२००० के दशक के प्रारम्भ तक, मोबाइल मात्र अमीरों और शक्तिशाली लोगों का प्रतीक माना जाता था। अमीर लोग बड़ी शान के साथ मोबाइल को अपनी कमर बेल्ट पर लटकाते थे और उन अमीर लोगों के अलावा समाज के बाकी लोग स्वयं को, इस रहस्यमय उपकरण के प्रयोग से वंचित और दूसरों पर आश्रित महसूस करते थे। तब वर्ष २००२ में, एक एकीकृत रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के तहत, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) की शुरूआत हुई।
रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने मोबाइल के प्रयोग से वंचित लोगों को आकर्षित करने के लिए, मानसून हंगामा योजना की शुरुआत की। यह पहली ऐसी योजना थी, जिसमें मोबाइल के द्वारा लोगों को इनकमिंग की सुविधा मुफ्त प्रदान की गई थी।
लोग, आउटगोइंग कॉल के लिए उच्च कॉल दरों का भुगतान करने के लिए तो तैयार थे लेकिन मोबाइल फोन खरीदने में इसलिए संकोच करते थे, क्योंकि मोबाइल कंपनियां द्वारा इनकमिंग कॉल के लिए भी उपयोगकर्ताओं को भुगतान करना पड़ता था। तीन वर्षों के अंतर्गत, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने एक नई आकर्षक सीडीएमए तकनीक के साथ, अमीरों से लेकर गरीबों तक सभी को मोबाइल फोन उपलब्ध करवाने का कार्य किया। रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) को भारत में बेतार संचार (वायरलेस कम्युनिकेशन) युग की शुरूआत करने का श्रेय दिया जा सकता है।
२००६ में, रिलायंस इंडस्ट्रीज का विभाजन हो गया और रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) का स्वामित्व पूर्ण रुप से अनिल अंबानी के हाथों में आ गया। हालांकि इसके स्वामित्व के लिए, अनिल अंबानी को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। २००६ तक, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) पर लगभग ४५०० करोड़ रुपये का कर्ज हो गया, जिसकी भरपाई करना परम आवश्यक था। इस नुकसान का सबसे बड़ा कारण मानसून हंगामा योजना ही मानी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) कर्ज में डूब गई। रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) उस समय अत्यधिक सस्ती कीमतों पर सीडीएमए मोबाइल फोन (५०१ रुपये मात्र) बेच रही थी, हालांकि, कैमरा तकनीक और अन्य सुविधाएं आने के बाद, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने दोहरी प्रौद्योगिकी का लाइसेंस प्राप्त किया, जिसके बाद दोनों अंबानी भाईयों ने जीएसएम व्यवसाय में भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया।
बढ़ते हुए कर्ज के कारण, अनिल अंबानी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) को दक्षिण अफ्रीका की बड़ी दूरसंचार कंपनी एमटीएन के साथ विलय करने का फैसला लिया, परन्तु उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने फर्स्ट राईट ऑफ़ रेफ्युज़ल का प्रयोग कर ये नहीं होने दिया। जिसके परिणामस्वरुप, हिंसक मूल्य निर्धारण के उदाहरण पेश करते हुए और बाज़ार में अपनी साख पुनः स्थापित करने के लिए २००९ में, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने कॉल दरों में भारी कटौती करते हुए मात्र ५० पैसे प्रति कर दिया।
२०१० में, मुकेश अंबानी ने अनिल अंबानी के साथ किए अपने गैर-प्रतिस्पर्धी समझौते को रद्द कर दिया। इसके बाद, अगले तीन साल रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के लिए इतने अधिक मुश्किल भरे थे कि अनिल अंबानी को मुकेश अंबानी के साथ जियो के लिए ऑप्टिक फाइबर और दूरसंचार टावरों को भी साझा करने के लिए अपनी सहमति प्रदान करनी पड़ी।
अनिल अंबानी, स्वयं को एक मजबूत स्थिति में बनाएं रखने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहे। २०१४ में, अनिल अंबानी ने अपने पूंजीगत व्यय और ऋण को देखते हुए और अपने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए, अपने सीडीएमए और जीएसएम के व्यवसाय को विभाजित करने का फैसला लिया। अनिल अंबानी ने इंट्रा सर्कल रोमिंग समझौते को भी हरी झंडी दिखाई। २०१५ में, अनिल अंबानी ने कर्ज से मूक्ति पाने के लिए अपनी गैर-मूल संपत्ति को बेचने का भी निर्णय लिया।
अनिल अंबानी ने अपने व्यवसाय और रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) को बचाए रखने के लिए, अपने स्पेक्ट्रम को जिओ के साथ साझा किया। रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने ब्रुकफील्ड के अपने टावरों को बेच दिया और एयरसेल के साथ अपने वायरलेस ऑपरेशंस (बेतार संचालन) को विलीन करने की योजना बनाई, इन सब कोशिशों के बावजूद भी अनिल अंबानी को सफलता नही मिली।
अक्टूबर २०१७, अनिल अंबानी का यह प्रयास भी उनके अन्य प्रयासों की तरह असफल रहा, यही हाल उनकी कंपनी के ४५,००० करोड़ रुपये के कर्ज को चूकाने की योजना का भी हुआ। यह समझौता ‘पारस्परिक सहमति की चूक’ के कारण असफल रहा, क्योंकि इस समझौते को नियामक प्राधिकरणों से मंजूरी मिलने में अत्यधिक समय लग गया। रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के उधारदाताओं की भी अपने कर्ज को इक्विटी में परिवर्तित करने में अधिक रुचि थी बजाये इस के कि वे एयरसेल के साथ विलय की बाद घाटे में चल रही रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के प्रबंधन को स्वीकारें।
समन्वयक वार्ता टूटने के साथ, यह संभावना थी कि आरकॉम अपने विलयन प्रक्रिया में देरी करेगा, जो पहले दिसंबर २०१७ तय थी।
हालांकि, अक्टूबर २०१७ के अंत तक आरकॉम ने बढ़ते नुकसान पर कटौती करने के लिए अगले ३० दिनों में ही अपने वायरलेस परिचालनों को बंद करने का फैसला किया। “जो ऊपर उठता है वह नीचे गिरता भी है, जिस कंपनी ने पहली बार आम भारतीय के हाथ में मोबाइल फोन्स दिए, वह अब कुछ नहीं है।