गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी वर्ष और गीता जयंती के पावन अवसर पर कुरुक्षेत्र में एक बहुत ही अर्थपूर्ण पहल देखने को मिली। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ज्योतिसर के ऐतिहासिक बरगद वृक्ष का एक पौधा भेंट किया। यह कोई सामान्य उपहार नहीं था, बल्कि आध्यात्म, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक था।
कुरुक्षेत्र को सनातन परंपरा में धर्मयुद्ध की भूमि माना जाता है। यहीं महाभारत का युद्ध हुआ और यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया। ज्योतिसर का अर्थ है “प्रकाश का स्थान” और मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ यह दिव्य संवाद हुआ। ज्योतिसर का बरगद वृक्ष उस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी माना जाता है और धर्म, साहस, कर्तव्य और समभाव जैसे मूल्यों का प्रतीक है।
गीता का संदेश—निष्काम कर्म, यानी बिना फल की इच्छा के कर्तव्य करना—आज भी मानवता को दिशा देता है। 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने ज्योतिसर को फिर से एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया था। यहाँ मिले पुरातात्विक प्रमाण इसकी प्राचीनता और सांस्कृतिक महत्व को और मजबूत करते हैं।
अब एक नई पहल के तहत इस ऐतिहासिक बरगद वृक्ष से पौधे तैयार कर पूरे देश में वितरित किए जा रहे हैं। यह केवल वृक्षारोपण नहीं है, बल्कि गीता के संदेश को एक “जीवंत परंपरा” के रूप में घर-घर और संस्थानों तक पहुँचाने का प्रयास है। इससे कुरुक्षेत्र और ज्योतिसर आध्यात्मिक आस्था के साथ-साथ हरित सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक बन रहे हैं।
प्रधानमंत्री को दिया गया यह पौधा गुरु तेग बहादुर जी के धर्म की रक्षा के लिए दिए गए बलिदान को गीता के कर्तव्य, धैर्य और साहस के संदेश से जोड़ता है। जैसे बरगद का पेड़ सभी को छाया देता है, वैसे ही यह पौधा भारत के सहिष्णुता, सद्भाव और भाईचारे के मूल्यों का प्रतीक है।
यह पहल प्रधानमंत्री की ‘एक पेड़ माँ के नाम’ और ‘मिशन LiFE’ जैसी अभियानों से भी जुड़ी है, जो यह बताती है कि प्रकृति की रक्षा करना हमारा नैतिक और भावनात्मक कर्तव्य है। गीता के अनुसार, यज्ञ भाव से किया गया कर्म मनुष्य को बंधन से मुक्त करता है।
जब दोनों नेताओं ने श्रद्धा से उस हरे पौधे को थामा, तो एक स्पष्ट संदेश गया कि पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत राष्ट्र निर्माण का अहम हिस्सा हैं। गुरु तेग बहादुर जी की शहादत और गीता जयंती जैसे पावन अवसरों को “हरित संकल्प” से जोड़कर धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी और मजबूत होती है।
आने वाले समय में जब ये पौधे विशाल बरगद बनेंगे, तो वे यह याद दिलाएंगे कि भारत की आध्यात्मिक परंपरा और प्रकृति के प्रति सम्मान एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। धर्म, पर्यावरण और राष्ट्र—तीनों मिलकर जीवन की एक ही सोच को दर्शाते हैं, जो अतीत से जुड़ी है, वर्तमान में जीवित है और भविष्य को दिशा देती है।
































