राहुल गांधी के विदेशी खासकर अमेरिकी दौरों को लेकर राजनीति होती रही है, लेकिन अब अमेरिका से जो जानकारी सामने आई है, वो राजनीति से ऊपर सुरक्षा और चिंता की बात है।
दरअसल राहुल गांधी बार–बार उन व्यक्तियों और संगठनों के साथ दिखते रहे हैं, जो लंबे समय से इस्लामिस्ट एडवोकेसी नेटवर्क के इर्द–गिर्द काम करते रहे हैं।
लेकिन ये मुद्दा अब इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि बीते 18 नवंबर 2025 को टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने Council on American-Islamic Relations (CAIR) को राज्य कानून के तहत एक विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया। यह कदम न सिर्फ़ राजनीतिक रूप से अभूतपूर्व है, बल्कि उन संगठनों की वास्तविकता पर भी नई रोशनी डालता है, जिनके साथ राहुल गांधी रिश्ते बनाते या गलबहियां करते दिखाई देते हैं।
CAIR और विवादों का पुराना नाता
एबॉट ने CAIR को मुस्लिम ब्रदरहुड का “वारिस” बताया। अब हुआ ये है कि ये सिर्फ़ कागज़ी बयान भर नहीं है—इसके साथ ही CAIR पर ज़मीन खरीद से लेकर वित्तीय लेन–देन तक कई गंभीर प्रतिबंध जुड़ गए हैं। इस फैसले ने CAIR की विचारधारा, उसके वैश्विक संबंधों और कई कट्टरपंथी संगठनों के साथ उसके कथित रिश्तों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस छेड़ दी है।
भारत के संदर्भ में भी CAIR कई बार सक्रिय रहा है। इस मुस्लिम आउटफिट ने लगातार हिंदू–विरोधी नैरेटिव फैलाए हैं, “Dismantling Global Hindutva” जैसे कार्यक्रमों को समर्थन दिया है, और भारत के खिलाफ चरमपंथी विचारों को बढ़ावा दिया है।
जनवरी 2022 में CAIR ने राणा अय्यूब की रिपोर्ट के आधार पर बॉलीवुड फिल्म ‘सूर्यवंशी’ को “खतरनाक” और “फासीवादी” बताते हुए इसके खिलाफ अभियान चलाया। CAIR ने पाकिस्तानी आतंकी आफ़िया सिद्दीकी की रिहाई के लिए अभियान चलाया—जो अमेरिकी सेना और FBI पर हमले के लिए 86 साल की सज़ा काट रही है।
इसी साल CAIR ने ‘Still Suspect’ रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें अमेरिका पर मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया गया। लेकिन CAIR ने कभी हिंदू आतंक पीड़ितों के लिए आवाज नहीं उठाई। दिसंबर 2022 में CAIR ने न्यू जर्सी में एक मोबाइल बिलबोर्ड की आलोचना की—जिसमें सिर्फ़ 26/11 की सच्चाई दिखाई गई थी। CAIR ने इसे भी मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रत बताया था।
यानी अमेरिका जैसे देश में तो ये मुस्लिम आउटफिट खुद को और मुस्लिमों को पीड़ित बताता है, लेकिन विदेशों में वही संगठन हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करता है।
इस्लामी (आतंकी) संगठन से राहुल गांधी की नजदीकी इत्तिफाक है या रणनीति
अब जरा इसी संदर्भ में राहुल गांधी के उन दौरों को याद कीजिए और उनमें CAIR और उससे संबंध रखने वाले एक्टिविस्टों से राहुल गांधी की करीबी पर नज़र डालिए।
2023 के अपने अमेरिकी दौरे में राहुल गांधी ने Sunita Vishwanath के साथ कार्यक्रम किया। वह Hindus for Human Rights की co-founder हैं। ये संगठनभी अपने कट्टर हिंदू–विरोधी विचारों के लिए जाना जाता है और इसका सीधा नाता CAIR व ICNA जैसे इस्लामिस्ट संगठनों के साथ है।
इसी प्रकार 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिकी सांसद Ilhan Omar से भी मुलाकात की—जो 2019 में CAIR के मंच पर 9/11 को “some people did something” कहकर विवादों में आई थीं। ओमर लगातार CAIR का बचाव करती रही हैं और वैश्विक इस्लामिस्ट नैरेटिव का समर्थन करती हैं। लेकिन जब इस्लामिस्ट हिंसा की बात आती है, तो वे लगभग चुप रहती हैं।
राहुल गांधी, जो खुद को “लिबरल वॉयस” की तरह पेश करते हैं, लेकिन उनका ऐसे व्यक्तियों और संगठनों से जुड़ना गंभीर सवाल उठाता है। क्या वो जाने–अनजाने में ऐसे समूहों/ संगठनों को वैधता दे रहे हैं, जो भारत और हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं?
