भोजपुरी सिनेमा की आज जो छवि है उसके पीछे की क्या सच्चाई है ? क्यों आज भोजपुरी सिनेमा को अच्छे नजरिये से नहीं देखा जाता है ? इसके पीछे का कारण आज मैं आपको बताऊंगा…दोस्तों सच तो ये है कि फूहड़ गाने आज कल भोजपुरी सिनेमा में दिखाए जाते हैं, ऐसे फूहड़ गाने बिहार का कोई भी शरीफ व्यक्ति ना बजाता है और ना सुनना चाहता है? ऐसे गाने सिर्फ संस्कारहीन और महाबेशर्म लोग ही सुनते हैं। भोजपुरी की दुर्दशा में सबसे बड़ा हाथ इन भोजपुरी कलाकारों का है। मगर मानता कोई नहीं।
जिस वक्त भोजपुरी फिल्में बननी शुरू हुई थी और हिट हुई थी, उस वक़्त मराठी सिनेमा, तमिल और तेलगु आदि अपनी शुरुआत कर रहे थे। आज वो लोग आसमान पर पहुंच गए हैं और भोजपुरी रसातल में। भोजपुरी गाने और फ़िल्म अश्लीलता, नंगई और बुराई के प्रतीक बन गए हैं, विश्वास ना हो तो एक काम कीजिये बिहार के किसी ऐसे हॉल के बाहर जाकर खड़े हो जाइए और देखिए कि किस तरह के दर्शक अंदर जा रहे हैं या बाहर निकल रहे हैं।
मुंह मे 10 किलो गुटखा ठूंसे और 20 किलो की माँ बहन वाली गाली देते लोगों को देखकर आपको कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। एक खास गिरी हुई मानसिकता के लोग ही आपको जाते हुए दिखाई देंगे।
इससे पीड़ित सबसे ज्यादा आपको गांवों में मिलेंगे.. जहां कोई रोक-टोक नहीं होती और खुलकर गाने बजाए जाते हैं। आपने अभी हाल में जहानाबाद, वजीरगंज जैसे गांवों में देखा होगा कि कैसे 5 -6 लड़के एक अकेली लड़की पर सरेआम टूट पड़ते हैं.. इसका वीडियो भी वायरल हुआ था। उनकी मानसिकता ऐसी कैसे बनी? शहरों में थोड़े सभ्य लोग हैं, कानून है तो शिकायत आदि करके ये सब बजाने वालों को रोका जाता है। हमारे ही शहर ‘गया’ में एसएसपी से शिकायत करके सारे ऑटो वालों की गाड़ी से ऑडियो प्लेयर उतरवाया गया क्योंकि महिलाओं को बेहद ही अश्लील गाने सुनने पड़ते थे।
भोजपुरी के बारे बारे में क्या क्या कहा जाए ? भोजपुरी एक्टर और एक्ट्रेस को ही देखिये, इनका ध्यान अभिनय की ओर कम और भौंडे प्रदर्शन, कामुक क्रिया कलापों, फूहड़ संवाद, द्विअर्थी गाने, अंग विशेषों को झटकने में ज्यादा होता है! क्या आप किसी भी भोजपुरी हीरो या हीरोइन की तुलना साउथ के हीरो से कर सकते हैं, मराठी से ? पंजाबी से ? कदापि नहीं!
भोजपुरी इंडस्ट्री पर कुछ खास लोगों ने कब्जा कर लिया है। इस इंडस्ट्री में खास रूल है, कम से कम 7 से 8 गाने होंगे, इसमें से चार आइटम होंगे, 2 सामान्य होंगे, एक मुजरा या कव्वाली या ऐसा ही कुछ होगा आदि आदि। ढाई घण्टे में कितने समय तक अश्लीलता चलेगी, कितने समय तक मारधाड़ और कितने समय तक रोना धोना वो फिक्स है। इसका कहानी से कुछ लेना देना नहीं। सबसे ज्यादा हैरत की बात है कि फ़िल्म के म्यूजिक ट्रैक भी फिक्स हैं.. एक बार जो आइटम सॉन्ग का ट्रैक बन गया तो सिर्फ गायक नए गाने उसी ट्रैक पर गा देता है, बस हो गया.. मैने अपनी आंखों से देखा, एक घण्टे के अंदर पूरा गाना रिकॉर्ड हो गया और म्यूजिक भी बन गए। यहां हर कोई कमाने आया है.. चाहे जैसे भी। यहां रचनात्मकता की बात करना पाप है।
बिहार की बदनामी के पीछे इन घटिया भोजपुरी गानों का और भोजपुरी इंडस्ट्री का भी बहुत बड़ा हाथ है। मैं बिहार का नहीं हूँ.. पर मैं नहीं चाहता कि ये गंदगी और पैलती रहे, इसलिए मैं इसका विरोध करता रहूंगा।
अगर किसी बिहारवासी की भावना को ठेस पहुंची हो तो क्षमा करें।
निलेश पान्डे द्वारा लिखित