भारतीय राजनीति में एक व्यक्ति थे, संजय गांधी। बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री के पुत्र होने के नाते उन्होंने प्रधानमंत्री को नियंत्रण में रखा था। सिंहासन के पीछे से असली शक्ति उनके ही पास थी। कुछ बातें ऐसी भी निकल कर आती है जिसमें कहा गया है कि ये उनका ही व्यवहार था जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को आपातकाल लगाने के साथ आम जनता के मौलिक अधिकार को निलंबित करना पड़ा था। आपातकाल के सबसे बुरे दौर की वजह के पीछे भी उनके ही शैतानी दिमाग को माना जाता है। 33 वर्ष की आयु में एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गयी थी। कुछ लोग उनकी हत्या के भी आरोप लगाते हैं, लेकिन ख़बरों के अनुसार विमान में नियंत्रण खोने के वजह से हुए हादसे में उनकी मृत्यु हुई थी। संजय गांधी की अचानक हुई मृत्यु ने पुरे देश को चकित कर दिया था। यही वो समय था जब गिरते उठते मुद्दों के बीच नेहरू-गांधी परिवार में विभाजन का समय आया था। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने संजय की मौत के बाद अपने पुत्र वरुण गांधी को लेकर वहाँ से निकल गयी। कुछ यह भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी से विवादों के चलते मेनका गांधी गयी थी। अपने राजनीतिक जीवन में जनता दल से शुरुआत करते हुए आज भाजपा तक मेनका गांधी लगातार कांग्रेस विरोधी पार्टी से जुड़ी हुई है। मेनका गांधी ने सोनिया गांधी की तरह कांग्रेस अध्यक्ष बन सत्ता के पीछे से शक्ति के केंद्र बनने के बजाय अपने पशु अधिकारों और महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से धीरे धीरे पैर जमाती गयी और समाज में अपना योगदान देते गई। मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी उनके ही नक्शेकदम में चलते हुए 2004 में भाजपा में शामिल हो गए।
गांधी उपनाम के और कांग्रेस विरोधी होने के कारण वरुण गांधी और मेनका गांधी भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण थे। विगत कुछ समय से लगातार मजाक बन रहे राहुल गांधी के सामने एक बुद्धिमान गांधी के तौर पर उनके ही चचेरे भाई वरुण गांधी को जनता के सामने पेश किया गया था। यह भी हो सकता था कि शायद गांधी उपनाम भाजपा के लिए उतना महत्त्व ना रखता हो जितना की कांग्रेस में था। 2009 में वरुण गांधी ने पीलीभीत से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उनकी जीत इतनी शानदार थी कि सरे प्रतिद्वंद्वीयों के जमानत जब्त हो गए थे। 2.81 लाख से अधिक वोटो की शानदार जीत के बाद तो उन्होंने इस मामले में अपने चचेरे भाई और चाची को भी पीछे छोड़ दिया था। वैसे वरुण गांधी के जीत को उनके मुस्लिमों के खिलाफ दिए उग्र भाषणों से जोड़कर देखा जाता है। वरुण गांधी देश में जल्द ही हिंदुत्व के नए चेहरे की तौर पर उभर कर आये जिससे यह लगा कि कांग्रेस से अब उनका संबंध पूरी तरह टूट चुका है।
वैचारिक रूप से हिंदुत्व का चेहरा बनने वाले वरुण गांधी में बदलाव तब नज़र आया जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार हासिल करने के बाद उन्होंने सेन्ट्रल-लेफ्ट की तरफ झुकाव होने के संकेत दिए। इसके बाद कुछ ऐसे संकेत मिले जिसमें गांधी परिवार के दो शाखाओं के मिलने की बात हो सकती थी। ऐसी खबरें भी आई कि गांधी भाइयों के बीच (चचेरे) कुछ एसएमएस का आदान प्रदान हुआ है, इसके बाद कांग्रेस ने संजय गांधी के पुण्यतिथि पर कांग्रेस की ओर से ट्वीट हो रहे थे। इन सब के बाद सोनिया गांधी संजय गांधी के समाधी स्थल पर भी पहुँच गई थी। वरुण गांधी उत्तरप्रदेश भाजपा के संभावित मुख्यमंत्री के चेहरे में से एक थे जो बाद में संभव नहीं हो सका। काफी समय से वरुण गांधी पार्टी लाइन के बाहर जाते हुए अपने लेखों और विचारों में माध्यम से सरकार की नीतियों पर ऊँगली उठा रहें हैं। वहीं कांग्रेस भी उन्हें लगातार अपनी ओर खींचने के तरीके आजमा रही है। बात यह है कि वरुण गांधी एक पढ़ा लिखा शख्स और मुखर वक्ता है। यदि वरुण गांधी वापस कांग्रेस में शामिल होते हैं तो भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ की तरह गांधी मुक्त भारत की दलीलें पेश कर सकता है। अभी हाल ही के कुछ मसले देखें तो नजर आता है कि भाजपा और वरुण गांधी के बीच संबंध लगभग ख़त्म हो चुका है।
रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण देने का मुद्दा देश में अभी काफी चर्चा पर है। रोहिंग्या मुस्लिमों को अतिसंवेदनशील मानकर सुरक्षा में जोखिम नहीं लेने का फैसला लेकर भाजपा ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। सरकार उन्हें देश से पर निर्वासित करने की योजना पर काम कर रही है। इसी बीच वरुण गांधी अचानक से सामने आए और उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन करने की बात कही।
अपने द्वारा लिखे गए एक लेख में वरुण गांधी ने सरकार से कहा है कि वह अंतर्राष्ट्रीय संविधानों और भारत की समृद्ध परंपरा को अपनाते हुए रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय दे। वरुण गांधी के बयान की सरकार ने कड़ी निंदा की है। वरुण गांधी की टिप्पणी के बाद गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह राष्ट्रहित के खिलाफ है। बाद में वरुण गांधी ने ट्वीट में कहा कि रोहिंग्या मामले में सहानुभूति व्यक्त करना उनका व्यक्तिगत विचार है और उनका उद्देश्य सरकार के किसी भी नीति का विरोध करना नहीं है।
ऐसा लगता है कि वरुण गांधी और भाजपा के बीच संबंधों में कड़वाहट आ चुकी है। वैचारिक रूप से वरुण गांधी अब भाजपा से बहुत दूर चले गए हैं। उनकी सेंटर लेफ्ट की वैचारिक स्थिति वरुण गांधी को पहले से ज्यादा कांग्रेस के करीब ले आई है।