बात वर्ष 1939 की है।अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ पूरे देशभर में भावनाएं उफान पर थीं जनता न सिर्फ अपने लिए ज्यादा से ज्यादा अधिकारों की माँग कर रही थी बल्कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने की माँग भी लगातार तेज़ हो रही थी। गुजरात में भी जनता के अनेकों संगठन और मंडल बन चुके थे। जो राष्ट्रप्रेम और स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान दे रहे थे। इसीप्रकार भावनगर में भी भावनगर प्रजा परिषद नाम का एक संगठन जन्म ले चुका था। भावनगर प्रजामंडल का पाँचवाँ अधिवेशन 14–15 मई 1939 को शहर के वाघावाडी रोड स्थित राधा मंदिर के पास मैदान में हुआ। सरदार पटेल इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए थे। यह संगठन जनता को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने और जागरूकता फैलाने में सक्रिय था। इसलिए सरदार पटेल ने अध्यक्ष पद स्वीकार किया और आने की सहमति दी।
नगीना मस्जिद केस: जब मुस्लिम भीड़ ने किया पटेल पर तलवारों से हमला
14 मई 1939 को पटेल हवाई मार्ग से भावनगर पहुँचे।जहां उनके स्वागत के लिए पहले से ही भारी भीड़ मौजूद थी। एयरपोर्ट से उन्हें रेलवे स्टेशन तक (लगभग 9 किमी) तक एक शानदार जुलूस में ले जाया जाना था। पूरे रास्ते के दोनों तरफ़ बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। सरदार भी रेलवे स्टेशन से खुली जीप में सवार हो गए और जुलूस आगे बढ़ चला।
सरदार सड़क के दोनों तरफ खड़े लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे, लेकिन जब ये यात्रा खार गेट चौक के क़रीब नगीना मस्जिद के सामने पहुंची तो लाठी, भालों, तलवारों और चाक़ुओं से लैस क़रीब 40 से 50 लोगों की भीड़ ने जुलूस पर हमला कर दिया।
 ये सभी हमलावर मुस्लिम समुदाय से थे और नगीना मस्जिद के अंदर ही छिपे हुए थे
बचुभाई पटेल और जाधव भाई मोदी नाम के युवाओं ने जान देकर बचाई पटेल की जान
अचानक हुए इस हमले में वहां हड़कम्प मच गया। लेकिन इससे पहले कि हमलावर सरदार पटेल को निशाना बनाते– जीप में सवार दो नवयुवक स्वयंसेवक बच्चू भाई पटेल और जाधव भाई मोदी सरदार को चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए और उन पर होने वाले हमलों को ढाल की तरह ख़ुद पर झेल लिया।
 ये हमलावर पटेल को खत्म करने के इरादे से ही पहुंचे थे, लेकिन जब वो उन तक नहीं पहुँच सके तो उन्होने इन युवाओं पर ही पूरी ताक़त के साथ हमला कर दिया।
 इस हमले में बच्चू भाई पटेल तो घटनास्थल पर ही वीरगति को प्राप्त हो गए जबकि जाधव भाई मोदी अगले दिन अस्पताल में वीरगति को प्राप्त हुए।
इसके अलावा नानाभाई (नृसिंहप्रसाद) भट्ट को सिर पर गंभीर चोट लगी, मकनजी भाई वालिया और कालूभाई वालिया नाम के दो स्वयंसेवक भी हमलावरों का सामना करते हुए घायल हो गए, जबकि कांग्रेस सचिव आत्माराम भट्ट पर भी चाकू का वार हुआ और उनकी कनपटी के पास गंभीर जख्म हो गया।
इस हमले से हर कोई हैरान रह गया। सरदार पटेल ने भी जुलूस को रोक दिया और घायलों से मिलने तख्तसिंहजी अस्पताल पहुँच गए।
 
 सरदार पटेल को डर था कि कहीं इस हमले की प्रतिक्रिया न हो– इसलिए उन्होने अस्पताल से ही उन्होंने लोगों को संदेश भेजा:
 “आज की दुखद घटना से भय या क्रोध की आवश्यकता नहीं है। जिन्होंने जुलूस और निर्दोषों पर हमला किया है, वे अपने विवेक से च्युत होकर पागलपन में पाप कर बैठे हैं। जनता के निर्माण की इमारत निर्दोषों के बलिदान पर खड़ी होती है। सभी शांति बनाए रखें और प्रेमपूर्वक सम्मेलन की सफलता के लिए जुटें।”
पटेल ने पूरी घटना की सूचना टेलीग्राम के ज़रिए गांधीजी को भी दी। गांधीजी ने उत्तर भेजा:
“मैंने टेलीग्राम पढ़ा और स्तब्ध रह गया। ईश्वर हमें मार्ग दिखाए। नानाभाई और अन्य घायल अब स्वस्थ हों, यही प्रार्थना है। विस्तृत जानकारी की प्रतीक्षा है।”
इस घटना ने पूरे भावनगर में दहशत फैला दी, लेकिन अधिवेशन रुका नहीं।
अधिवेशन में पटेल ने कहा:
“हमें आपस में झगड़ना नहीं चाहिए। यदि हमने ऐसे तत्वों को अलग नहीं किया तो ये समाज को निगल जाएंगे। यह क्षणिक क्रोध नहीं, बल्कि पहले से रचा गया षड्यंत्र है।”
रात में आयोजित सभा में भी उन्होंने कहा:
“सामाजिक अव्यवस्था का यह वातावरण केवल भव्यनगर तक सीमित नहीं, पूरे भारत में फैल रहा है। जो वार मुझ पर होने थे, वे बचुभाई, जादवजीभाई और नानाभाई ने झेल लिए। यह मेरे जीवन में पहली घटना नहीं है। ईश्वर मुझे बार–बार बचा लेता है।”
यानी पटेल ने स्वयं ये कहा था कि ये हमला “पूर्व नियोजित” था। वर्ष 1944 में प्रकाशित प्रजामंडल की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई।
लेकिन पटेल ने ऐसा क्यों कहा था?
