अमेरिका इन दिनों एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। शटडाउन लागू हो जाने के बाद सरकारी दफ्तरों के ताले लग चुके हैं और लाखों कर्मचारियों के सामने रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने का सवाल खड़ा हो गया है। तनख्व़ाह रुकने का डर उनके चेहरों पर साफ झलक रहा है। वजह साफ है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सीनेट से फंडिंग बिल पारित कराने में नाकाम रहे। नतीजतन 2019 के बाद पहली बार अमेरिका को सरकारी शटडाउन का सामना करना पड़ रहा है।
मंगलवार देर रात हुए मतदान में फंडिंग बिल को 55 वोट मिले, जबकि विरोध में 45 वोट पड़े। लेकिन नियम के अनुसार 60 वोटों का समर्थन ज़रूरी था। रिपब्लिकन पार्टी के पास सिर्फ 53 सांसद हैं और डेमोक्रेट्स ने समर्थन देने से साफ इंकार कर दिया। ऐसे में ट्रम्प की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं। अमेरिकी व्यवस्था के मुताबिक सरकार को हर साल बजट पास करना होता है। अगर समय सीमा के भीतर सहमति नहीं बनती, तो फंडिंग रुक जाती है और सरकारी तंत्र ठप पड़ जाता है। ठीक यही मंगलवार की मध्यरात्रि को हुआ। सीनेट में फेडरल फंडिंग बढ़ाने का प्रस्ताव पास नहीं हो सका। इसके बाद ट्रम्प ने डेमोक्रेट्स पर सरकार बंद कराने का आरोप लगाया और यहां तक कह दिया कि हालात न सुधरे तो वे कर्मचारियों की छंटनी की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकते हैं।
अब आगे क्या
करीब सात साल बाद अमेरिका की संघीय सरकार फिर से बंद हो चुकी है। मंगलवार को सीनेट में फेडरल फंडिंग बढ़ाने का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। मध्यरात्रि तक इसे पास करने की आख़िरी समय सीमा थी, लेकिन सहमति न बनने से सरकारी कामकाज रुक गया और देश आधिकारिक तौर पर शटडाउन की स्थिति में पहुँच गया। अमेरिकी व्यवस्था के तहत हर साल बजट को संसद की मंज़ूरी मिलना अनिवार्य है। लेकिन जब सांसद आपसी सहमति तक नहीं पहुँचते, तो फंडिंग का प्रवाह रुक जाता है। इसका असर सीधे सरकारी विभागों और सेवाओं पर पड़ता है जैसे गैर-जरूरी कार्य बंद हो जाते हैं और ज़रूरी सेवाओं पर भी दबाव बढ़ जाता है। यही कारण है कि आज लाखों अमेरिकी परिवार अनिश्चितता के साए में जी रहे हैं।
रिपब्लिकन पार्टी ने साफ कर दिया है कि वे फंडिंग बिल को रोज़ाना सीनेट में पेश करेंगे, जब तक कि डेमोक्रेट्स झुककर समर्थन नहीं देते। राजनीतिक खींचतान लगातार तेज होती जा रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस गतिरोध के लिए डेमोक्रेट्स को जिम्मेदार ठहराया है और पहले ही संकेत दे चुके हैं कि हालात न सुधरे तो वे सरकारी कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर सकते हैं। इस समय करीब 9 लाख फेडरल कर्मचारियों पर जबरन छुट्टी का खतरा मंडरा रहा है, जिससे उनके परिवारों की आजीविका और भविष्य अधर में लटक गया है।
शटडाउन का असर
अमेरिका में लागू हुए शटडाउन का असर सिर्फ सत्ता के गलियारों तक सीमित नहीं है, बल्कि आम नागरिकों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भी साफ़ दिख रहा है। ज़रूरी सेवाएँ जैसे पुलिस, आपातकालीन अस्पताल और एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल तो चलती रहती हैं, लेकिन बाकी सरकारी कामकाज बुरी तरह प्रभावित होता है। कई विभागों में बजट न होने के कारण कर्मचारी वेतन से वंचित हो जाते हैं और कईयों को जबरन छुट्टी पर भेजा जाता है।
पासपोर्ट और वीज़ा जारी करने जैसी प्रक्रियाओं में लंबा इंतज़ार करना पड़ सकता है। सोशल सिक्योरिटी और मेडिकेयर जैसी बुनियादी सेवाएँ भी रुकावट का सामना करती हैं। सरकारी हेल्पलाइन और वेबसाइटें धीमी पड़ जाती हैं या अस्थायी रूप से बंद हो जाती हैं। नेशनल पार्क, संग्रहालय और कई सार्वजनिक कार्यक्रम बंद होने की कगार पर पहुँच जाते हैं। इसका असर छोटे व्यवसायों और उद्यमियों तक भी पहुँचता है। सरकारी अनुबंधों पर काम करने वाले ठेकेदारों को भुगतान में देरी होती है, जिससे बाज़ार की गति धीमी पड़ती है। जो छोटे व्यापारी वित्तीय सहायता के लिए सरकारी विभागों पर निर्भर हैं, वे भी असमंजस में पड़ जाते हैं।
कांग्रेस बजट ऑफिस ने शटडाउन से पहले ही आगाह कर दिया था कि यह संकट अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर गंभीर बोझ डाल सकता है। उनके आकलन के मुताबिक, हर दिन लगभग 7.5 लाख संघीय कर्मचारी मजबूरी में छुट्टी पर भेजे जा सकते हैं, और इससे सरकार को प्रतिदिन लगभग 400 मिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।