जम्मू-कश्मीर राज्य में भारतीय जनता पार्टी ने बीजेपी-पीडीपी गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया है। दोनों ही पार्टियों की विचारधारा में काफी अंतर है और अब ऐसा लगता है कि इसी ने गठबंधन को आखिरी चरम पर पहुंचा दिया है। बीजेपी ने एक बड़ा कदम उठाया है और विचारधाराओं में अंतर के साथ भारत के इस राज्य की भलाई के लिए गठबंधन से अलग होने का फैसला किया। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कुछ समय से बीजेपी के धैर्य की परीक्षा ले रही थीं और अब बीजेपी ने अपना जवाब दे दिया है।
जबकि इस गठबंधन के टूटने के पीछे कई कारण हैं लेकिन इन दोनों ही अलग विचारधारा की पार्टी के अलग होने के पीछे ये 5 कारण सबसे अहम रहे:
1.) हसीब द्राबू को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त करना: गठबंधन के बीच दरार मार्च में ही देखने को मिल गयी थी जब राज्य के वित्त मंत्री हसीब द्राबू को मुफ्ती द्वारा मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया गया था। द्राबू को बीजेपी और पीडीपी के बीच जुड़ाव के लिए अहम माना जाता था। द्राबू को बर्खास्त करने का महबूबा के फैसले ने दोनों दलों के गठबंधन के बीच दरार बढ़ने के स्पष्ट संकेत दे दिए थे।
वास्तव में दोनों पार्टियों के बीच का सम्पूर्ण कार्यकाल मुफ्ती के अनुचित फैसलों और कार्यों से चिन्हित है। बीजेपी जो ये सुनिश्चित करना चाहती थी कि राज्य में लोकप्रिय सरकार बनी रहे इसीलिए वो धैर्यपूर्वक इस मामले को पीडीपी के साथ हल करने की कोशिश कर रही थी लेकिन दोनों के बीच का मतभेद समय के साथ और बढ़ता गया।
2.) पत्थरबाजों के प्रति नर्म रवैया: दोनों पार्टियों के बीच मतभेद को बढ़ाने में ये मुद्दा सबसे आगे है। शुरू से ही अलगाववादियों, पाकिस्तान, पत्थरबाजों और अन्य कट्टरपंथी इस्लामवादी तत्वों के लिए मुफ्ती के मन में नर्म भाव रहा है। मुफ्ती के इस रवैये ने बीजेपी और उसके मतदाता आधार को परेशान किया है। महबूबा मुफ्ती द्वारा ईद के मौके पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों पर पत्थरबाजी के 104 मामलों में शामिल 634 पत्थबाजों के खिलाफ मामले वापस लेने का कदम मुफ्ती और पीडीपी के घृणित फैसलों को दर्शाता है। इस कदम के साथ ही बीजेपी और पीडीपी गठबंधन के बीच मतभेद सामने आने लगे थे। कई बार ये सवाल उठाये गये कि अगर बीजेपी पीडीपी पर कोई दबाव नहीं बना सकती है तो इस तरह के गठबंधन में बने रहने के क्या मायने रह जाते हैं।
3.) पाकिस्तान के लिए वही पुराना नर्म रुख: इससे पहले इसी साल मार्च के अंत में मुफ्ती ने प्रधानमंत्री मोदी से जल्द से जल्द पाकिस्तान के साथ वार्तालाप शुरू करने के लिए कहा था। जबकि पाकिस्तान लगातार भारत की मिट्टी खासकर जम्मू कश्मीर की ओर आतंकियों को धकेल रहा था ऐसे में मुफ्ती अनावश्यक रूप से केंद्र सरकार के मामलों में दखल दे रही थीं और एक आतंकवादी राष्ट्र से संवाद के लिए दबाव बना रही थीं। ये बीजेपी के पाकिस्तान के खिलाफ नीति और विचारधारा के बिल्कुल विपरीत था। शायद ये इस गठबंधन में दरार की मुख्य वजहों से एक था और आखिर में गठबंधन टूट गया।
4.) महबूबा मुफ्ती का जवानों के साथ व्यवहार: ये न सिर्फ अलगाववादियों के साथ मेलजोल था बल्कि घाटी में जवानों और सुरक्षा बलों के प्रति उनका घृणित रुख था जिस वजह से दोनों पार्टियों के बीच टकराव बढ़ गया था। इसी वर्ष जनवरी में शोपियां घटना के बाद जब पूर्व मुख्यमंत्री ने बीजेपी को झटका दिया था और सेना की गढ़वाल इकाई के 10 कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे तबसे दोनों पार्टियों के बीच तनाव और बढ़ने लगा था। अपने बचाव की कोशिश में सेना द्वारा की गयी गोलीबारी में जिन दो नागरिकों की मौत हुई थी वो पत्थरबाजी करने वालों में शामिल थे। मुफ्ती ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे। इसे सेना के लिए अत्यधिक अनैतिक घटना के रूप में देखा जा रहा था क्योंकि इस मामले में पर्याप्त पूछताछ और जांच किए बिना ही सेना के कर्मियों के खिलाफ आरोप लगाए गए थे और एफआईआर दर्ज किया गया था। जब बीजेपी ने इस एफआईआर को वापस लेने की मांग की थी तब पीडीपी ने इस मांग को खारिज कर दिया था और कहा था कि जांच को ‘तार्किक नतीजे’ तक पहुंचाया जाएगा। ऐसे में बीजेपी और उसके वरिष्ठ नेता इससे खुश नहीं थे।
5.) कठुआ मामला: बीजेपी और पीडीपी के बीच का टकराव कठुआ मामले की जांच के दौरान अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया। पुलिस जांच पर गंभीर सवाल उठाये गये थे और मामले में कई आधारहीन और असंगतताएं सामने आयी थीं। इस मामले से ये सामने आया कि जम्मू क्षेत्र के लोगों के साथ राज्य और पुलिस अधिकारी भेदभाव करते हैं। इन सभी अनियमितताओं और आरोपों के बावजूद महबूबा मुफ्ती ने इस मामले की बेहतर जांच के लिए मामले को सीबीआई को सौंपने से इंकार कर दिया था। इस बीच पीडीपी ने इस घटना का इस्तेमाल सभी तरह के सांप्रदायिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया था। दुर्भाग्यवश, एक नाबालिग लड़की के साथ हुई दिल दहला देने वाली घटना का पीडीपी राजनीतिकरण कर रही थी। जिसके बाद से बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के भीतर पीडीपी के लिए गुस्सा गहराता गया।
इससे स्पष्ट है कि भले ही बीजेपी ने राज्य की भलाई के लिए गठबंधन समाप्त किया हो लेकिन पीडीपी ने अपनी गंदी राजनीति से बीजेपी को ऐसा करने के लिए मजबूर किया था। मुफ्ती के गलत फैसले और सेना के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें दबाने की कोशिश के साथ पत्थरबाजों और अलगाववादियों को समर्थन देने की गंदी राजनीति ने बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को खत्म किया है।