अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और अपने घर में आतंक, नागरिकों पर बम: पाकिस्तान की गजब की एक्टिंग

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ मिस्र के शर्म-अल-शेख़ में आयोजित शांति सम्मेलन के मंच पर खड़े होकर शांति और स्थिरता का उपदेश दे रहे थे, उसी वक्त इस्लामाबाद की सड़कों पर उनकी पुलिस निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला रही थी और खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर बम बरसा रही थी।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और अपने घर में आतंक, नागरिकों पर बम: पाकिस्तान की गजब की एक्टिंग

पाकिस्तान झूठ, हिंसा और आर्थिक तबाही में डूबा हुआ है।

जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ मिस्र के शर्म-अल-शेख़ में आयोजित शांति सम्मेलन के मंच पर खड़े होकर शांति और स्थिरता का उपदेश दे रहे थे, उसी वक्त इस्लामाबाद की सड़कों पर उनकी पुलिस निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला रही थी और खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर बम बरसा रही थी। विडंबना देखिए, जो सरकार ग़ाज़ा के नाम पर आंसू बहा रही है, वही अपने देश के मुसलमानों पर अत्याचार कर रही है। पाकिस्तान की यह दोहरी नीति, भारत में आतंक फैलाने की उसकी साज़िशें और भीतर की अराजकता सबने एक बार फिर उसके नेतृत्व की खोखलापन उजागर कर दिया है। इसके उलट, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयमित कूटनीति ने भारत की परिपक्वता और विवेक को साबित किया है।

पाकिस्तान की खून से लथपथ सड़कें और ग़ाज़ा का पाखंड

पिछले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान की सड़कों ने युद्ध का रूप ले लिया है। जो सरकार खुद को ​फिलीस्तीन का समर्थक बताती है, उसी ने अमेरिका के दखल के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे अपने ही नागरिकों पर गोलियां चलाईं। इस्लामाबाद में तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान (TLP) के समर्थक अमेरिका से रिश्ते तोड़ने की मांग कर रहे थे, लेकिन पुलिस की गोलीबारी में कई प्रदर्शनकारी मारे गए। यह वही सरकार है जो खुद को “इस्लामिक उम्मा” का रहनुमा कहती है।

जब जनता की आवाज़ को कुचलने के लिए बर्बर ताक़त का इस्तेमाल हो रहा था, उसी वक्त जब शहबाज़ शरीफ़ मिस्र में वैश्विक सौहार्द का ढोंग रच रहे थे। यह वही पाकिस्तान है, जहां नैतिकता का दिखावा विदेश में किया जाता है, और अत्याचार का खेल अपने घर में। खैबर पख्तूनख्वा इलाका तो बार-बार पाकिस्तानी वायुसेना की बमबारी झेल चुका है। जिन आदिवासी इलाकों ने आतंक के खिलाफ़ संघर्ष किया, उन्हीं पर इस्लामाबाद ने मिसाइलें बरसाईं।

अफगानिस्तान से भी बिगड़े रिश्ते

पाकिस्तान अब गृहयुद्ध की कगार पर है। पिछले हफ्ते अफगानिस्तान पर की गई पाकिस्तानी हवाई बमबारी ने तालिबान सरकार को भी भड़का दिया है। जो तालिबान कभी पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी हुआ करता था, वही अब इस्लामाबाद पर “संप्रभुता का उल्लंघन” और “नागरिक हत्याओं” का आरोप लगा रहा है। यह इस्लामिक भाईचारे की नहीं, पाकिस्तान की कूटनीतिक विफलता की कहानी है।

आतंक का निर्यात और भीतर की बर्बादी

TLP और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे कट्टर संगठनों ने देश की आंतरिक सुरक्षा को चकनाचूर कर दिया है। पाकिस्तान के कई इलाकों में सरकार का नियंत्रण लगभग समाप्त हो गया है। लेकिन विडंबना यह है कि वही नाकारा व्यवस्था आज भी भारत में आतंकवाद फैलाने की कोशिश कर रही है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को “शांतिप्रिय देश” कह रही है।

