‘रहस्य’ शब्द मन में भावनाओं की एक श्रृंखला पैदा करने के लिए काफी होता है। एक राज्य का दायित्व होता है कि वो राज्य की गोपनीय जानकारी और योजनाओं को हमेशा ही उजागर होने से रोके। पर जब कोई अपनी राजनीतिक प्राथमिकता को राज्य और राजनेता से उपर रखे तो क्या होगा? कुछ ऐसा ही देखने को मिला है, दरअसल, एक राजनीतिक चेहरा जिसका नाम तहसीन पूनावाला है, उन्होंने पीएम के शेड्यूल को लेकर एक पोस्ट किया था।

तहसीन पूनावाला का हमेशा ही वर्तमान सरकार के प्रति नकारात्मक विचार रहा है। सरकार विरोधी खासकर मोदी विरोधी तत्व उनके बयानों का हिसा रहे हैं। लोकतंत्र में ये उचित है लेकिन ये बयानबाजी राज्य और राजनेता की सुरक्षा की ताक पर नहीं होना चाहिए।
ये ट्वीट विपक्ष द्वारा बजट सत्र को खराब करने के विरोध में पीएम मोदी द्वारा 10 अप्रैल को उपवास की घोषणा के जवाब में किया गया था। पूनावाला ने एक तस्वीर के साथ अपने ट्वीट को साझा किया है जिसमें पीएम मोदी के 12 अप्रैल के अस्थायी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी हुई है। पूनावाला ने ‘ब्रेकफास्ट बोर्ड’ के उल्लेख पर गोला लगाया है।
पूनावाला शायद ये भूल गए कि कोई अपना नाश्ता छोड़ भी सकता है और पीएम मोदी कभी अकेले यात्रा नहीं करते हैं। ऐसे में अगर कोई उपवास रखना चाहता है तो ये जरुरी नहीं कि वो सभी पर इसका दबाव बनाए।
हमारे भारतीय लोकतंत्र में हमेशा से ही एक आत्म-निर्धारित दायरा रहा है जो इस राजनीतिक संस्कृति को बनाकर रखता है, ऐसे में किसी भी व्यक्ति को इस दायरे का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है जिससे लोकतंत्र का सिद्धांत खतरे में पड़े।
तहसीन पूनावाला पीएम मोदी के खिलाफ अपने तथ्यों को साबित करने में नाकाम रहे, वो अपने ट्वीट से ये दिखाना चाहते थे कि पीएम मोदी जनता को भ्रमित करने के लिए उपवास कर रहे हैं, अपने इस ट्वीट से उन्होंने आज की राजनीति के कटु सत्य का चेहरा भी सामने रखा जो आज की राजनीति में नेताओं द्वारा पोषित किया जा रहा है। अपने ट्वीट में पीएम पर लगाये आरोपों को सही साबित करने की कोशिश में पूनावाला ने राजनीति में अपनी छोटी सोच और विरोधी दृष्टिकोण को सामने रखा है।
एक और अहम बिंदु है सुरक्षा, जैसा कि ट्विटर पर एक वकील ने बताया-
https://twitter.com/ippatel/status/984324171978035200
वकील के अनुसार, यह एक दंडनीय अपराध है। अगर वकील का दावा वास्तव में सच है तो तहसीन पूनावाला मुश्किल में पड़ सकते हैं। पूनावाला को अपने इस गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार और सुरक्षा अधिनियम को तोड़ने पर संभावित परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए। इस तरह का राजनीतिक बयान न सिर्फ पीएम मोदी की सुरक्षा के साथ समझौता है बल्कि ये ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट का भी उल्लंघन है।
एक अलग राजनीतिक विचारधारा का होना अलग बात है लेकिन इस विचारधारा में अपने राजनीतिक फायदे के लिए देश के मुखिया की सुरक्षा के साथ समझौता करना निंदनीय है। यदि हम इस देश में लोकतांत्रिक वातावरण को बनाए रखना चाहते हैं तो इस तरह की राजनीति से परहेज करना चाहिए।
चाहे वर्तमान सरकार का इस रुख के प्रति प्रतिक्रिया ख़ास न भी हो तब भी इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यहां उल्लेख करना दिलचस्प होगा कि, इस साल मार्च में ही बीजेपी कार्यकर्ता अनूप पाण्डेय को गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उन्होंने पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र की यात्रा का पल पल का विवरण प्रकाशित किया था। अनूप पांडेय उन लोगों में से हैं जिन्हें ट्विटर पर पीएम मोदी फॉलो करते हैं। दरअसल, ये सरकारी अधिकारी हैं जो ये सुनिश्चित करते हैं कि कानून के नियमों की अनदेखी हुई है या नहीं। यदि वकील द्वारा लगाये गये आरोप सही साबित होते हैं और तब भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा लोगों को यही संदेश जायेगा कि पीएम और राज्य की सुरक्षा के साथ समझौता करना सही है।
अब हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि इस तरह की छोटी राजनीति से उपर उठकर सभी मिलकर देश की लोकतांत्रिक जड़ो को और मजबूत करने के लिए काम करें।


