 दरअसल इससे पहले मांडवी में भी इसी साल पटेल के एक जुलूस पर हमला हो गया था। और उस हमले में भी मुस्लिम लीग ही शामिल थी, लेकिन क़िस्मत से पटेल को कोई नुक़सान नहीं हुआ था।
 सरदार पटेल पर जानलेवा हमले तो हुआ था और अगर दो बहादुर युवा कवच की तरह उनके सामने न आए होते तो शायद देश का इतिहास ही नहीं भूगोल भी कुछ और ही होता।
 पटेल राष्ट्रीय स्तर के नेता थे और उनका क़द महात्मा गांधी जैसा ही था, ऐसे में उन पर हमले की ख़बर से अंग्रेजी प्रशासन भी हिल गया।
महराजा कृष्णकुमार सिंह उस समय भावनगर के राजा थे, उन्होने तत्काल आदेश देकर अपराधियों को दंडित करने की कोशिश की। ख़ुद राज्य के पुलिस प्रमुख छेलभाई डेव ने मामले की जाँच की और दोषियों को सजा दिलाने के लिए बॉम्बे से प्रसिद्ध क्रिमिनल लॉयर के. के. शाह को मुकदमे के लिए बुलाया गया था।
तत्कालीन सेशन जज ने भी फैसला सुनाते हुए इसे एक सोचा समझा, राजनीतिक हमला बताया था। पूरे मामले में कम से कम एक अभियुक्त को सज़ा हुई। पुलिस प्रमुख ने भी अपनी रिपोर्ट राजा को सौंपी — लेकिन सामाजिक सौहार्द और शांति बनाए रखने के नाम पर ये रिपोर्ट कभी भी सार्वजनिक नहीं की गई।
लिहाजा प्रश्न उठते हैं कि आख़िर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या था– जिसके सार्वजनिक होने से समाज की शांति–सौहार्द को खतरा पैदा हो जाता ?
आख़िर सजा पाने वाले अभियुक्त की पहचान, उसका नाम कभी सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया ? क्या वो किसी मज़हब विशेष से संबंध रखता था?
पटेल बार–बार प्रतिक्रिया न देने और सौहार्द–शांति बनाने रखने की अपील क्यों कर रहे थे?
पटेल पर हमले की घटना क्यों दबा दी गई?
क़रीब 86 सालों तक इस पर पर्दा पड़ा रहा, हमलावरों के नाम और उनकी पहचान को गुप्त रखा गया। यहां तक कि जाँच रिपोर्ट्स को भी अलमारी में बंद कर दिया गया। लेकिन अब सरदार पटेल की 150 वीं जयंती पर ये मोदी सरकार ने ये दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए हैं, जिसमें इन हमलों का ज़िम्मेदार मुस्लिम लीग को बताया गया है।
 इतिहासकार रिजवान कादरी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की है, जिसमें FIR की तस्वीर भी दिख रही है और इसमें लिखे नाम स्पष्ट रूप से बताते हैं कि हमलावर मुस्लिम समुदाय के थे।
वैसे हैरानी की बात ये भी है कि ‘नगीना मस्जिद हमला’ के नाम से विख्यात इस घटना से संबंधित कोई दस्तावेज, कोई विशेष रिकॉर्ड मौजूद ही नहीं है।
न तो कोर्ट के फैसले से संबंधित दस्तावेज हैं, न एफआईआर मौजूद है और न ही किसी अन्य प्रकार के रिकॉर्ड। जबकि अंग्रेजों ने इससे कहीं पहले की और पुरानी घटनाओं के रिकॉर्ड अच्छी तरह मेंटेन करके रखे थे।
 किसी प्रकार के संस्मरणों में, या अन्य जगहों पर भी पटेल पर हुए इस हमले का कोई जिक्र नहीं मिलता।
 जबकि सच्चाई ये है कि भावनगर रियासत में सरदार पटेल की हत्या का प्रयास भारतीय इतिहास में अत्यंत शर्मनाक प्रसंग था। और अगर हमलावरों की योजना सफल हो जाती तो शायद 562 रियासतों (जिनमें से 222 केवल काठियावाड़ में थीं) का भारत संघ में विलय कभी न हो पाता।
तब भारत का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी पूरी तरह बदला हुआ होता। लेकिन ये भारत का सौभाग्य था कि और ईश्वर की कृपा कि बचुभाई, जादवजी भाई जैसे जाँबाज़ युवकों ने वो वार अपने सीने पर झेल लिए और भारत के भविष्य को बचा लिया।
और अब 86 वर्षों के बाद ये सच्चाई सामने आई है कि आख़िरकार कांग्रेसी सरकारों ने भी पटेल पर हुए हमलों की स्मृति तक को क्यों मिटा दिया?  महात्मा गांधी की हत्या के लिए RSS को कटघरे में खड़ा करने वाला राजनीतिक दल पटेल पर हुए जानलेवा हमले के लिए कभी मुस्लिम लीग की आलोचना क्यों नहीं कर सका?
 






















 
 




