राज्यसभा के पूर्व सांसद और अखबार पायनियर के संपादक चंदन मित्रा ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है और उम्मीद की जा रही है कि वो तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो सकते हैं। पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को कोलकाता में टीएमसी की ‘शहीदों’ की रैली में चंदन मित्रा के उपस्थित होने की संभावना है। उन्होंने बिज़नसलाइन को बताया कि उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेज दिया है।
चंदन मित्रा 2003 से 2009 तक मनोनीत राज्यसभा सांसद थे, इसके बाद वो जून 2010 में भाजपा की ओर से उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया था। उनका कार्यकाल 2016 में खत्म हो गया था। उनके इस्तीफे के पीछे कारणों में से एक संसद के ऊपरी सदन में फिर से नामित न होने पर उनका असंतोष हो सकता है।
राजनीतिक रूप से, चंदन मित्रा अब उतने चर्चित नहीं है। लेकिन लुटियंस की मीडिया इस इस्तीफे से ऐसे खुश नजर आ रही है जैसे कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने ही पार्टी का साथ छोड़ दिया है । भारतीय जनता पार्टी के लिए, चंदन मित्रा के इस्तीफे से ज्यादा महत्वपूर्ण विधायक द्वारा पार्टी छोड़ना हैं। वास्तव में, ये अच्छा है कि बीजेपी को अवसरवादीयों से छुटकारा मिल रहा है। जब किसी पेड़ के सूखे पत्ते गिरते हैं तो उसकी जगह नई पत्तियां ले लेती हैं और तेजी से विकसित हो रहे पेड़ को मुरझाई पत्तियों का भार नहीं उठाना पड़ता।
चंदन मित्रा कई वर्षों से पार्टी के सदस्य रहे हैं लेकिन पार्टी में उनके योगदान के बारे में कोई नहीं जानता है। जिस तरह से मीडिया उनके इस्तीफे को बीजेपी के लिए एक बड़े झटके के रूप में देख रही है ऐसे में पार्टी के लिए वास्तव में उनका योगदान क्या है? टीवी पर चंदन मित्रा ने पार्टी के बचाव में भी कमजोर साबित हुए हैं। बेहद महत्वपूर्ण और लोकप्रिय समाचार को चलाने के बावजूद उन्होंने बीजेपी के लिए मीडिया कवरेज में कोई ख़ास भूमिका नहीं निभाई है। बीजेपी बदलाव लेन और बहरत को बेहतर बनाने के लिए कठिन परिश्रम कर रही है लेकिन चंदन मित्रा जैसे तथाकथित बौद्धिकों ने बीजेपी के पक्ष में कभी कुछ नहीं किया। कुछ दिन पहले वो एनडीटीवी पर अपने बेतुके बयानों के साथ नजर आये थे। कई वर्षों से राजनीति में रहने के बावजूद मित्र भारतीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे हैं। वो एक ऐसे नेता रहे हैं जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है और मोदी सरकार में ऐसे नेताओं को दूसरा मौका नहीं मिलता है। बीजेपी कभी दरबार संस्कृति को बढ़ावा नहीं देती है।
अपने गृह-राज्य, पश्चिम-बंगाल में भी उनकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं है। पार्टी ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की हुगली सीट से उम्मीदवार बनाया था लेकिन यहां वो बुरी तरह से हार गए थे। वो स्पष्ट रूप से जमीनी नेता नहीं है और वो जमीनी वास्तविकताओं से भी काफी दूर रहे। पश्चिम बंगाल में भी मित्रा बीजेपी के कुछ ख़ास बदलाव नहीं ला पाए थे।
यदि बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ों को फैलाना चाहती है तो उसे अपनी पार्टी की जड़ों को और मजबूत करना होगा और इसके लिए योगी आदित्यनाथ जैसे किसी योग्य नेता को पश्चिम बंगाल में खड़ा करना चाहिए जो बंगाली हिंदुओं को जागृत करने में सक्षम हो। बीजेपी को पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी स्वामी असीमानंद, तपन घोष जैसे अन्य जमीनी नेताओं को सौंप सकती है। आरएसएस पश्चिम बंगाल में धीरे धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है और मित्रा जैसे लोग इसमें भी मुश्किलें खड़ी करते होंगे।
चंदन मित्रा कहीं भी जायें, चाहे वो टीएमसी या अन्य पार्टी में जाएँ वो कभी उतने महतवपूर्ण नहीं होंगे। अब ये समझ के परे है कि आखिर अन्य लोग चंदन मित्रा के इस्तीफा देने से इतने खुश क्यों है।