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि बैठक समय पर होती और मरम्मत/सफाई कार्य फरवरी से शुरू होते, तो नुकसान काफी कम हो सकता था। किसानों का भी आरोप है कि इस प्रशासनिक लापरवाही ने उनके नुकसान को कई गुना बढ़ा दिया।
विशेषज्ञों और किसानों की मौन पुकार
रायटर और द गार्डियन जैसी रिपोर्टों में कहा गया है कि यह 30 साल की सबसे भयानक बाढ़ है। किसान “सब कुछ चला गया” जैसी बातें कहते हैं और राहत कार्यों में देरी से नाराज़ हैं। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी कहा कि केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक टकराव राहत कार्य में रुकावट बन रहा है।
फसल-बीमा (PMFBY) की अनुपस्थिति- क्यों?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का उद्देश्य ही था कि किसान को प्राकृतिक आपदा में सीधा मुआवजा मिले। लेकिन पंजाब ने इसे कभी लागू नहीं किया। पहले कांग्रेस सरकार ने इसे “बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाली योजना” कहकर खारिज किया और अपनी राज्य योजना का वादा किया। बाद में AAP सरकार ने भी यही वादा दोहराया लेकिन दो साल बीत गए और अभी तक कोई वैकल्पिक योजना लागू नहीं हो पाई।
नतीजा यह हुआ कि आज लाखों किसानों के पास कोई बीमा कवरेज नहीं है। सरकार सर्वे करवा रही है और मुआवजे का एलान कर रही है, लेकिन यह न तो पर्याप्त है और न समय पर मिलता है।
केंद्र की सीमाएं और राज्य की जिम्मेदारी
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा केंद्र की गंभीरता दिखाता है। लेकिन केंद्र PMFBY के बिना किसानों को बीमा क्लेम नहीं दे सकता। इसमें 50% प्रीमियम राज्य सरकार देती है। अब जबकि राज्य ने योजना अपनाई ही नहीं, तो केंद्र चाहे भी तो सीधे भुगतान नहीं कर सकता।
सीएम भगवंत मान ने केंद्र से ₹60,000 करोड़ लंबित फंड जारी करने और ₹50,000 प्रति एकड़ मुआवजे की मांग की है। केंद्र SDRF/NDRF फंड जारी कर सकता है, लेकिन ये राहत आम तौर पर सामूहिक पुनर्वास और पुनर्निर्माण पर खर्च होते हैं।
किसानों पर दोहरी मार
किसान पहले ही महंगे डीजल, खाद और मजदूरी लागत से परेशान थे। बाढ़ के बाद उन्हें दोबारा बीज और खाद में निवेश करना होगा, जिसके लिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़ेगा। बीमा कवरेज न होने के कारण यह कर्ज़ कई किसानों को आत्महत्या की ओर धकेल सकता है।
राजनीतिक निहितार्थ
भाजपा ने इसे राज्य सरकार की असफलता बताया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर पंजाब PMFBY में शामिल होता, तो आज लाखों किसानों को सीधा मुआवजा मिल रहा होता। AAP सरकार का बचाव कमजोर लगता है क्योंकि उसने अपनी योजना अभी तक लागू नहीं की। 2024-25 के चुनाव में यह मुद्दा बड़ा राजनीतिक हथियार बन सकता है।
समाधान की राह
तत्काल राहत – केंद्र और राज्य मिलकर त्वरित नकद सहायता किसानों के खातों में डालें।
बीमा योजना लागू करें – या तो PMFBY में तुरंत शामिल हों या अपनी राज्य योजना को लागू करें।
इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारें – तटबंध, नालों की सफाई और जलनिकासी ढांचा मजबूत करें।
पारदर्शी सर्वे – डिजिटल सर्वे और समयबद्ध मुआवजा सुनिश्चित करें।
पंजाब की बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि नीतिगत देरी और प्रशासनिक सुस्ती का नतीजा भी है। फरवरी में होने वाली बाढ़ तैयारी बैठक का जून में होना इस बात का सबूत है कि सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए। किसानों के लिए फसल बीमा जैसे सुरक्षा कवच की अनुपस्थिति ने उनकी आर्थिक हालत और खराब कर दी। अब जरूरत है कि राज्य और केंद्र राजनीति से ऊपर उठकर राहत, बीमा और दीर्घकालिक समाधान पर साथ काम करें। नहीं तो किसान का भरोसा हर साल की बाढ़ के साथ बहता रहेगा।
Punjab Floods 2025 – आंकड़ों में हालात
प्रभावित जिलों की संख्या 23 जिले
प्रभावित गांव की संख्या लगभग 1,400–1,996 गांव
प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 3.5–3.87 लाख लोग
फसल क्षेत्र (कृषि भूमि) 1.48–1.75 लाख हेक्टेयर (≈ 3.7–4.3 लाख एकड़)
अनुमानित आर्थिक क्षति ₹14,000 करोड़ (अंतरिम अनुमान)
मृतकों की संख्या 26–46 व्यक्तियों की मौत
यह पंजाब की सबसे विकराल बाढ़ में से एक है — जिसे दशकों में नहीं देखा गया।
बाढ़ के कारण और आधारभूत कमियां
तीव्र मानसून और पड़ोसी राज्यों से अचानक छोड़ा गया पानी।
अव्यवस्थित तटीय संरचनाएं, अवैध खनन और समय पर मरम्मत न होना।
नालों और चोआ की सफाई में देरी, जिससे जल निकासी बाधित हुई।
बाढ़ पूर्व तैयारी की देरी – नुकसान का बड़ा कारण