पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए बीजेपी ने इस बार स्वामी असीमानंद को पश्चिम बंगाल के चुनावी जमीन पर उतारने की तैयारी कर रही है। अभी हाल ही में 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और चार अन्य बरी हुए थे, अब बीजेपी बंगाल के चुनावों पर गहरा प्रभाव डालने के लिए उनकी मदद लेगी। बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने इस बात की पुष्टि की है और कहा कि ‘मैं स्वामी असीमानंद को निजी तौर पर लंबे समय से जानता हूं। आने वाले चुनावों में ममता बनर्जी के सख्त शासन के खिलाफ स्वामी असीमानंद बीजेपी के साथ काम करने के लिए तैयार हो गये हैं।
स्वामी असीमानंद स्वयं घोषित संत और पूर्व आरएसएस के कार्यकर्ता हैं जिन्हें 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में यूपीए के शासन के दौरान 2010 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में ये मामला एनआईए को सौंप दिया गया था। कांग्रेस ने अपने प्रोपेगंडा के तहत स्वामी असीमानंद को हिंदू आतंकवाद के रूप में चित्रित किया था। ये कांग्रेस के षड्यंत्रों में से ही एक था जिससे वो भगवा आतंकवाद के मिथक को बढ़ावा दे सके। हालांकि, आठ सालों बाद आखिरकार स्वामी असीमानंद को न्याय मिल गया है, स्पेशल कोर्ट ने उन्हें सबूतों के आभाव में बरी कर दिया। इसके बाद स्वामी असीमानंद ने अपने षड्यंत्रकारियों के खिलाफ की लड़ाई में जीत हासिल की है जिसका सभी ने स्वागत किया।
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के खिलाफ नेतृत्व के लिए स्वामी असीमानंद एक आदर्श प्रतिद्वंदी हैं। बीजेपी का ये कदम एक तीर से दो निशाने लगायेगा। ममता बनर्जी जोकि हिंदू विरोधी नीतियों की वजह से मशहूर हैं, बीजेपी के लिए ये कदम न सिर्फ ममता के खिलाफ जीत दर्ज करने में सहायक होगा बल्कि बीजेपी कांग्रेस को भी उस मंच पर हरा देगी जहां कांग्रेस हिंदुओं के खिलाफ गंदी राजनीति खेल रही है और हिंदू आतंकवाद के मिथक को बढ़ावा दे रही है।
बीजेपी के नेता भी इस बात को स्वीकारते हैं कि स्वामी असीमानंद ने वर्षों से जनता के बीच रहकर काम किया है और उनके पास प्रभावशाली संगठनात्मक कौशल भी है। वो पार्टी के लिए एक उपकरण की तरह काम करंगे जिससे ज़मीनी रूप से पार्टी की पकड़ राज्य के गांव और जनजातियों के बीच मजबूत होगी। उम्मीद की जा रही है कि स्वामी असीमानंद राज्य के कई क्षेत्रों में जायेंगे और पार्टी की विचारधारा से लोगों को अवगत कराएंगे। स्वामी असीमानंद राज्य में काफी मशहूर हैं खासकर गांव और जनजातियों के बीच उनकी लोकप्रियता काफी है जिनके साथ उन्होंने कई वर्षों तक काम किया है। बीजेपी एक रास्ता बनाने की कोशिश में हैं जो राज्य की उन नसों से गुजरेगा जहां वर्षों से लेफ्ट और टीएमसी जैसी हिंदू विरोधी ताकतें शासन करती आयीं हैं।
यहां तक कि स्वामी असीमानंद भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी के अभियान का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं, ऐसे में हम बीजेपी के इस कदम से सत्तारूढ़ पार्टी, कांग्रेस और लेफ्ट की प्रतिक्रियाओं का अंदाजा लगा सकते हैं जो वर्षों से हिंदुओं के प्रति अपनी नफरत की विचारधारा को बढ़ावा देते आये हैं और उन्हें अपने धर्म का पालन करने से रोकते हैं। इतना ही नहीं, राज्य में लगातार होते दंगों और हमलों का सामना कर रहे हिंदुओं के शांतिपूर्वक रहने के अधिकार को भी छीन लिया गया है। हालांकि, बंगाल के हिंदू जिनसे संस्कृति और बुनियादी धार्मिक अधिकारों को छीन लिया गया है उन्हें स्वामी असीमानंद में अपना समर्थन मिलेगा। हाँ ये भी कहा जा सकता है कि स्वामी असीमानंद हिंदू आतंकवादी के रूप में उन्हें दिखाने की कोशिश कर रहे लोगों के चेहरों का रंग उड़ाने आ गये हैं। इन सभी संभावनाओं के बीच तथ्य ये भी है कि स्वामी असीमानंद हिंदुत्व विरोधी बलों के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक हैं और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बंगालियों के बीच उनकी लोकप्रियता से भाजपा का आत्मविश्वास भी बढेगा।
ऐसा लगता है बीजेपी ने सही समय पर सही निर्णय लिया है। हिंदू पीड़ित राज्य में रैली के लिए शायद स्वामी से बेहतर और कोई नेता नहीं हो सकता। बंगाल की राजनीति पर उनकी पकड़ अच्छी है और ये न सिर्फ राज्य को जानते हैं बल्कि जनजातियों के बीच अपनी व्यापक लोकप्रियता का भी आनंद उठाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि, समय और लोग दोनों ही इस पुनरुत्थान नेता के साथ हैं और इससे जरुर ही बीजेपी टीएमसी के मुकाबले एक इंच ज्यादा बढ़त बनाने में कामयाब होगी। स्वामी असीमानंद राज्य के हिंदुओं के साथ वैसा ही व्यवहार करंगे जैसा वो उनसे उम्मीद कर रहे हैं। वो अब समझ गए होंगे कि बीते वर्षों में किस दौर से गुजरे हैं। स्वामी असीमानंद उन हिंदुओं के साथ खड़े हैं जिन्हें बीते वर्षों से बड़े पैमाने पर कट्टरवाद के रूप में चित्रित करने की कोशिश की जाती रही है जिससे बंगाली हिंदू भी अब समझ चुके हैं।