यह लेख TheWire.in में छपे लेख ‘महात्मा गांधी ने भारत में बीफ पर प्रतिबंध लगाने वालों को क्या कहा’ के प्रतिक्रिया में लिखा गया है।
25 जुलाई 1947 को हुई प्रार्थना सभा से उद्धृत इस लेख ने महात्मा गांधी का भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को दिया गया जवाब संक्षेप में समाया है। प्रसाद बाबू ने गांधी को एक लाख से भी ज़्यादा प्रार्थनापत्र प्रदान किए, जिनमें गौवध पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी थी। अपने उत्तर में जहां गांधीजी ने हिन्दुओं के लिए गाय की पवित्रता का समर्थन किया, वहीं उन्होने यह भी कहा, की वो किसी को गायों की हत्या न करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। उन्ही के शब्दों में, “मैं किसी को गौ हत्या न करने के लिए कैसे बाध्य कर सकता हूँ, अगर उसकी इच्छा न हो तो? ऐसा तो नहीं है की भारतीय संघ में में सिर्फ हिन्दू रहते हैं। मुसलमान, पारसी, ईसाई और अन्य धार्मिक समूह भी यहाँ रहते है।“
यद्यपि ये सच है की गांधीजी गौहत्या के विषय पर ऐसी सोच रखते थे, पर इस बात पर भी गौर करने लायक है की वे आजीवन गौ रक्षा पर भी अपने मुखर विचार रखते थे, जिसमें वे भारत के हिन्दुओं को गौ रक्षा और गौ सेवा का आवाहन देते थे, और इसे उनकी सबसे पवित्र कर्तव्य की संज्ञा भी देते थे।
विकल्प की स्वतन्त्रता और कट्टर लोकतान्त्रिक सोच रखने वाले गांधी ने भले ही गौहत्या और उसके प्रतिबंध पर अपने निजी विचार सामने रखने में हिचकिचाये हों, पर इसे ज़रूर समझना चाहिए की गांधीजी गौरक्षा के मुखर समर्थक थे। उनका तरीका शायद आदर्शवादी है, वो अपने विचार किसी पर थोप नहीं सकते थे, पर इसका अर्थ कदापि नहीं की वे गौ हत्या का समर्थन करते थे। गांधीजी को पूर्ण विश्वास था की वे देश के मुसलमानों को गौहत्या छोडने पर विवश कर देंगे, क्योंकि उनके विचार में अगर एक मुसलमान एक गाय की हत्या करे, तो वो अपने देशवासी की हत्या करने समान होगा, जो यकीनन हिन्दू होता।
ये आवश्यक है की विरोध के नाम पर दिनदहाड़े एक मासूम गाय की निर्ममता से हत्या करना गांधीजी के विचार में क्या होता। वे तो इस घटना पर हम आम हिंदुस्तानियों से ज़्यादा आहत होते, क्योंकि ये उनके प्रिय सिद्धान्त – अहिंसा के विरुद्ध खड़ा होता।
द वायर, एनडीटीवी जैसे कुछ कथित पत्रकार संस्थान जहां अपने हर कुकृत्य को छुपाने के लिए गांधीजी के सिद्धांतों की दुहाई देते हैं, वहीं गांधीजी का यह बयान उनके झूठ का पर्दाफाश करने के लिए काफी है।
उनके विचार में:- ‘गाय का वध करने के लिए धार्मिक रूप से मुसलमान बिलकुल भी प्रतिबद्ध नहीं है।“ इसी विषय पर लिखते हुये उन्होने बताया, “……जहां तक मैंने कुरान को समझा है, वो बिना मक़सद किसी भी जीवित प्राणी के प्राण लेने को पाप सिद्ध करता है। मैं अपनी क्षमता में मुसलमानों को यह समझाना चाहता हूँ की गाय ही हत्या अपने ही देशवासियों, भ्राता समान हिन्दुओं की हत्या करने समान होगा। कुरान कहता है की किसी बेगुनाह पड़ोसी की हत्या करने से जन्नत कभी नसीब होगी।‘ ये अलग बात है की कततारपंथी मुसलमानों ने उनके नसीहत को कभी नहीं समझा।
युवा भारत [YOUNG INDIA] में लिखते हुये गांधीजी ने गौ रक्षा के महत्व में यह कहा था:-
हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व है गौ रक्षा। मेरे लिए गौ रक्षा मानवता के विकास में सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं से है। ये मानव को अपने जाती से ऊपर उठाती है। मेरे लिए गाय का तात्पर्य सम्पूर्ण उप मानव दुनिया से है। ……..मुझे समझ में आता है की गाय का ही गुणगान के लिए क्यूँ चुनाव हुआ। भारत में सबसे सच्चा साथी है गाय। वो कामधेनु है, अर्थात सब कुछ देने वाली। न सिर्फ वो दूध देती है, अपितु कृषि उत्पादन में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
गौ रक्षा विश्व को हिन्दू धर्म का उपहार है। और जब तक हिन्दू गाय की रक्षा करेंगे, तब तक हिन्दू धर्म रहेगा। हिन्दुओं को उनके तिलक या मंत्रोच्चारण से नहीं, न ही उनके तीर्थयात्राओं से, न ही उनके जाती प्रथा के अनुष्ठान से, बल्कि उनके गाय की रक्षा करने की तत्परता करने से परखा जाएगा।“ इससे पढ़कर तो हमारे बुद्धिजीवियों के छाती पर पक्का साँप लोटेगा।
