हर सुपरस्टार के पीछे एक दमदार कहानी अवश्य होती है। भारत के प्राचीन कथाओं में ऐसे कितने उदाहरण है, जो पाठक के नैतिकता को जगाने का हरसंभव प्रयास करती है। अगर हम फिल्मों को इनह कथाओं का नया रूप समझे, तो मेरे पास एक बड़ी रोचक कथा है सुनाने को। अपनी सफलतम फिल्मों में से एक में सुपरस्टार रजनीकान्त कहते हैं:-
“जब में छोटा था, तब एक बार मैंने सिगार फूंकी थी। मेरे पिताजी को पता चला, पर उन्होने मुझे डांटा नहीं, और मुझे एक सिगारों से भरे कमरे में ले गए, और मुझसे सवेरे तक सभी सिगारों को फूंकने को कहा। मैं पूरी रात फूंकता रहा। जब सुबह उस कमरे से बाहर निकला, तब पूरा कमरा धुएँ से भरा हुआ था, और मुझे घुटन महसूस हो रही थी। उसके बाद सिगार को फिर कभी हाथ नहीं लगाया।“
शिक्षा – किसी भी वस्तु की अति विनाश की तरफ ही ले जाती है
इस लघु कथा की याद मुझे तब आई जब मैंने हाल ही में मोइन नवाज़ डी. कास्कर की कहानी सुनी। डी माने दाऊद इब्राहिम का दाऊद है, जो कुख्यात ‘डी’ कंपनी का सरगना है। जी हाँ, ये मोइन इसी दाऊद इब्राहिम का पुत्र है। जिस कुख्यात डॉन का साम्राज्य पूरे मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के अलावा पश्चिम के कुछ हिस्सों में फैला हुआ हो, उस साम्राज्य का इकलौता वारिस एक गैंगस्टर न बनकर एक मौलाना , यानि एक धर्मगुरु बनने की राह पर चल पड़ा है।
लगता है कर्म का चक्र पूरा हुआ है। एक पुलिस कांस्टेबल का बेटा गैंगस्टर बना, और उसका बेटा अब एक मौलाना है।
मोइन की बड़ी बहनों का तो बहुत पहले ही निकाह हो चुका था। बॉम्बे में सीरियल ब्लास्ट्स करवाने में जो कुशलता दाऊद ने दिखाई थी, उसके लिए उन्हे पाकिस्तान में दामादजी के बराबर का सम्मान दिया गया। पाकिस्तान दाऊद से इतनी मुहब्बत करता है की उनके क्रिकेट के महान हस्तियों में से एक जावेद मियांदाद ने अपने बेटे जुनैद का निकाह इन्ही की सबसे बड़ी बेटी महरुख से तय कर दिया।
दाऊद का परिवार अब इस पाक ज़मीन पर शरणार्थियों का जीवन जीने को मजबूर है। उसके मेजबान पाकिस्तान में उसे सुरक्षा का उच्चतम स्तर देने के बावजूद उनकी मौजूदगी से अभी भी मुंह मोड़ते हैं। समय के साथ इस कुख्यात डॉन की पहुँच और आतंक, दोनों में भारी कमी आई है। आज मुंबई में रह रहे इसके भाई पुलिस के खौफ में जीते हैं। कुछ समय पहले दाऊद के नाम दर्ज कई संपत्तियाँ, जिन्हें सरकार ने ज़ब्त कर लिया था, अब नीलाम हो चुकी है। पहले के मुक़ाबले यह नीलामी ज़्यादा सफल रही है, जिसका अर्थ यही है की अब दाऊद इब्राहिम के नाम से किसी को डर नहीं लगता, जबकि पहले लोग दाऊद इब्राहिम की नीलाम सम्पत्तियों को छूने तक से कतराते थे।