भारत का जवाब: ऑपरेशन सिंदूर

पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोषों की हत्या के बाद भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। भारतीय वायुसेना ने 11 पाकिस्तानी एयरबेस पर सटीक हमले किए और मुरिदके व बहावलपुर में स्थित आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। पाकिस्तान हक्का-बक्का रह गया और कुछ ही घंटों में बैकडोर चैनलों से युद्धविराम की गुहार लगाने लगा।

शहबाज़ शरीफ़ ने बाद में दावा किया कि “डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाक शांति समझौता करवाया,” लेकिन भारत ने इस झूठ को तुरंत खारिज कर दिया। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि युद्धविराम कोई समझौता नहीं, बल्कि उसकी रणनीतिक इच्छा थी। अब भारत आतंकवाद को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं करेगा — यह संदेश पाकिस्तान के लिए साफ़ था।

पाकिस्तान का झूठ बनाम भारत की परिपक्वता

पाकिस्तान की झूठी बयानबाज़ी और पश्चिमी देशों की तुष्टि पाने की आदत उसकी मानसिक कमजोरी का परिचायक है। दूसरी ओर, भारत ने आत्मनिर्भर रक्षा नीति और सिद्धांत आधारित कूटनीति से यह दिखा दिया कि सच्ची ताक़त स्वाभिमान में होती है, न कि झूठे प्रदर्शन में।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शर्म-अल-शेख़ सम्मेलन में न जाना एक सोची-समझी रणनीति थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मेज़बानी में हुआ यह कार्यक्रम जल्द ही राजनीतिक नाटक में बदल गया, जहाँ शहबाज़ शरीफ़ ने ट्रंप की प्रशंसा करते हुए उन्हें “नोबेल पुरस्कार” के लिए सुझाया और झूठा दावा किया कि “ट्रंप ने भारत-पाक संघर्ष खत्म करवाया।”

मोदी ने इस ढोंग से दूरी बनाकर भारत का सम्मान बचाया। भारत ने अपने राज्य मंत्री किरीट वर्धन सिंह को प्रतिनिधि बनाकर भेजा — एक प्रतीकात्मक परंतु सटीक निर्णय। यह वही संयम है जिसने भारत को विश्व राजनीति में स्थिर और विश्वसनीय बनाया है।

परिपक्व भारत, पाखंडी पाकिस्तान

यह पहली बार नहीं जब मोदी सरकार ने कूटनीतिक जाल में फंसने से खुद को बचाया हो। जून में भी मोदी ने ट्रंप के आकस्मिक वॉशिंगटन आमंत्रण को ठुकरा दिया था, क्योंकि उसी दिन ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को भी बुलाया था। भारत की यह दूरदृष्टि किसी “मुलायम” नहीं बल्कि “मजबूत” नीति का परिचायक है।

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भले इसे “खोया हुआ अवसर” कहा, लेकिन शर्म-अल-शेख़ की घटनाओं ने साबित कर दिया कि मोदी का निर्णय सटीक था। भारत ने वैश्विक रंगमंच पर अपनी गरिमा बनाए रखी, जबकि पाकिस्तान ने अपनी खोखली नैतिकता को नंगा कर दिया।

उजागर हो चुका है पाकिस्तान का झूठ

आज पाकिस्तान का पाखंड पूरी तरह उजागर हो चुका है। जो शासन अपने ही नागरिकों पर बम बरसाता है, वही ग़ाज़ा में “संयम” की बातें करता है, जो कश्मीर में आतंक फैलाता है, वही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “शांति” का प्रवचन देता है। पाकिस्तान की यह दोहरी मानसिकता अब दुनिया के सामने पूरी तरह बेनकाब हो चुकी है।

प्रधानमंत्री मोदी का शर्म-अल-शेख़ से दूर रहना भारत की एक परिपक्व वैश्विक शक्ति के रूप में पहचान को और मज़बूत करता है। भारत कम बोलता है, पर ठोस कदम उठाता है — चाहे वह आतंक के खिलाफ़ सैन्य कार्रवाई हो या कूटनीति में संतुलन।

दूसरी ओर पाकिस्तान झूठ, हिंसा और आर्थिक तबाही में डूबा हुआ है। भारत का कद पूरे विश्व में आगे की ओर जा रहा है तो पाकिस्तान का ग्राफ नीचे की ओर है। यह यही दिखाता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है, चाहे झूठ कितनी भी तेज आवाज में क्यों न बोला जाए।

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