1927 में युवा भारत के संस्कारण में दोबारा से इस विषय पर गांधीजी ने अपने विचार लिखे। उनके छह बिन्दु रेखांकित किए, जो गौहत्या के प्रश्न को आर्थिक रूप से असंभव सिद्ध करेगा, जबकि दुनिया के समस्त जगहों में हिन्दुओं का पवित्र पशु ही बदकिस्मती से काटे जाएंगे।“ कुछ निम्नलिखित बिन्दु है, जो इस विषय में गांधीजी के विचारों पर प्रकाश डालते हैं:-
राज्य को खुले बाज़ार में नीलामी पे लगी गाय को खरीदने के लिए बाकी विक्रेताओं से ज़्यादा ऊंची बोली लगानी पड़ेगी।
हर मुख्य शहर में राज्य को डेरी खुलवानी चाहिए, जिससे निरंतर दूध की एक उचित, और सस्ती आपूर्ति मिल जाये।
राज्य को टेनरियाँ चलनी चाहिए, जहां मृत मवेशियों के खाल और हड्डी का उचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
राज्य को आदर्श मवेशी फार्म का निर्माण करना चाहिए और लोगों को गायों के लालन पालन के दिशा निर्देश देने चाहिए।
चारा योग्य भूमि के लिए राज्य को उचित व्यवस्था करनी चाहिए और विश्व के उच्चतम विशेषज्ञों को बुलाकर गौपालन के विज्ञान की दीक्षा आम लोगों को देनी चाहिए।
इस उद्देश्य के लिए एक अलग विभाग होना चाहिए, और इस विभाग से कोई भी मुनाफा नहीं बनना चाहिए, जिससे लोगों को गाय के विभिन्न नस्लों में हो रहे सुधारों, और उससे संबन्धित मसलों का भरपूर फायदा मिले
“पूर्वगामी योजना में राज्य को समस्त बूढ़े, रोगी एवं दिव्याङ्ग गायों का पालन करना चाहिए। निश्चय ही ये काफी भारी बोझ हो सकता है, पर इस बोझ को सारे राज्य, विशेषकर हिन्दू राज्य को सहर्ष उठाना चाहिए।“
दिसम्बर 1927 में गठित काँग्रेस के मद्रास में वार्षिक सम्मेलन में पार्टी ने यह घोषणा की गांधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता के एक ड्राफ्ट प्रोपोसल को महज सरसरी निगाह में ही पारित करा दिया। इसमें एक पंक्ति थी, जहां ये लिखा हुआ था:-
“………मुसलमानों को गौहत्या का अधिकार दिया जाएगा और गौरक्षा के सवाल पर लगाम लगेगी……” गांधीजी को जब सच्चाई पता लगी, तो हड्बड़ाकर बीच रात में उठकर उन्होने कहा:-
“मैंने एक घोर अपराध किया है। मैंने ड्राफ्ट को ठीक से नहीं पढ़ा। पर अभी रात को मुझे याद आया की यह ड्राफ्ट मुसलमानों को गाय काटने की आधारिक अनुमति देती है। मैं इसे कैसे सह सकता हूँ? अगर वो गायों का वध करेंगे, तो हम उन्हे ज़बरदस्ती नहीं रोक सकते, यह सत्या है, पर हम उनका विश्वास तो जीत सकते है प्रेम और श्रद्धा से और अपनी बात समझा सकते हैं। स्वराज के विजय के लिए मैं अपने गौरक्षा का सिद्धान्त कदापि नहीं त्यागूंगा। जाओ, कह दो इन लोगों से, की मैं इस समझौते से सहमत नहीं हूँ। चाहे कुछ भी हो, मैं गौहत्या का हिस्सा नहीं बनूँगा।“
यहाँ हालांकि कोई भी गांधीजी के गौहत्या पर आधिकारिक रोक के विरोध से मुंह नहीं मोड़ रहा है, पर दुनिया को हम ये भी बताना चाहते हैं, की निजी तौर पर गांधीजी गाय को पवित्र मानते थे, और चाहते थे की इसकी हत्या को रोका जाये। पर अगर ये बात सबकी समझ में आए, तो देश को तोड़ने वालों की दुकान कैसे चलेगी?
इस लेख का उद्देश्य गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने या ‘बीफ बैन’ लगाने से बिलकुल नहीं है, बस ये दिखाने के लिए हैं की गांधीजी के गाय और उसकी हत्या पर उनके विचार एक चश्मे से कदापि न देखें। एक सुलझी हुई समीक्षा से ये साबित होता है की वे गौरक्षा और उसके वध के विरोध में अपने मुखर विचार रखते हैं। उनका तरीका आज के हिसाब से हास्यास्पद लग सकता है, पर गांधीजी, दोनों इंसान और हिन्दू होने के नाते इस बात में विश्वास रखते थे की गाय की रक्षा अवश्य करनी चाहिए और उसके लिए वे एक ऐसे तरीके की खोज कर रहे थे, जिससे उनके प्रभुत्व और उनके सद्भाव से ही मुसलमानों गौ हत्या के पाप को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएँ। अफसोस, ये न हो सका।
संदर्भ:
- Available at: Link 1 Last Accessed: June 7, 2017
- Available at: Link 2. Last accessed: June 7, 2017
- A Review of “Beef in ancient India” Gita Press; 1971: “Gandhiji’s Sound Advice”
- A Review of “Beef in ancient India” Gita Press; 1971: “No compromise on cow-slaughter with Muslim league by Mahatma Gandhi” Glimpse No: 78 from the stray glimpses of Bapu” (Second edition, August 1960); Kakasaheb Kalelkar, published by Navjivan Publishing House, Ahmedabad 14.)