Dr Alok Kumar Dwivedi

Dr Alok Kumar Dwivedi

डा. आलोक कुमार द्विवेदी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में PhD हैं। वर्तमान में वह KSAS, लखनऊ में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। यह संस्थान अमेरिका स्थित INADS, USA का भारत स्थित शोध केंद्र है। डा. आलोक की रुचि दर्शन, संस्कृति, समाज और राजनीति के विषयों में हैं।

भारतीय चिंतन दृष्टि से संविधान: ज्ञान परंपरा में नागरिकता का इतिहास

भारतीय ज्ञान परंपरा में नागरिकता (Citizenship) का विचार आधुनिक “राज्य–नागरिक” (State–Citizen) ढाँचे से भले अलग रहा हो, पर इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन, समृद्ध और बहुआयामी है। भारतीय संविधान का भाग–2 (नागरिकता) मूलतः भारतीय ज्ञान परंपरा की उस...

संविधान दिवस: भारतीय चिंतन परंपरा की दृष्टि से संविधान 

भारत में संविधान दिवस  प्रतिवर्ष  26 नवंबर को मनाया जाता है। यह मात्र एक स्मृति-दिवस नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक क्षण का उत्सव है जब 1949 में संविधान सभा ने भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से स्वीकृत  किया।...

धर्मध्वजा स्थापना और राम मंदिर की पूर्णता अर्थात् – भारत के स्वत्व जागरण की पुनर्यात्रा

मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्तियां कि- राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है ! कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है !! राम प्रतीक हैं भारत की अस्मिता के, राम प्रतीक हैं भारत के स्वर्णिम सांस्कृतिक अहर्निश...

भारत और अफगानिस्तान: बदलती भू-राजनीतिक परिदृश्य में मजबूत रणनीतिक साझेदार

भारत और अफगानिस्तान के बीच का संबंध आधुनिक कूटनीति की उपज नहीं, बल्कि सहस्राब्दियों से बुना हुआ एक ऐसा ताना-बाना है, जो साझा इतिहास, संस्कृति और रणनीतिक जरूरतों से समृद्ध है। सिंधु घाटी सभ्यता की से लेकर...

अधर्म पर धर्म की विजय के पर्व विजयदशमी को भागवद्गीता की दृष्टि से देखने पर क्या मिलता है?

भारतीय संस्कृति में विजयादशमी को धर्म (धार्मिकता) और सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह केवल भगवान राम की रावण पर विजय का स्मरण भर नहीं है, बल्कि यह अधर्म, अहंकार और...

विदुषी संवाद- भाग 2: धर्मपारायणता और चरित्र की प्रतिमूर्ति देवी शची की कहानी

भारतीय पौराणिक परंपरा में जिन नारी चरित्रों ने अपनी धर्मनिष्ठा, बुद्धिमत्ता और असाधारण चारित्रिक दृढ़ता से इतिहास रचा है, उनमें देवराज इंद्र की अर्धांगिनी और प्रजापति पुलोमा की पुत्री देवी शची का स्थान अत्यंत उच्च और प्रेरणादायी...

“जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें”- स्वाधीनता दिवस और अखंड भारत का लक्ष्य:

एक राष्ट्र के रूप में भारत सदैव से ही जीवंत रहा है। अपनी मूल्य संस्कृति, ज्ञान – विज्ञान और वैचारिक स्पष्टता के कारण प्राचीन काल से भारतीय जनमानस ने विश्व को आलोकित किया। मूल्य शिक्षा के अनेकों...

विदुषी संवाद: धार्मिक और दार्शनिक विमर्शों में महिलाओं की भागीदारी

भारतीय संस्कृति में संवाद की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। यह परंपरा केवल विचारों के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं थी, बल्कि ज्ञान, तत्त्वबोध और आत्मबोध की खोज का माध्यम भी रही है। इस सांस्कृतिक धारा में ‘विदुषी...

योग से जोड़ो, आयुर्वेद से संवारो: विश्व-व्यवस्था का भारतीय दर्शन

तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है! जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है? सिन्धु की नि:सीमता पर लघु लहर का लास कैसा? दीप लघु शिर पर धरे...

पर्यावरण दिवस विशेष: जलवायु संकट से निपटने के लिए भारत कर रहा है ये बड़ी तैयारियां

पर्यावरण दिवस विशेष: वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक जलवायु परिवर्तन की समस्या है। इस संदर्भ में तुहिन ए. सिन्हा और डॉ. कविराज सिंह द्वारा लिखित क्लाइमेट एक्शन इंडिया (Climate Action India) पुस्तक एक सामयिक...

भगवान बुद्ध: मानवता के लिए शांति और करुणा का रास्ता

आज जब सम्पूर्ण विश्व अपने विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं से जूझ रहा है तो मानवता को किसी ऐसे विचार की आवश्यकता है जो उसका पथ प्रदर्शन कर सके। विश्व मानवता के पथ प्रदर्शक के रूप...

उरुकागिना सुधार से वैदिक साहित्य तक, प्राचीन सभ्यताओं में छिपी हैं मानवाधिकार की जड़ें

मानवाधिकारों के उच्च मानकों को आधुनिक काल में पुनर्जागरण काल के दौरान स्थापित किया गया था, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि मानवाधिकारों के कुछ पहलुओं को लगभग सभी प्रमुख संस्कृतियों द्वारा सम्मानित...

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