भारत और अमेरिका के बीच बहु-प्रतीक्षित व्यापार समझौते की खबर पिछले दो दिनों से भारतीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। बताया जा रहा है कि इस डील से भारतीय निर्यातकों को भारी राहत मिल सकती है। विशेषकर उन उत्पादों को जिन पर वर्तमान में अमेरिका ने 50 फीसदी तक का टैरिफ लगाया हुआ है। मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि इस टैरिफ को घटाकर 15-16 फीसदी तक लाया जा सकता है।
सबसे पहले यह खबर Mint ने प्रकाशित की। लेख में रिपोर्टर ने लिखा According to three people aware of the matter यानी मामले से परिचित तीन लोगों के अनुसार। यही वह वाक्य है जिसने इस पूरी खबर की नींव रखी। Mint ने लिखा कि भारत और अमेरिका के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते पर काम लगभग पूरा हो चुका है और अब केवल राजनीतिक मंजूरी बाकी है। रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया कि भारत अमेरिकी पक्ष के दबाव में रूसी कच्चे तेल के आयात में कमी लाने को तैयार हो सकता है। अमेरिकी न्यूज एजेंसी Reuters ने साफ लिखा कि The Mint newspaper reported, citing three people aware of the matter…”। यानी उन्होंने न केवल स्रोत का हवाला दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि यह Mint की रिपोर्ट पर आधारित है।
इसलिए तकनीकी रूप से देखें तो खबर का प्राथमिक स्रोत Mint है, जबकि बाकी सभी मीडिया संस्थान उसके द्वितीयक प्रसारक हैं। किसी भी सरकारी या अंतरराष्ट्रीय संस्था ने इस पर अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। वाणिज्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय या अमेरिकी USTR (United States Trade Representative) कार्यालय किसी ने भी न तो पुष्टि की है और न ही खंडन।
Mint के अनुसार, प्रस्तावित व्यापार समझौते के तहत अमेरिका भारतीय निर्यातित उत्पादों पर लगने वाले 50 फीसदी तक के टैरिफ को घटाकर 15-16 फीसदी तक ला सकता है। अगर यह खबर सही साबित होती है, तो भारत के वस्त्र, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए यह बड़ी राहत होगी। भारत पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका के साथ टैरिफ पारिटी की मांग कर रहा था, खासकर तब से जब ट्रंप प्रशासन ने GSP (Generalized System of Preferences) के तहत भारत को मिलने वाली रियायतें खत्म कर दी थीं।
इस नए व्यापार समझौते का संभावित प्रभाव यह होगा कि भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता अमेरिकी बाजार में काफी बढ़ जाएगी। उदाहरण के लिए, वर्तमान में जो उत्पाद 50% ड्यूटी के कारण अमेरिका में महंगे पड़ते हैं, वे अब अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक बन जाएंगे। इससे निर्यात में वृद्धि और भारत के चालू खाते पर दबाव कम होने की संभावना बन सकती है।
समझौते की शर्तें और अमेरिका का रणनीतिक दबाव
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका, इस समझौते को भारत की ऊर्जा नीति में कुछ “स्ट्रक्चरल बदलावों” से जोड़ना चाहता है। विशेष रूप से, अमेरिका चाहता है कि भारत धीरे-धीरे रूसी कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता घटाए और अमेरिकी या पश्चिमी आपूर्तिकर्ताओं से तेल खरीदे। Mint की रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया कि “India may gradually reduce Russian crude imports, and has already informally communicated this to Moscow.”
अगर यह बात सही है, तो यह व्यापारिक समझौते के साथ-साथ एक भू-राजनीतिक पुनर्संतुलन की दिशा में भी संकेत करता है। यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने बार-बार भारत से यह आग्रह किया है कि वह रूस से तेल खरीद घटाए। भारत अब तक यह कहता आया है कि वह राष्ट्रीय हित के आधार पर ऊर्जा खरीद तय करेगा, लेकिन अब व्यापारिक लाभ के एवज में ऊर्जा नीति में लचीलापन दिखाना भारत का बड़ा रणनीतिक कदम होगा।
अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार का खुलना
खबर का एक और अहम पहलू यह है कि भारत अमेरिकी गैर-जीएम (Non-GMO) मक्का और सोयामील के लिए अपने बाजार की पहुंच बढ़ा सकता है। यह भी Mint की रिपोर्ट में था, जिसे बाद में Reuters और Economic Times ने भी प्रमुखता से लिया। दरअसल, चीन ने हाल ही में अमेरिकी मक्का आयात में भारी कटौती की है, जिससे अमेरिकी किसानों को नए बाजारों की जरूरत है। भारत की ओर झुकाव इसलिए भी है, क्योंकि यहां पोल्ट्री, डेयरी और इथेनॉल उद्योगों में तेजी से इसकी मांग बढ़ रही है। अगर भारत गैर-जीएम सोयामील आयात पर टैरिफ कम करता है, तो यह अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण राहत होगी।
हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने उच्चस्तरीय चीज़ और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ कटौती से अभी इनकार किया है। यह भारतीय डेयरी उद्योग के दबाव का परिणाम माना जा रहा है।
