सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” – हिन्दी साहित्य के आधारस्तंभ
“मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, इसमें कहाँ मृत्यु? है जीवन ही जीवन अभी पड़ा है आगे सारा यौवन स्वर्ण-किरण कल्लोलों ...
“मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, इसमें कहाँ मृत्यु? है जीवन ही जीवन अभी पड़ा है आगे सारा यौवन स्वर्ण-किरण कल्लोलों ...
प्रेम माने निश्छल समर्पण, प्रेम माने त्याग प्रेम यह तो बिल्कुल नहीं है कि वो मेरी नहीं तो किसी की नहीं या प्रेम ...
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