शायद यह इसी आतंक का असर है या कहें अपने परिवारजनों की चिंता, जिसके कारण मोइन का दीन दुनिया से नाता ही छूट गया। उसने कराची के एक अमीर उद्योगपति की बेटी सान्या से निकाह रचाया। सिर्फ यही नहीं, उसने न सिर्फ अपने पिता द्वारा इकट्ठा किए काले धन को ठुकरा दिया, बल्कि अब ऐसा लगता है की मोइन ने अब अपने परिवार से भी दूरी बना ली है। उसके चाचा इकबाल कास्कर के अनुसार अब तो इस पर भी शक है की वो अपने अब्बा से बातचीत भी करता है की नहीं।
मोइन ने अपने आलीशान बंगले से तौबा कर ली है, और मस्जिद के बगल में एक घर में रहता है, जहां से वो हर रोज़ नमाज़ पढ़ाता है। वो अब एक सम्मानित मौलाना बन चुके हैं, और इन्हे ‘हफीज ए कुरान’ की पदवी दी गयी है, अर्थात वो जो कुरान के सभी 6236 आयतों को कंठस्थ याद कर चुका हो।
दाऊद के जीवन भर के कमाए अरबों डॉलर भी उसके इकलौते बेटे को उसके करीब नहीं ला सके। जितनी खून की नदियां दाऊद ने बॉम्बे की सड़कों पर बहाया था, वो भी उसके बेटे को उसकी तरफ आकर्षित नहीं कर सके। आलीशान बंगले के जलवे हों, या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी सुरक्षा हो, या फिर लोगों में दाऊद का खौफ, कुछ भी मोइन को अपने अब्बा को सम्मानित करने में असफल नहीं हो पाया।
अब तो दाऊद को नियमित रूप से अवसाद के दौरे पड़ने लगे हैं। शायद अब इन्हे आभास होने लगा है की कर्म किसी को भी नहीं बख़्शता, चाहे वो संसार का सबसे ताकतवर प्राणी ही क्यों न हो। शायद अल्लाह से जब इसकी मुलाक़ात हो, तब यह ज़रूर पूछना चाहेगा कि ऐसा मैंने क्या किया जो मुझसे मेरा बेटा ही छीन लिया? शायद अल्लाह का उत्तर हो : तुमने मेरे इतने बच्चे जो छीन लिए, उनका क्या?
कुछ लोगों को यह लगेगा की यह सब ढकोसला है, और यह सारा नाटक उनके परिवार की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए रचा गया है। हो भी सकता है, पर मुझे तो इस विषय पर संदेह है। ओसामा बिन लादेन का परिवार भी तो खुली हवा मेँ सांस ले रहा है। दुनिया उतनी बुरी नहीं है, जितना हम सोचते हैं। मोइन अपने पिता द्वारा संचित धन पर ऐश कर, सारी सुविधाओं के मज़े ले सकता था। मैं इस बात पर विश्वास करना चाहता हूँ की मोइन कास्कर मेँ यह परिवर्तन खोखला नहीं, सच्चा परिवर्तन है।
मनु स्मृति के अनुसार :-

अध्याय चौथा, श्लोक 172वां –
अनैतिकता, जो संसार मेँ व्याप्त है, अपने फल गाय की तरह अचानक नहीं देती, पर धीरे धीरे बढ़ते हुये, उसी की जड़ काट देता है जो ऐसा पाप करता है.
अध्याय चौथा, श्लोक 173वां
यदि [ये दण्ड] स्वयं [अपराधी] को नहीं, तो उसके बेटों को [मिलता है], और अगर बेटों को नहीं मिलता, तो कम से कम उसके पोतों को अवश्य मिलता है, पर पाप अगर एक बार होता है, तो उसका फल निस्संदेह उसके कर्मी को मिलता है।
अध्याय चौथा, श्लोक 174वां
अनैतिकता से उसे कुछ समय तक समृद्धि अवश्य मिलती है, फिर उसे बेहिसाब धन मिलता है, फिर वो अपने शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त करता है, पर अंत मेँ उसका नाश निश्चिंत है



























