ओड़ीशा के स्थानीय निकाय चुनाव ने इस बार बड़े अप्रत्याशित परिणाम दिये। बीजेडी के चुनाव जीतने के बावजूद उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थी। उपविजेता भले ही भाजपा रही हो, पर जयजयकार इस चुनाव में उन्ही की हुई। सीटों में अंतर में भारी कमी आ गयी है, और साथ ही साथ ओड़ीशा में भाजपा का गढ़ भी काफी मजबूत हो गया है। कभी 2012 में महज 36 सीट जीतने वाले, आज 294 से भी ज़्यादा सीट ज़िला परिषद चुनाव में लेने में सफल रहे हैं।
चुनाव के परिणामों का असर सिर्फ भाजपा के फायदे में ही नहीं, बीजेडी के पैरों से दरकती ज़मीन का किस्सा भी बयां करता है। 2000 से प्रदेश में शासन करने वाले बीजेडी अब काफी आगे आ चुका है। पर पार्टी में मनमुटाव और मतभेद भी अब किसी से छुपे नहीं है। बात अब बाहर तक आ चुकी है।
खबरों में बीजेडी के खफा नेताओं के विरोध की गूंज काफी दूर तक सुनाई दी है, जिसमें सबसे मुखर आवाज़ रही है कुशल प्रशासक एवं प्रखर सांसद, बैजयंत जय पांडा की। उन्होंने आलोचनात्मक रूप में इस चुनाव के परिणाम की समीक्षा की, जिसमें एक वैचारिक लेख लिखकर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को आत्मसमीक्षा करने की सलाह दी। पर हुआ उल्टा।
भाजपा से बैजयंत पांडा की नजदीकी और इस लेख से बीजेडी ने बैजयंत पांडा से दूरी बनानी शुरू कर दी। बड़े ही बेइज्जती से बैजयंत पांडा को अनदेखा किया जाने लगा, जिसकी शुरुआत मई में ही हो गयी, जब बैजयंत पांडा को उनके पार्टी प्रवक्ता के पद से ही हटा दिया गया। इन्होने हमेशा इस बात की पुष्टि की उनके बिना पूछे पाछे ही ये निर्णय लिया गया, और इसी से इनके और बीजेडी के रिश्तों में दरार आने लगी। पहले तो सिर्फ उनके भाजपा से जुडने की अफवाहें थी, पर अब लगता है की वे वाकई भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
दो घटनाओं ने इस लड़ाई को जनता के सामने ला खड़ा किया। जब महंगा में एक पेयजल परियोजना का शुभारंभ करने के लिए बैजयंत पांडा पहुंचे, तो उनका स्वागत उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अंडों से किया। बीजेडी और पांडा में दरार का वीभत्स रूप अब जनता के सामने था। यद्यपि सीएम साहब ने जांच बिठाई, पर स्वास्थ्य मंत्री ने उल्टे सारा आरोप बैजयंत पांडा पर ही मढ़ दिया, और कहने लगे की ये हमला जनता में उनके प्रति बढ़ते आक्रोश की वजह से हुआ है।
इस दरार का स्तर तो अब प्रतिशोध पर उतर आया है। दूसरी घटना, जिसने इस दरार को उजागर किया, वो थी इंडियन मेटल्स एंड फेर्रौस एलोयस [IMFA] कंपनी को खनन अधिकार से वंचित करना, जिसका स्वामित्व स्वयं श्री बैजयंत पांडा और उनके परिवार के पास था।
ओड़ीशा के राज्य प्रदूषण बोर्ड ने जयपुर जिले में बैजयंत पांडा के कंपनी खनन स्थल पर कार्य करने से उन्ही को मना कर दिया। हालांकि हवा की गुणवत्ता और खराब सड़कों का हवाला दिया गया, पर इसमें कोई संदेह नहीं की यह सब बैजयंत पांडा और बीजेडी की दरार सामने आने पर ही हुआ। बैजयंत पांडा ने पत्रकारों से कहा, ‘मुझे इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं देनी। मैं अपने परिवार के व्यावसायिक रुचि को अपने राजनीतिक कार्यों से अलगता हूँ। आईएमएफ़ए ओड़ीशा की सबसे पुरानी और इज़्ज़तदार कोंपनियों में शुमार, और इस राज्य के सबसे बड़े रोजगार दाताओं में भी एक है। ये कंपनी अपने आप सारे आरोपों पर अपना बचाव पेश करेगी।“
ओड़ीशा के मुख्यमंत्री और पांडा के बीच ही ये लड़ाई सीमित नहीं है, और भी ऐसे नेता हैं जो बीजेडी कैम्प में होकर भी अपनी आवाज़ सबके सामने प्रकट करते हैं, और नरेंद्र मोदी के कार्यों की जमकर प्रशंसा भी करते हैं। वर्तमान मनमुटाव के पीछे एक कारण ये भी है : नवीन पटनायक द्वारा हाल ही में किया गया कैबिनेट फेरबदल, जिसकी जमके आलोचना भी हुई है। बीजेडी के नाराज़ कार्यकर्ताओं का मानना है की इससे बीजेडी भाजपा के लिए ही अगले चुनाव का मैदान तैयार कर रही है, जिससे बीजेडी का मनोबल और गिरने की संभावना है। बरचना के विधायक अमर प्रसाद सतपथी, और सोनेपुर जिले के बीरमहाराजपुर क्षेत्र से विधायक पदमनाभ बहरा, कई चुनाव जीतने के बाद भी मंत्रिमंडल में न चुने जाने की वजह से ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कुछ सदस्य तो सामूहिक इस्तीफे तक की धमकी दे गए हैं।
अगर बीजेडी खेमे में वाकई में कोई संकट है, तो बैजयंत पांडा और उनके भाजपा में प्रवेश की संभावना इसे सिर्फ इस दरार का प्रतीक साबित करता है। जो समस्या महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ दिख रही है, वही ओड़ीशा में बीजेडी के साथ हो रहा है। भाजपा का बढ़ता प्रभुत्व बीजेडी को बेचैनी में बचकानी भूल करने पर मजबूर कर रहा है। युद्ध शुरू भी नहीं हुआ, और घबराहट में हथियार पहले ही डाले जा रहे है।
यहाँ सिर्फ इतना फर्क है की बीजेडी महाराष्ट्र की भांति भाजपा के साथ गठबंधन में नहीं है। पर सेना की तरह, उनका घमंड उन्ही को भस्माभूत करने पर उतारू है। जैसे नारायण राणे के शिवसेना छोडने पर सेना की हानि हुयी थी, वैसे ही बैजयंत पांडा का निष्कासन बीजेडी के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। हो सकता है बैजयंत पांडा जननेता न हो, पर अरुण जेटली की तरह एक कुशल प्रशासक एवं रणनीतिकार हैं, जो भाजपा को ओड़ीशा 2019 में उपहार स्वरूप दिला सकते हैं।