कांग्रेस छतीसगढ़ में 15 सालों से राज कर रही सत्तारूढ़ पार्टी को उखाड़ फेंकने के सपने देख रही है जबकि दूसरी तरफ उसे एक के बाद झटके मिल रहे हैं। पहले सपा ने अजित जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन कर इस राष्ट्रीय पार्टी को बड़ा झटका दिया था उसके बाद सपा ने भी गठबंधन के लिए मना कर दिया। अगर कांग्रेस अपने सहयोगी दलों को सम्मानजनक सीटें देती तो शायद उसे ये दिन न देखना पड़ता। खैर, अब ये कांग्रेस का अहंकार ही है जिस वजह से उसने छत्तीसगढ़ में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। हालांकि, इस बीच अजीत जोगी का एक बयान चर्चा का विषय बना हुआ है और वो ये है कि वो राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ लड़ेंगे और भविष्य में भी गटबंधन के कोई आसार नहीं है। इसका मतलब है कि आगामी विधान सभा चुनाव में तीन तरफ़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। फिलहाल, अजीत जोगी ने अभी तक ये साफ़ नहीं किया है कि वो आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं लेकिन ये तय है कि अगर पार्टी की जीत होती है तो मुख्यमंत्री का चेहरा वही होंगे। स्पष्ट रूप से ये मुकाबला दिलचस्प होने वाला है लेकिन जोगी जब कांग्रेस के खिलाफ हैं तो उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ कुछ भी बोलने से तौबा क्यों कर लिया?
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा, “मैंने कांग्रेस छोड़ दी है और विधानसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ प्रचार भी करुंगा लेकिन, गांधी परिवार जिन्होंने हमेशा ही मुझे प्यार किया उनके खिलाफ एक शब्द नहीं कहूंगा।” यही नहीं जोगी ने ये भी कहा कि, “कांग्रेस के पास राज्य में न तो कोई चेहरा है और न ही कोई संगठन। न ही इसके पास कोई नेता है। ये पार्टी बेकार हो चुकी है। “इससे अजीत जोगी ने एक तरफ कांग्रेस पर मीठा वार किया है दूसरी तरफ उन्होंने ये भी बता दिया कि वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कहां खड़ी है। वैसे छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी का महत्व क्या है? और कैसे आगामी विधान सभा चुनाव में वो बड़ा बदलाव ला सकते हैं?
अजीत जोगी की पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिये मायावती की बसपा पार्टी के साथ गठबंधन किया है। राज्य की कुल 90 सीटों में से 35 बसपा 53 जोगी और 2 सीटें सीपीएम को मिली है। स्पष्ट रूप से अजीत जोगी ने खुद को भाजपा और कांग्रेस के बाद थर्ड फ्रंट के रूप में खड़ा कर दिया है। हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जोगी परिवार के चार सदस्य तीन अलग-अलग राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ेंगे। जोगी और उनके पुत्र जहां खुद की पार्टी जनता कांग्रेस के साथ हैं वहीं जोगी की पत्नी रेणु जोगी अभी भी कांग्रेस के साथ बनी हुई हैं जबकि उनकी बहू बसपा के साथ हैं। अजीत जोगी के पास जहां आदिवासी मतदाता आधार का समर्थन है वहीं बसपा का दलित मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है। स्पष्ट रूप से कांग्रेस को बसपा और जनता कांग्रेस पार्टी से काफी नुकसान होने वाला है। खबरों की मानें तो जोगी की पत्नी रेणु जोगी को अगर कांग्रेस की तरफ से टिकट नहीं मिलता है तो कांग्रेस का दामन छोड़ भी सकती हैं। इसका मतलब ये है कि अजीत जोगी को खोकर कुछ साल पहले कांग्रेस पहले ही अपना काफी नुकसान कर चुकी है अब अगर जोगी की पत्नी रेणु जोगी भी कांग्रेस का दामन छोड़ती हैं तो कांग्रेस का नुकसान होना तय है। कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में शासन करने के 15 सालों के अपने इंतजार को खत्म करने के लिए टिकट वितरण में नए चेहरों और पुराने दिग्गजों, दोनों को जगह दे रही है लेकिन पार्टी का कोई भी गलत कदम एक बार फिर से उसके बचे खुचे अस्तित्व को ले डूबेगा क्योंकि रेणु जोगी के सहारे कांग्रेस पार्टी कुछ ही सही लेकिन आदिवासी मतदाता को लुभाने में कामयाब हो सकती है।
अजीत प्रमोद कुमार जोगी एक भारतीय राजनेता है तथा प्रथम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके हैं उनके पास अच्छा राजनीतिक अनुभव भी है और शायद यही वजह है कि कांग्रेस से बेरुखी मिलने के बाद बसपा ने जोगी के साथ हाथ मिलाना ज्यादा उचित समझा। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल क्षेत्र है और अजीत जोगी आदिवासी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि दलितों, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच भी लोकप्रियता का आनंद उठाते हैं और उनके प्रभाव ने उन्हें राज्य में एक बड़े नेता के रूप में स्थापित किया है। स्पष्ट रूप से कांग्रेस की बची हुई उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है।