नमस्कार गुरमेहर कौर जी,
आशा है आप स्वस्थ और खुश होंगी, ईश्वर आपको सदैव ऐसे ही खुश रखे। फरवरी 2000, ये वो वक्त था जब मैं करीबन पांच-छ साल का रहा होऊंगा, स्कूल जाना शुरू कर दिया था और इसी के साथ पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने भी उलटने लगा। उस वक्त की पत्रिकाओं में सबसे ज्यादा तस्वीरें युद्ध में अपंग हो गए फौजियों की तस्वीरें थीं, उनमें से कुछ तस्वीरें आज भी दिमाग में छपी हुई हैं और करगिल के शहीदों के लिए श्रद्धा बचपन से लेकर आजतक ज्यों की त्यों बनी हुई है। आप शायद सोच रही होंगी की मैं ये सब क्यों बतला रहा हूँ तो मैं साफ़ कर दूँ की मैं आपको यह एहसास करवाना चाहता हूँ की किस तरह अपने फौजी पिता का अपमान करके आपने नीचता की हर परकाष्ठा को पार कर दिया है। गुरमेहर जी, क्योंकि आप इस देश के सबसे एलीट संस्थानों में पढ़ी हुई हैं इसलिए शायद आपको पता ना हो कि हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में माता-पिता का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा बतलाया गया है। लेकिन आपको ये समझाने की कोशिश कर मैं एक मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहा हूँ क्योंकि आपके दिमाग में जो वामपंथ का गन्दा कीड़ा घुसा हुआ है ना उसने आपको एक मानसिक दिव्यांग की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है, वामपंथ आपको एलीट तो बना देता है परंतु आपके हृदय में जो सही मायने में आपके अपने हैं उनके लिए कोई भावनाएं ही नहीं छोड़ता।
आपने अपनी मानसिक दिव्यांगता का परिचय तो यह कहकर भी दे दिया कि अपने बचपन में आपने एक औरत पे चाकुओं से हमला करने की कोशिश की थी क्योंकि उसने बुरका पहन रखा था। गुरमेहर जी, पहली बात तो ये है कि आपका ये कथन महज़ फौरी बकवास के अलावा और कुछ भी नहीं है और अगर ये सत्य भी है तो फिर ये यह बतलाने के लिए काफी है कि आप किसी से किस हद तक नफरत कर सकती हो, उस वक्त आपकी नफरत और आपका गुस्सा उस औरत पे उतरा तो और आज आप अपने नफरत का शिकार एबीवीपी को बनाना चाहती हैं । गुरमेहर जी, किसी पे भी बल प्रयोग करना अच्छी बात नहीं है और रामजस कॉलेज में हुई घटना पर मुझे सख्त आपत्ति है मगर आपके प्रिय केजरीवाल सर के शब्दों में कहूँ तो उस दिन की घटना का सबूत क्या है आपके पास? लड़ाई एकतरफा थी इसका सबूत क्या है? अइसा के लोगों की इस झगड़े में कोई गलती नहीं थी इस बात का सबूत क्या है? क्या रामजस कॉलेज में एक देशद्रोही का भाषण करवाना गलती नहीं थी? खैर मैं इतने सवाल पूछते वक्त ये भूल जाता हूँ की वामपंथ सवाल पूछता है मगर हम वामपंथियों से सवाल करने का हक़ नहीं रखते।
गुरमेहर जी, आपने कहा कि इस देश का हरेक छात्र आपके साथ खड़ा है। माफ़ करें मगर ये सुनकर बहुत ही ज्यादा हंसी आयी, इस देश के छत्रों का ध्यान अपने भविष्य पे है ना की किसी के द्वारा प्रायोजित घटिया सोशल मीडिया मुहीम पर, आप कोई बड़ी हस्ती तो हैं नहीं नाही आपने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है इसलिए छात्रों को आपसे कोई खास मतलब नहीं है। उन्हें मतलब है डॉक्टर कलाम से, उन्हें मतलब है इसरो द्वारा हाल-फिलहाल में किये गए 104 सैटेलाइटों वाले कारनामे से क्योंकि उनका फायदा उसमें है। इस देश का छात्र सरकारी नौकरी में आकर देश में बदलाव लाने के सपने देखने में व्यस्त है, आपकी तरह देश तोड़ने के सपने नहीं देखता है वो। सच्चाई यही है कि देश के छात्रों को आपसे नफरत है क्योंकि आप जैसे लोग अपने शहीद पिता के कोटे से कम परसेंट पर भी बड़े कॉलेजों में एडमिशन लेकर उनके सपनों को नेस्तनाबूद कर देते हैं। मैं भी एक छात्र हूँ और अगर इन बड़े कॉलेजों में पढ़ाई के नाम पर ये ज़हर फैलाया जाता है तो फिर मैं खुद को बड़ा ही खुशकिस्मत मानता हूँ की मैंने एक छोटे से कॉलेज में देशसेवा का पाठ पढ़ा है।
आप डटकर लड़ने की बातें किया करती थी, अपनी हिम्मत का बखान करते हुए ढ़ेर सारी ट्वीट्स भी किये आपने और फिर जब सोशल मीडिया ने आपके झूठ का पुलिंदा खोलना शुरू कर दिया तो आपने बैकफुट पर आकर ये कह दिया की आप अब कुछ नहीं बोलेंगी। गुरमेहर जी, अगर बोलना जानती हैं तो सुनना भी सीखिए नहीं तो फिर आपको कोई नहीं सुन पायेगा। मानता हूँ की राजनीती में आने की इच्छा हर किसी में होती है और इस देश की राजनीतिक स्टार्टअप पार्टी बाकि सेक्युलर दलों के साथ मिलकर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टक्कर का कोई नेता स्थापित करने की जुगत में लगे हुए हैं मगर आपलोगों की जानकारी के लिए मैं ये बतला दूँ की नरेंद्र मोदी जमीन से जुड़े हुए नेता हैं और कड़ी मेहनत के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं नाकि भारत के टुकड़े करने की मंशा लेकर। आपके पहले कन्हैया था, उमर था और कल आपकी जगह कोई और होगा मगर आपकी चाहत ना पूरी होगी बल्कि देशवासी आपके खिलाफ मजबूती से खड़े होंगे क्योंकि यह देश चेहरे पहचानना अब अच्छे से सीख गया है।