पिछले चार वर्षों से वामपंथी गैंग एक ही राग अलाप रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है। विपक्षी पार्टी हो या वामपंथी गैंग या उदारवादियों का समूह, सभी का कहना है कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है, वो कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार धर्म की राजनीति करती है। असहिष्णुता ब्रिगेड भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने से बौखलाया है। देश में धर्म को एक बराबर से देखने की बात कहने वाले एक मौका नहीं छोड़ते हैं हिंदू धर्म पर निशाना साधने का। उनके धर्म के लोग अगर किसी अन्य धर्म के प्रति सम्मान की भावना रखते हैं तो उन्हें इससे भी परेशानी होती है चूंकि वो उस धर्म से नफरत करते हैं वो सम्मान को पचा नहीं पाते हैं। हमेशा से ही मुस्लिम धर्म के कुछ लोग विवाद को जन्म देते रहे हैं और अगर कोई उनके समुदाय का सदस्य अन्य धर्म का सम्मान करे तो वो इसका खूब विरोध करते हैं। ऐसा ही कुछ अब बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान के साथ हुआ है। हाल ही में सारा अली खान अपनी माँ अमृता सिंह के साथ जुहू के शनि मंदिर पहुंची थी। दर्शन करने के बाद सारा ने मंदिर के बाहर दान भी दिया। ये बात मुस्लिम समुदाय के लोगों को बिलकुल रास नहीं आई और उनके मंदिर में दर्शन को लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल करने लगे।
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अपनी इच्छा अनुसार सारा अली खान ने अपनी माँ और भाई के साथ मंदिर में दर्शन किया था। सारा ने इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं बोला और न ही किसी मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ कुछ कहा लेकिन इसके बावजूद उनके इस कदम की आलोचना शुरू कर दी गयी। मुस्लिम समुदाय उनके मंदिर दर्शन को लेकर उनपर तीखे हमले कर रहा है। उनके धर्म पर सवाल उठाना शुरू कर दिया यहां तक कि उन्हें ‘शर्म’ करने जैसी बात तक कह दी। सारा अली खान की माँ अमृता सिंह हिंदू धर्म से हैं जिन्होंने सैफ अली खान से शादी के बाद भी अपना धर्म नहीं बदला। ऐसे में सारा अली खान एक हिंदू माँ और एक मुस्लिम पिता की बेटी होने के नातें बिना किसी रोक-टोक के दोनों ही धर्मों में से जिस भी धर्म को मानती उस धर्म का पालन अपनी इच्छा अनुसार कर सकती हैं। भले ही अमृता सिंह और सैफ अली खान का तलाक हो गया हो लेकिन सारा अपने पिता के साथ रहने के बाद भी अपनी माँ से अक्सर ही मिलती रहती हैं उनके साथ समय बिताते हैं, ऐसे में उनके मंदिर दर्शन को लेकर विवाद खड़ा करना कहां तक सही है?
वास्तव में उनके मंदिर दर्शन को लेकर उनकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए और न ही उनके धर्म को लेकर उन्हें ट्रोल किया जाना चाहिए।
सारा अली खान सबसे पहले एक भारतीय नागरिक हैं और फिर हिंदू या मुस्लिम या दोनों, ये उनपर है कि वो क्या चुनती हैं। ट्रॉल्स जिस तरह से उनके इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है वो निंदनीय है। हमेशा से हिंदुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने वालों को अपने मुस्लिम धर्म को भी कुछ सीख देनी चाहिए जो खुद को हमेशा ही हिंदुओं द्वारा पीड़ित दिखाते रहे हैं। वामपंथी देश में धर्म को लेकर अक्सर ही विवाद पैदा करने की कोशिश करता है पर अफ़सोस हमारे देश की जनता उनके दोहरे रवैये को कभी देख नहीं पाती है। खैर, अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले ही इसपर अमल नहीं करते हैं। देश में कोई भी नागरिक किस धर्म को चुनता है किस धर्म का पालन करना करता है ये उसका मौलिक अधिकार है। किसी को भी कोई अधिकार नहीं है वो धार्मिक दबाव या अन्य दबाव बनाकर अपनी बात मनवाए या किसी की आलोचना करे।