राहुल गांधी की नफरत आरएसएस के प्रति किसी से छुपी नहीं है वो आरएसएस पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। हाल ही अपने यूरोपीय दौरे के दौरान उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी की बैकबोन कहे जाने वाले आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की थी। इस बीच वर्तमान सरकार और आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ रही कांग्रेस पार्टी को जवाब देने की बजाय आरएसएस राहुल गांधी को अपने कार्यक्रम में आने के लिए निमंत्रण भेजने के बारे में सोच रहा है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार के मुताबिक, “मोहन भागवत देश के प्रबुद्ध नागरिकों से ‘भविष्य का भारत-आरएसएस का दृष्टिकोण’ विषय पर 17 से 19 सितंबर तक दिल्ली के विज्ञान भवन में संवाद करेंगे।” इस कार्यक्रम में सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
हालांकि, इस निमंत्रण को लेकर औपचारिक घोषणा पर अरुण कुमार ने कहा कि, “ये हमपर है कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रण देंगे और किसे नहीं। ये हमपर छोड़ दें लेकिन इस कार्यक्रम में विभिन्न राजनीतिक संगठनों, विचारधाराओं और धर्मों सहित जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को आमंत्रित किया जायेगा।”
ये पहली बार नहीं है जब आरएसएस ने विपक्ष के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास किया है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री शास्त्री ने जनसंघ और आरएसएस को लेकर किसी तरह का वैमनस्य नहीं रखा और अक्सर ही वो श्री गुरू गोलवलकर को अक्सर ही राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया करते थे। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार किया था। कांग्रेस के विपरीत आरएसएस ने हमेशा ही गैर संघ सदस्यों का स्वागत किया है उन्हें अपने कार्यक्रम में निमंत्रण देकर खुले विचारों को दर्शाता रहा है। सिर्फ प्रणब दा ने कार्यक्रम में हिस्सा ही नहीं लिया बल्कि संघ के संस्थापक और देश के प्रति निस्वार्थ भावना से सेवा के लिए संघ की सराहना भी की थी। प्रणब दा का बयान उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को बिलकुल रास नहीं आया था।
जिस तरह से राहुल गांधी लगातार संघ की कार्यप्रणाली और विचारधारा पर हमले कर रहे हैं उसके विपरीत संघ ने उन्हें बहुत शानदार तरीके से जवाब दिया है। ऐसे में स्थिति को अब राहुल गांधी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता ब्रिगेड के लिए संभाल पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन भी है ऐसे में अगर राहुल गांधी जो हमेशा ही सोहार्दपूर्ण रिश्तों को बनाये रखने और सभी को साथ लेकर चलने का दावा करते हैं उनके सामने ऐसी स्थिति बन गयी है कि उन्हें न निगला जा रहा है और न उगला जा रहा है। अगर वो इस निमंत्रण को अस्वीकार करते हैं तो अविश्वस्त प्रस्ताव की चर्चा के दौरान पीएम मोदी को दी गयी झप्पी का दिखावा सबके सामने होगा, राजनीति में सहिष्णुता का दिखावा, नफरत के माहौल को रोकने का दिखावा सबके सामने होगा।
The point of yesterday’s debate in Parliament..
PM uses Hate, Fear and Anger in the hearts of some of our people to build his narrative.
We are going to prove that Love and Compassion in the hearts of all Indians, is the only way to build a nation.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 21, 2018
यदि राहुल गांधी निमंत्रण को स्वीकार करते हैं तो उनका ये कदम बहुत ही बेतुका साबित होगा। जाहिर है कि ‘धर्मनिरपेक्षता के राजकुमार’ और गांधी वंशज ‘सांप्रदायिकता के गढ़’ में बैठे होंगे जो हमेशा से ही इस संघ से घृणा और नफरत करते आये हैं। इसके अलावा अन्य पार्टियों को भी ये रास नहीं आयेगा जिसे कांग्रेस पार्टी महागठबंधन के लिए मनाने की कोशिशों में जुटी है। राहुल गांधी इस निमंत्रण को स्वीकार करेंगे या नहीं ये तो आने वाला समय बतायेगा। वास्तव में आरएसएस ने राहुल गांधी को अपने सोहार्दपूर्ण जवाब से उन्हें उन्हीं के जाल में फंसा दिया है।