ASEAN शिखर सम्मेलन में हो सकती है घोषणा
Mint ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिया कि इस समझौते की घोषणा 26–28 अक्टूबर 2025 के बीच कुआलालंपुर में होने वाले ASEAN शिखर सम्मेलन के दौरान की जा सकती है। हालांकि, इस संबंध में कोई औपचारिक एजेंडा अभी जारी नहीं हुआ है। Reuters की रिपोर्ट ने भी लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी के इस सम्मेलन में शामिल होने की संभावना कम है और भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर शिरकत कर सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर घोषणा होती भी है, तो वह किसी बड़े मंच से नहीं बल्कि राजनयिक स्तर पर हो सकती है।
भारत की ऊर्जा नीति में संभावित बदलाव
रिपोर्ट में जो सबसे संवेदनशील दावा किया गया है, वह यह कि भारत सरकार ने कथित तौर पर रूस को यह सूचित कर दिया है कि वह कच्चे तेल के आयात में कुछ कटौती करेगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की कुल तेल जरूरत का करीब 34% हिस्सा रूस से आता है, जो कि 2022 के बाद से अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया था।
भारत वर्तमान में अपनी ऊर्जा जरूरतों का करीब 10% हिस्सा अमेरिका से भी पूरा करता है। यदि यह समझौता होता है, तो भारतीय तेल कंपनियों को गैर-रूसी विकल्पों की ओर मोड़ने की सलाह भी दी जा सकती है। इसका उद्देश्य अमेरिकी हितों के साथ सामंजस्य बैठाना और संभावित टैरिफ छूटों का लाभ उठाना होगा।
द्विपक्षीय व्यापार का बढ़ता पैमाना
भारत-अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार पहले से ही अभूतपूर्व स्तर पर है। वित्त वर्ष 2024-25 में यह 137 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में ही यह 71.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में करीब 12% की वृद्धि दर्शाता है। अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। पिछले वर्ष भारत से अमेरिका को निर्यात 45.8 अरब डॉलर रहा, यानी कुल निर्यात का लगभग 19%। इस पृष्ठभूमि में देखें तो अगर टैरिफ 50% से घटाकर 15-16% कर दिया जाता है, तो इसका प्रत्यक्ष लाभ भारत के MSME और टेक्सटाइल सेक्टर को मिलेगा।
अब सवाल उठता है कि क्या तीन लोगों के हवाले से आई यह जानकारी इतनी बड़ी नीति-स्तरीय खबर का आधार हो सकती है? पत्रकारिता में यह आम है कि शुरुआती संकेत अनाम सूत्रों से मिलते हैं, परंतु जब तक कोई दस्तावेज़ या अधिकारी सामने नहीं आता, खबर को फाइनल नहीं कहा जा सकता।
Mint की रिपोर्ट में केवल इतना लिखा गया कि वे मामले से परिचित हैं। यह अस्पष्टता आवश्यक भी होती है, क्योंकि अक्सर ऐसी बातचीतें संवेदनशील होती हैं। लेकिन जब Reuters जैसे अंतरराष्ट्रीय माध्यम इसे आगे बढ़ाते हैं, तो वह एक स्तर की विश्वसनीयता जोड़ देता है। फिर भी, Reuters ने खुद यह स्पष्ट किया कि उन्होंने Mint की रिपोर्ट को उद्धृत किया है, अपनी स्वतंत्र जांच से नहीं। यानी, वर्तमान स्थिति में यह खबर विश्वसनीय माध्यमों के जरिए प्रसारित एक अनौपचारिक सूचना है, न कि आधिकारिक घोषणा।
राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से महत्व
अगर यह व्यापार समझौता सचमुच साकार होता है, तो यह मोदी सरकार की बड़ी आर्थिक सफलता मानी जाएगी। अमेरिका के साथ व्यापारिक समानता और ऊर्जा सहयोग दोनों ही भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को नई परिभाषा देंगे।
दूसरी ओर, रूस के साथ भारत के संबंधों में एक हल्का सा ठंडापन भी आ सकता है, क्योंकि मॉस्को अब तक भारत को सबसे रियायती दरों पर कच्चा तेल दे रहा था। भारत को यह संतुलन बेहद सावधानी से साधना होगा, न तो वाशिंगटन को नाराज़ करना है और न ही मॉस्को को।
इस खबर की सच्चाई को पूरी तरह समझने के लिए यह स्वीकार करना होगा कि अभी तक कोई भी सरकारी दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं हुआ है। पूरा नैरेटिव केवल Mint के तीन अनाम सूत्रों पर आधारित रिपोर्ट से निकला है, जिसे बाद में Reuters, NDTV, ET, IndiaToday जैसे माध्यमों ने रिप्रोड्यूस किया।
इसके बाद भी, इस प्रकार की खबरें कई बार नीति-पूर्व संकेत (policy signalling) का भी काम करती हैं। भारत और अमेरिका दोनों ही देशों में मीडिया का उपयोग रणनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जाता है। इसलिए यह संभव है कि यह रिपोर्ट किसी पॉलिसी टेस्ट-बैलून की तरह छोड़ी गई हो, ताकि सार्वजनिक प्रतिक्रिया देखी जा सके।
यदि 26–28 अक्टूबर के ASEAN सम्मेलन के दौरान इस पर कोई घोषणा होती है, तो यह भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। लेकिन जब तक कोई औपचारिक पुष्टि नहीं होती, तब तक इसे प्रतीक्षित और संभावित सौदा ही कहा जा सकता है एक ऐसा सौदा, जिसने अभी से वैश्विक तेल बाजार, कृषि व्यापार और भारत-अमेरिका रिश्तों में हलचल पैदा कर दी है।