पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) घोटालों के घेरे में है। हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद SSC (स्कूल सर्विस कमीशन) भर्ती घोटाले की सूची सार्वजनिक हुई, जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए। लिस्ट ने यह साबित कर दिया कि राज्य में नौकरियां मेहनत और योग्यता के दम पर नहीं, बल्कि नेताओं की औलादों और रिश्तेदारों के लिए सुरक्षित रखी गई थीं। यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि बंगाल के करोड़ों युवाओं के भविष्य के साथ किया गया एक खुला धोखा है।
घोटाले का खुलासा
SSC घोटाला कोई मामूली धांधली नहीं है। अदालत द्वारा जारी सूची में पाया गया कि TMC के कई मंत्री, विधायक और बड़े नेताओं के बेटे-बेटियां और रिश्तेदारों को नौकरी दी गई, जबकि लाखों योग्य उम्मीदवार वर्षों से बेरोजगारी झेल रहे हैं। जिन युवाओं ने खून-पसीना बहाकर प्रतियोगी परीक्षाएं पास कीं, उन्हें किनारे कर दिया गया और सत्ता के करीबियों को कुर्सियां बांट दी गईं।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है-क्या बंगाल की सरकार अब जनता की नहीं, सिर्फ TMC परिवारों की प्राइवेट कंपनी बनकर रह गई है?
महिला पत्रकार से दुर्व्यवहार
जब इस मुद्दे पर मीडिया ने सवाल उठाए, तो TMC नेताओं का असली चेहरा सामने आया। पानिहाटी से TMC विधायक निर्मल घोष से जब एक महिला पत्रकार ने घोटाले पर सवाल किया, तो उन्होंने न सिर्फ जवाब देने से बचा, बल्कि दुर्व्यवहार भी किया। यह घटना बताती है कि बंगाल में सत्ता पक्ष न तो पारदर्शिता चाहता है और न ही महिला सम्मान की परवाह करता है।
यह वही TMC है जो खुद को महिला सशक्तिकरण की पार्टी बताती है, लेकिन जमीनी हकीकत है-महिला पत्रकारों से बदसलूकी और उत्पीड़न।
हिंदू युवाओं के साथ अन्याय
यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं, बल्कि हिंदू युवाओं के साथ गद्दारी है। बंगाल में बेरोजगारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हिंदू परिवार हैं। एक ओर वे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपनी जमीन-जायदाद बेचकर कोचिंग और पढ़ाई का खर्च उठाते हैं, दूसरी ओर नेताओं के बेटे-बेटी बिना मेरिट सरकारी नौकरियों में बैठ जाते हैं।
क्या यही है ‘ममता राज’ का न्याय? क्या यही है वह लोकतंत्र, जिसमें मेहनती युवाओं के सपनों को बेरहमी से कुचल दिया जाता है?
भ्रष्टाचार और महिला अपमान-TMC का दोहरा चेहरा
TMC बार-बार खुद को गरीबों, वंचितों और महिलाओं का हितैषी बताती है। लेकिन SSC घोटाले ने यह साफ कर दिया कि—
1. गरीब और बेरोजगार युवाओं के हक को नेताओं की औलादें लूट रही हैं।
2. महिला पत्रकारों से सवाल पूछने पर बदसलूकी की जाती है।
3. न्याय की मांग करने वालों को धमकाया जाता है।
यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि तानाशाही है।
राष्ट्रवाद बनाम परिवारवाद
भारत का लोकतंत्र राष्ट्रवादी मूल्यों पर खड़ा है-जहां जनता सर्वोपरि है। लेकिन बंगाल की तस्वीर अलग है। यहां TMC ने शासन को परिवारवाद और भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है। राष्ट्रवाद कहता है कि-हर मेहनती और योग्य युवा को बराबरी का अवसर मिलना चाहिए। लेकिन TMC की राजनीति कहती है कि-सिर्फ अपनों का पेट भरो।
हिंदुत्व का मर्म यही है कि अन्याय के खिलाफ डटकर खड़ा होना। बंगाल के युवा अब समझ चुके हैं कि उनका हक छीनने वाली सरकार को ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अदालत और जनता का दबाव
कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश इस बात का प्रतीक है कि न्यायपालिका अब भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसने के लिए तैयार है। लेकिन असली ताकत जनता के हाथों में है। बंगाल के लाखों बेरोजगार युवाओं, हिंदू समाज और न्यायप्रिय जनता को मिलकर इस आवाज़ को बुलंद करना होगा। सवाल सिर्फ नौकरी का नहीं है-यह सवाल भविष्य और अस्मिता का है।
SSC घोटाला बंगाल में लोकतंत्र और न्याय पर सीधा प्रहार है। यह बताता है कि किस तरह सत्ता में बैठे लोग जनता के सपनों की कीमत पर अपनी औलादों का भविष्य सुरक्षित कर रहे हैं। महिला पत्रकार से दुर्व्यवहार ने TMC का असली चेहरा उजागर कर दिया है। आज जरूरत है कि पूरा देश एक स्वर में कहे कि बंगाल के युवाओं के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं होगा। इसके साथ ही महिला अपमान के लिए भी सभी को एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ भी बंगाल में निर्णायक लड़ाई जरूरी है।
बंगाल की धरती से एक नई पुकार उठ रही है-अब अन्याय नहीं, अब बदलाव चाहिए। यह बदलाव तभी संभव है जब राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और न्यायप्रिय ताकतें मिलकर भ्रष्टाचार और परिवारवाद की जड़ें उखाड़ फेंके। यही बंगाल और भारत के सुनहरे भविष्य की गारंटी है।