महाराष्ट्र के पुणे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर जुबैर हैंगार्डेकर की गिरफ्तारी ने भारत की आतंरिक सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है। यह केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि उस खतरनाक सच्चाई का पर्दाफाश है कि अब आतंकवाद केवल बंदूक और बारूद तक सीमित नहीं रहा, वह कोड, चैट और सर्वर के रूप में हमारे बीच घुस चुका है। जुबैर की गिरफ्तारी ने यह साबित कर दिया है कि भारत के अंदर शिक्षा, तकनीक और धर्म के नाम पर वैचारिक युद्ध चलाया जा रहा है, जिसे पहचानना और रोकना आसान नहीं है। यह वही दौर है जब एक प्रशिक्षित इंजीनियर लैपटॉप और एन्क्रिप्शन की मदद से किसी आतंकी संगठन के लिए हथियारों से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
पुणे एटीएस ने जिस जुबैर को गिरफ्तार किया, वह लंबे समय से अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के डिजिटल नेटवर्क से जुड़ा हुआ था। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, लेकिन अपनी तकनीकी दक्षता का इस्तेमाल युवाओं को कट्टरपंथी बनाने, उनके डेटा ट्रैक मिटाने और आतंकी संदेशों को एन्क्रिप्टेड रूप में भेजने के लिए कर रहा था। एटीएस ने उस पर महीनों तक निगरानी रखी, उसके ऑनलाइन मूवमेंट्स, सोशल मीडिया हैंडल्स, क्रिप्टोकरेंसी से हुए ट्रांजैक्शन और चैटिंग ऐप्स पर उसकी गतिविधियों को ट्रैक किया। जांच में यह भी सामने आया कि जुबैर महाराष्ट्र के अलावा दिल्ली और भोपाल में सक्रिय कुछ युवाओं के संपर्क में था, जो खुद इस्लामिक स्टेट की साइबर शाखा से निर्देश ले रहे थे।
सीरिया से दिये जा रहे थे संदेश
दिल्ली से मिला उसका तार सबसे अहम है। सादिक नगर से गिरफ्तार मोहम्मद अदनान खान उर्फ अबू मुहरिब और भोपाल से पकड़ा गया अदनान खान उर्फ अबू मोहम्मद उसी नेटवर्क का हिस्सा थे, जिससे जुबैर भी जुड़ा था। यह नेटवर्क सीरिया में बैठे एक डिजिटल हैंडलर के अधीन काम कर रहा था। वह हैंडलर टेलीग्राम और एन्क्रिप्टेड चैट प्लेटफॉर्म्स के जरिये भारत में मौजूद स्लीपर सेल्स को टास्क देता था। इन तीनों के बीच की बातचीत से यह भी पता चला कि देश में कुछ खास धार्मिक आयोजनों और सार्वजनिक स्थानों को निशाना बनाने की योजना बनाई जा रही थी। यही वह बिंदु था, जब एटीएस ने तत्काल कार्रवाई करने का फैसला किया।
भारत की खुफिया एजेंसियों ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अलकायदा और आईएस की विचारधारा का नया रूप साइबर-आतंकवाद है। अब वह न तो किसी सीमांत क्षेत्र तक सीमित है, न किसी खास भाषा या क्षेत्र तक। यह विचारधारा अब सोशल मीडिया के जरिये, धार्मिक प्रचार के नाम पर, गेमिंग प्लेटफॉर्म्स और चैटबॉट्स के माध्यम से युवाओं के दिमाग में इंजेक्ट की जा रही है। जो पहले आतंक का मैदान अफगानिस्तान या सीरिया हुआ करता था, वह अब भारत के शहरी लैब्स, सॉफ्टवेयर कंपनियों और यूनिवर्सिटीज़ में स्थानांतरित हो चुका है।
गहरी हैं नेटवर्क की जड़ें
जुबैर की गिरफ्तारी के बाद एटीएस ने चेन्नई एक्सप्रेस से चार संदिग्धों को भी पकड़ा, जिनके पास से हार्ड ड्राइव, सिम कार्ड, नक्शे और हस्तलिखित नोट्स मिले। 9 अक्टूबर को पुणे और आसपास के क्षेत्रों में छापेमारी में भी एटीएस को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और धार्मिक सामग्री मिली, जिससे यह संकेत मिला कि इस नेटवर्क की जड़ें गहरी हैं। भारत में लंबे समय से इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के बीच एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा रही है — कौन भारत के अंदर अधिक प्रभाव जमा सकता है। अलकायदा का झुकाव वैचारिक प्रचार और संगठित संरचना पर रहा, जबकि आईएस ने डिजिटल मीडिया और त्वरित भर्ती मॉडल पर ध्यान केंद्रित किया। जुबैर का नेटवर्क दोनों के मिश्रण जैसा था — वैचारिक रूप से अलकायदा से प्रेरित और तकनीकी रूप से आईएस से प्रशिक्षित।
खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि भारत में सक्रिय यह नेटवर्क तुर्की और सीरिया से संचालित सर्वरों के माध्यम से काम कर रहा है। इनका फोकस डिजिटल दावत नामक प्रक्रिया पर है — यानी पहले ऑनलाइन धार्मिक चर्चा के माध्यम से युवाओं को अपने करीब लाना, फिर धीरे-धीरे राजनीतिक इस्लाम और जिहादी विचारधारा की तरफ मोड़ना। एक बार जब लक्ष्य मानसिक रूप से तैयार हो जाता है, तब उसे एन्क्रिप्टेड नेटवर्क्स में जोड़ा जाता है, जहां से उसे फंडिंग, तकनीकी प्रशिक्षण और टारगेट चुनने की प्रक्रिया सिखाई जाती है। यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी भौतिक मुलाकात के होती है, और यही इसे सबसे खतरनाक बनाती है।
इंटरनेट पर फैलता आतंकवाद
भारत में यह प्रवृत्ति नई नहीं है, लेकिन अब इसका स्वरूप अत्यंत विकसित हो गया है। पहले जहां आतंकवादी संगठन मस्जिदों, मदरसों या सीमांत इलाकों के माध्यम से युवाओं को जोड़ते थे, अब वे इंस्टाग्राम और टेलीग्राम पर नकली अकाउंट्स बनाकर उन्हीं युवाओं को संबोधित कर रहे हैं, जो खुद को आधुनिक, डिजिटल और जागरूक समझते हैं। यह मनोवैज्ञानिक युद्ध का सबसे नया रूप है — जहां हथियार दिमाग बन जाता है और लड़ाई सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म के जरिये लड़ी जाती है।
जुबैर जैसे इंजीनियर का इस नेटवर्क में होना कोई संयोग नहीं है। आतंकवाद के विशेषज्ञ बताते हैं कि आधुनिक आतंकी संगठनों को अब सिर्फ बंदूक उठाने वाले सैनिकों की जरूरत नहीं, बल्कि ऐसे तकनीकी दिमागों की जरूरत है जो उनके मिशन को डिजिटल अमरता दे सकें। एक सॉफ्टवेयर डेवलपर अगर एक दिन में एक एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल बना सकता है, तो वह सुरक्षा एजेंसियों के महीनों के प्रयासों को निष्फल कर सकता है। यही कारण है कि भारत के सामने अब आतंकवाद की नई परिभाषा उभर रही हैख् जिसमें हथियार नहीं, बल्कि कोड सबसे बड़ा खतरा है।
इस पूरी कहानी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारत का शहरी, शिक्षित मुस्लिम युवावर्ग धीरे-धीरे उस विचारधारा की ओर खिंचता जा रहा है, जो खुद को इस्लाम का रक्षक बताती है लेकिन वास्तव में इस्लाम की सबसे बड़ी दुश्मन है। यह वह विचारधारा है जो मनुष्य को पहले आस्था के नाम पर अलग करती है, फिर उसे राष्ट्र से विमुख करती है, और अंततः उसके हाथ में विनाश का औजार थमा देती है। जुबैर का उदाहरण बताता है कि कैसे एक पढ़ा-लिखा युवक तकनीक और धर्म के संगम पर अपनी पहचान खो देता है और एक वैश्विक साजिश का मोहरा बन जाता है।
भारत के लिए यह चेतावनी है। हमारी सुरक्षा एजेंसियां भले हर साजिश को नाकाम कर रही हों, लेकिन अगर समाज के भीतर वैचारिक सतर्कता नहीं बढ़ी, तो यह खतरा केवल और फैलता जाएगा। हमें यह समझना होगा कि अब देश की सुरक्षा केवल सेना की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो डिजिटल स्पेस में सक्रिय है। किसी भी व्हाट्सएप ग्रुप, टेलीग्राम चैनल या ऑनलाइन प्रवचन में अगर राष्ट्र विरोधी विचारधारा फैलती दिखे, तो चुप रहना भी अपराध है।
भारत के सामने बड़ी चुनौती
जुबैर की गिरफ्तारी से यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब यह है कि कैसे तकनीक का उपयोग राष्ट्र निर्माण में किया जाए, न कि उसके खिलाफ। जो कोड कल रक्षा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास के लिए लिखा जा सकता था, वही कोड अगर किसी आतंकी नेटवर्क के लिए एन्क्रिप्शन टूल बन जाए, तो यह तकनीक का सबसे बड़ा नैतिक पतन है। भारत को अब तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ डिजिटल नैतिकता और राष्ट्रनिष्ठा की शिक्षा को भी उतना ही महत्व देना होगा, जितना किसी लैब में प्रयोगों को दिया जाता है।
अंततः यह मामला केवल एक अभियुक्त का नहीं, बल्कि एक विचार का है। वह विचार जो आधुनिकता का मुखौटा पहनकर युवाओं को अंधकार में धकेल रहा है। जुबैर हैंगार्डेकर का नाम भले इतिहास में एक अभियुक्त के रूप में दर्ज हो, लेकिन उसके पीछे की कहानी भारत के लिए एक दर्पण है — जिसमें हमें अपनी ही छवि दिखती है कि हम किस तेजी से तकनीक को हथियार बना चुके हैं, और किस लापरवाही से उसे गलत हाथों में जाने दे रहे हैं। भारत की लड़ाई अब बंदूक से नहीं, दिमाग से लड़ी जाएगी, और इस बार मोर्चा साइबरस्पेस में होगा, जहां हर क्लिक, हर कोड, और हर संदेश राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल बन जाएगा।


























