ऐसा लगता है कि एक ऐतिहासिक फैसले ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधन को लेकर चल रहे विवाद पर विराम लगा दिया है। 8 जून, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ‘सेवकों’ (पुजारी) द्वारा भक्तों के शोषण के आरोपों से जुडी याचिका पर संज्ञान लिया था। हिंदू मंदिरों के प्रबंधन में किसी भी तरह के कदाचार से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी किया है।
ये आदेश रथ यात्रा से पहले आया है। कोर्ट ने केंद्र को पूरे देश में भक्तों के हितों के तहत मंदिरों के प्रबंधन के कार्यों की समीक्षा करने के लिए एक समिति गठित करने के निर्देश दिए हैं। मंदिर में समिति की जांच की आवश्यकता थी जो मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों को हो रही परेशानियों की जांच करेगी साथ ही भक्तों द्वारा मंदिर को मिल रहे दान से भक्तों के लिए बुनयादी सुविधाएं सुनिश्चित हो रही हैं या नहीं इसकी भी समीक्षा करेगी। जहां तक हिंदू मंदिरों का संबंध है, वहां धार्मिक मामलों में अनुचित सरकारी हस्तक्षेप की आशंकाएं बढ़ी हैं। इस तरह की आशंकाएं वैध और व्यावहारिक थीं क्योंकि सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही सरकारी नियंत्रण और संयम के अधीन किया गया। ये धर्मनिरपेक्षता को लेकर भारत में व्याप्त अनूठी धारणा का नतीजा है जो आज सभी धार्मिक संस्थानों को स्वतंत्र रूप से प्रबंधन को अपने नियंत्रण में रखने की अनुमति देता है लेकिन हिंदू संस्थानों पर अलग तरह के कड़े प्रतिबंध लगाता है। राज्य सरकारों द्वारा हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण का उदाहरण विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में देखा भी गया है जहां हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया जाता है।
हालांकि, जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधन पर नियंत्रण को लेकर आज जगन्नाथ मंदिर मामले की याचिका का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील जे साई दीपक ने अपने तर्कों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जिसके बाद अब इस विवाद पर विराम लग गया। शुरुआत में उन्होंने ये स्पष्ट किया कि मंदिर प्रबंधन के दो पहलु हैं, धार्मिक और धर्मनिरपेक्षता। उन्होंने आगे ये तर्क दिया कि दोनों ही पहलु संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदाय के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आते हैं। संविधान के अनुच्छेद 26 में धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने की स्वतंत्रता मिलती है। ऐसे में ये स्पष्ट है कि अनुच्छेद 26 न केवल धार्मिक मामलों से संबंधित है बल्कि धार्मिक संस्थानों की अचल संपत्ति के स्वामित्व और अधिग्रहण जैसी सेक्युलर गतिविधियां भी शामिल हैं।
वहीं, दूसरी तरफ, अनुच्छेद 25 (2) , राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियंत्रित या प्रतिबंधित करने से रोकता है। इसी वजह से राज्य के प्रतिबंधक अधिकारों और धार्मिक संप्रदाय के प्रशासनिक अधिकारों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसके अलावा धार्मिक गतिविधियां अक्सर ही धर्मनिरपेक्षता की गतिविधियों में उलझकर रह जाता है। सेक्युलर गतिविधियों के मुकाबले धार्मिक गतिविधियों का नियंत्रण उससे संबंधित धार्मिक संप्रदाय ही कर सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया है कि जारी निर्देशों को सावधानी से लागू किया जायेगा और ये किसी भी तरह से धार्मिक संस्थानों के नियमों का उल्लंघन नहीं करेगा। साई दीपक ने इस मुद्दे की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि कई सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के मुताबिक अनुच्छेद 25 (2) के तहत धार्मिक संस्थानों पर राज्य सरकार के नियंत्रण को सिमित किया गया है ताकि कोई भी गलत तरीके धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण न कर सके और धार्मिक संस्थानों की आजादी बनी रहे। सुप्रीम कोर्ट ने आश्वासन दिया कि वो इस इस स्थिति से अवगत हैं और इसी दिशा के अनुरूप निर्देश दिए जायेंगे।
अब दान से जुड़े मामले पर आते हैं, साई दीपक ने अपनी दलील में एक और तर्क देते हुए कहा कि 8 जून को दिए गये आदेश से जगन्नाथ मंदिर में भक्तों द्वारा सेवकों को दिए जाने वाले दान पर अधिकार पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया और मंदिर को दिए जाने वाले दान और सेवकों को दिए जाने वाले दान में अंतर को स्पष्ट किया। कोर्ट और अमिकस क्यूरी ने भी ये माना कि भक्तों को ये अधिकार है कि वो सेवकों (पुजारी) को दान दें। हिंदू आलोचक और सेक्युलर को एक और बड़ा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने 8 जून को जारी किये अपने आदेश को सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि सभी धर्मों पर लागू करने के लिए कहा। इसीलिए शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देश सभी धार्मिक संप्रदाय पर लागु किया जायेगा।
जगन्नाथ मंदिर में भक्तों के उत्पीड़न के आरोप वाले याचिका पर शीर्ष अदालत के आदेश के बाद सरकारी हस्तक्षेप की आशंका बढ़ गयी थी। हालांकि, शीर्ष अदालत की सुनवाई के बाद इस पूरे विवाद पर विराम लग गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर गौर करते हुए ये स्पष्ट कर दिया कि हिंदू मंदिरों पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाने या अन्य धर्मों की तुलना में अलग तरह से नियंत्रण करने का कोई इरादा नहीं। इस पूरे मामले में साई दीपक शीर्ष अदालत के समक्ष अपने तर्कों से उद्धारकर्ता के रूप में उभरे हैं।
(स्पष्टीकरण: मामला अभी भी लंबित है।)