राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह तक़रीबन 55 वर्ष के अतुल लिमये वैसे तो पेशे से इंजीनियर रहे हैं, लेकिन उन्होने बार–बार अपनी विशेषज्ञता एक अलग तरह की इंजीनियरिंग में साबित की है। वो है– सोशल इंजीनियरिंग, अलग अलग दलों को साधने और उनके साथ तालमेल बिठाने की इंजीनियरिंग, ताकि समाज, संगठन और सत्ता का संतुलन सधा रहे और गाड़ी बिना हिचकोले खाए, सरपट चलती रहे।
संघ और भाजपा के समन्वय का काम देखेंगे अतुल लिमये
महाराष्ट्र में महायुति के विजयरथ की बागडोर संभालने वाले अतुल लिमये को अब एक और बड़ी जिम्मेदारी मिली है। इस बार उन्हें संगठन (संघ) और भाजपा के बीच समन्वय देखने की अहम जिम्मेदारी मिली है। इससे पहले ये जिम्मेदारी हरियाणा क्षेत्र से आने वाले संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार के पास थी, लेकिन सूत्रों की मानें तो जबलपुर में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में ये फैसला लिया गया कि अब बीजेपी के साथ समन्वय का काम अतुल लिमये देखेंगे।
नासिक के रहने वाले अतुल लिमये तीन दशक पहले एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़ने के बाद RSS में प्रचारक के तौर पर शामिल हुए थे। संगठन में अपना काम करते हुए अपनी कार्यकुशलता और समर्पण के चलते जल्दी ही वो पश्चिमी महाराष्ट्र के ‘प्रांत प्रचारक‘ बने और फिर ‘क्षेत्र प्रचारक‘ के पद तक पहुँचे। बाद में उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा में संघ की कमान भी संभाली।
महाराष्ट्र में ‘महायुति’ की जीत के ‘सूत्रधार’
हाराष्ट्र में उन्होने हिंदू वोटों को एकजुट करते हुए एक मजबूत जमीनी आधार भी तैयार किया। वर्ष 2016-17 में छत्रपति शिवाजी की विरासत का जश्न मनाने के लिए आयोजित किए गए ‘शिव शक्ति संगम’ कार्यक्रम में भी उनकी बड़ी भूमिका रही थी। इस कार्यक्रम में राज्य से 60,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया था।
संघ के मतदाता जागरूकता अभियान “सजग रहो” के पीछे भी उनकी ही भूमिका बताई जाती है, जिसके तहत स्वयंसेवकों ने घर–घर जाकर वोटों को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया। इस संपर्क कार्यक्रम के चलते संघ ओबीसी समाज में अपनी पकड़ और मज़बूत करने में कामयाब रहा।
संगठन में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई रिसर्च ग्रुप, थिंक टैंक और बौद्धिक समूहों का गठन किया, जो कई मुद्दों, खासकर मुस्लिम और ईसाई समुदायों से जुड़े मुद्दों पर काम करते थे, और सरकारी नीतियाँ तैयार करते थे। माना जाता है कि उनकी नीतियों ने ही संगठन और भाजपा को 2017 के मराठा आरक्षण आंदोलन और 2018 के ‘अर्बन नक्सल‘ मुद्दों से निपटने में मदद की।
फ़िलहाल वो संघ में विमर्श, सोशल मीडिया, नैरेटिव से जुड़े मुद्दों पर भी सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं और अब संगठन के साथ तालमेल का भी बड़ा दायित्व भी उनके कंधे पर है।



























