आज से दो साल पहले, 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर बड़ा हमला किया था। उसने सोचा कि इज़राइल इससे दब जाएगा और फिलिस्तीनी राज्य का सपना पूरा हो जाएगा। इस हमले में 1,200 इज़राइली मारे गए, जिसने इज़राइल को झकझोर दिया और एक “सोए हुए शेर” को जगा दिया।
इज़राइल ने भी बड़ा हमला किया। हवाई हमले, तोप और जमीन पर कार्रवाई से गाजा के कई इलाके पूरी तरह टूट गए। अस्पताल, स्कूल और घर भी नष्ट हो गए। आज, जब गाजा में सभी इलाके ध्वस्त हो चुके हैं और हवाई तस्वीरों में बस मलबा दिखता है, यह स्पष्ट हो गया है कि हमास के कदम ने दो-राज्य समाधान के सपने को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
7 अक्टूबर 2023 का हमला: हमास की योजना और उसकी त्रासदी
सुबह होते ही हमास ने इज़राइल पर बड़ा हमला किया। उन्होंने कई घंटों में 2,200 से ज्यादा रॉकेट दागे, जिससे इज़राइल की ‘आयरन डोम’ प्रणाली भी काम नहीं आई। साथ ही सैकड़ों हमलावर गाजा से सीमा पार करके शहरों और सेना पर हमला करने आए।
इस हमले में 1,200 लोग मारे गए, जिनमें कई आम नागरिक थे, और 240 लोगों को बंधी बना लिया गया। जिनमें महिलाएं, बच्चे और विदेशी भी शामिल थे। नोवा म्यूजिक फेस्टिवल पर हमला सबसे भयानक था, जहां सैकड़ों युवा मारे गए। इज़राइल ने इसे केवल आतंकवाद नहीं, बल्कि पूर्ण युद्ध की घोषणा माना। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तुरंत “ऑपरेशन आयरन स्वोर्ड्स” शुरू किया और कहा कि हमास को “भारी कीमत” चुकानी होगी।
ऑपरेशन आयरन स्वोर्ड्स: इज़राइल की कड़ी प्रतिक्रिया
इज़राइल की सेना ने जबरदस्त जवाब दिया। हवाई हमले, तोप और जमीन पर अभियान से गाजा पूरी तरह युद्ध का मैदान बन गया। कुछ ही हफ्तों में गाजा सिटी, राफाह और खान यूनिस के इलाके मलबे में बदल गए। अस्पताल, स्कूल और घर सब नष्ट हो गए।
2025 की शुरुआत तक, उपग्रह तस्वीरों में गाजा की तबाही साफ़ दिखाई दे रही थी। लगभग 70% इलाके मलबे में बदल चुके थे। लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए और हजारों लोग मर गए। मानवाधिकार समूहों ने इसे बहुत बड़ा नुकसान बताया, लेकिन इज़राइल का कहना था कि हमास ने नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया, इसलिए यह नुकसान अनिवार्य था।
इज़राइल के लिए यह युद्ध ज़िन्दगी और अस्तित्व का सवाल था। हमास की योजना सफल नहीं हुई। जो हमला फिलिस्तीनी प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए किया गया था, उसने दो-राज्य समाधान का सपना हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
वैश्विक असर: दुनिया में विभाजन और बदलता दृष्टिकोण
दो साल बाद भी इस युद्ध का असर सिर्फ पश्चिम एशिया तक ही नहीं है। इज़राइल पर युद्ध अपराध और जनसंहार के आरोपों के कारण दुनिया में गुस्सा बढ़ गया है। गाजा में हुई मौतों की संख्या लाखों में बताई जा रही है, जिससे इज़राइल के प्रति पहले की सहानुभूति भी कम हो गई है। इसके बावजूद इज़राइली सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है।
अमेरिका भी अब और ज्यादा धैर्य नहीं दिखा रहा। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने reportedly नेतन्याहू को चेतावनी दी कि वह अमेरिकी मध्यस्थता वाली समझौता योजना क्यों नहीं मान रहे। यूरोप में भी राजनीतिक बदलाव दिख रहे हैं। फ्रांस, स्पेन, आयरलैंड और फिनलैंड ने फिलिस्तीनी राज्य को तुरंत मान्यता देने की मांग की। लेकिन यह समर्थन सिर्फ मदद या मानवतावादी कारणों के लिए नहीं है, बल्कि राजनीतिक कारणों से भी है।
हालांकि कूटनीतिक चर्चा चल रही है, गाजा की जमीन पर हालात वैसा ही बुरा है। फिलिस्तीनी सपना टूट चुका है और इज़राइल अपनी स्थिति मजबूत बनाए हुए है।
भारत का संतुलित दृष्टिकोण: इज़राइल का समर्थन, शांति का आग्रह
इस पूरे समय में भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संतुलित और सोच-समझकर नीति अपनाई। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ इज़राइल का समर्थन किया, लेकिन साथ ही फिलिस्तीनी नागरिकों की मदद और बातचीत की जरूरत पर भी जोर दिया।
2025 में भारत ने गाजा में नागरिकों की सुरक्षा पर एक यूएन प्रस्ताव पर मतदान में अब्सटेन किया। बाद में मोदी ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और नेतन्याहू दोनों से मिलकर शांति और स्थिरता की जरूरत पर जोर दिया।
यह दिखाता है कि भारत केवल आतंक के खिलाफ ही नहीं, बल्कि मानवता और शांति के पक्ष में भी मजबूती से खड़ा है।
दो-राज्य समाधान का अंत
आज गाज़ा की हालत बहुत ही गंभीर है। जो जगहें कभी ज़िन्दा और रोशन थीं, अब मलबे में बदल गई हैं। हर टूटे घर और बेघर हुए परिवार के साथ फिलिस्तीनी राज्य का सपना दूर होता गया।
हमास का 7 अक्टूबर का हमला फिलिस्तीनी आज़ादी की शुरुआत नहीं, बल्कि उसके खत्म होने जैसा साबित हुआ।
दो साल बाद साफ़ दिख रहा है: इज़राइल मजबूत हुआ, हमास अलग-थलग पड़ा और फिलिस्तीन बर्बाद हो गया। यह युद्ध सिर्फ गाज़ा का नक्शा ही नहीं बदला, बल्कि पूरे पश्चिम एशिया की राजनीति भी बदल दी।
हमास ने जान-बूझकर स्थिति बिगाड़ी, जिससे दो-राज्य का सपना गाज़ा के मलबे में दब गया। आतंक से देश नहीं बनते, केवल तबाही होती है।