CAIR के अलकायदा, हमास जैसे आतंकी संगठनों से संबंध रहे हैं
इसकी टाइमिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। एबॉट की घोषणा के बाद CAIR की हमास से कथित नज़दीकी भी जाँच के घेरे में आ गई है। अमेरिका, यूरोप, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देश हमास को आधिकारिक तौर पर आतंकी संगठन घोषित कर चुके हैं, ऐसे में राहुल गांधी का CAIR से जुड़े लोगों से संबंध रखना कितना सही है?
एबॉट के इस आदेश में कई नाम शामिल हैं जिनका CAIR से संबंध रहा है और जो बाद में आतंक–संबंधी मामलों में सज़ायाफ्ता पाए गए। इसमें सबसे बड़ा नाम है घासान एलाशी, ये CAIR Texas के संस्थापक सदस्य था और होली लैंड फाउंडेशन नाम की संस्था का कोषाध्यक्ष। लेकिन इसे टेरर फंडिंग के जुर्म में 65 साल की सज़ा सुनाई जा चुकी है।
इसके अलावा इस लिस्ट में अर्बदुर्रहमान अलमाउदी भी शामिल है। CAIR के इवेंट्स में अक्सर स्पीच देने वाला अलमाउदी बाद में अल–कायदा को फंडिंग करने के लिए दोषी पाया गया। इसी तरह Randall Todd Royer, जो CAIR में कम्युनिकेशंस स्पेशलिस्ट था, उसे तालिबान और अल–कायदा की मदद करने के लिए 20 साल की सज़ा मिली।
Bassem Khafagi, CAIR का community relations director था, उसे वीज़ा और बैंक धोखाधड़ी में दोषी पाया गया।
इसी प्रकार CAIR से जुड़े रबीह हद्दाद को अल–कायदा से जुड़े Global Relief Foundation से रिश्तों के चलते देश से निकाला जा चुका है।
Sami Al-Arian, जो कि PIJ (Palestinian Islamic Jihad) के फंडिंग में दोषी था, उसे भी CAIR ने सम्मानित किया था। और CAIR के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर निहाद अवाद ने तो बकायदा 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले पर खुशी जताई थी।
हालांकि CAIR ने भी एबॉट पर पलटवार करते हुए उन्हें “इसराइल के इशारों पर चलने वाला नेता” कहा है और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का घिसापिटा आरोप लगाया है।
क्या कोई जवाब देंगे राहुल गांधी?
टेक्सास का यह कदम अब ग्लोबल पॉलिटिक्स के लिए एक नया संदर्भ बना रहा है। लेकिन भारत के लिए इसमें कई बड़े सवाल हैं। सवाल ये कि आख़िर राहुल गांधी बार–बार ऐसे लोगों और संगठनों से क्यों मिलते हैं? उनके कार्यक्रमों में बतौर गेस्ट क्यों पहुंचते हैं, जो हिंदू विरोधी रिकॉर्ड रखते हैं, इस्लामी हिंसा और आतंकवाद को जायज़ ठहराते हैं?
और अब तो अमेरिका में इस संगठन को आतंकी संगठन तक घोषित किया जा चुका है, तो क्या राहुल गांधी अब इसे लेकर कोई सफ़ाई देंगे? क्या वो बताएंगे कि एक आतंकी संगठन के साथ उनकी नजदीकियां क्यों हैं? सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका नैरेटिव उनकी घरेलू पॉलिटिक्स को जंचता है? या ये सब नेटवर्क का मामला है?
ज़ाहिर है अब जैसे–जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर चरमपंथी नेटवर्कों की जांच तेज़ होगी, और CAIR कानूनी दबाव में आएगा, राहुल गांधी के विदेशी दौरे और वहां बनाई गई उनकी रणनीतियां भी सवालों के घेरे में आएंगी, उनके ऐसे संगठनों के प्रति प्रेम पर भी सवाल उठेंगे। अब उनका ये ‘प्रेम’ विचारधारा की पसंद है, चुनावी मजबूरी है या कूटनीतिक गलती—इस पर बहस होगी, लेकिन ज़ाहिर है अब ये मामला न तो सिर्फ राहुल गांधी तक सीमित है, और न ही सिर्फ राजनीतिक रह गया है, क्योंकि अब ये भारत की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय छवि से भी जुड़ चुका है।
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