पंद्रह साल सत्ता से बाहर रहने के बाद मध्यप्रदेश में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बनी ही थी कि, अब इसके गिरने की चर्चाएं होने लगी है। भारतीय जनता पार्टी और पूर्व सीएम शिवराज सिंह द्वारा पिछले कुछ दिनों से पांच साल पूरे होने से पहले ही राज्य में वापसी करने की जो बातें कही जा रही थीं, उनमें अब सच्चाई नजर आने लगी हैं। कारण यह है कि, कांग्रेस में गुटबाजी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। कांग्रेस का हर गुट सरकार में अपनी प्रभावी भागीदारी चाहता है। दूसरी ओर निर्दलीय, सपा-बसपा और जयस भी सरकार में अहम पद लेना चाहते हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि, कांग्रेस में मची इस अंदरूनी कलह से राज्य में कांग्रेस सरकार अस्थिर हो सकती है।
राजनीतिक गलियारों में सरकार के अस्थिर होने की चर्चा ने तब जोर पकड़ा जब मंत्रिमंडल की घोषणा के साथ ही सभी निर्दलीय व छोटी पार्टियों के विधायकों ने एक साथ मीटिंग की। यह मीटिंग करीब एक घंटे तक चली। खबरों के अनुसार, इस मीटिंग में तीन निर्दलीय, बसपा के दो, सपा का एक और डॉ हीरालाल शामिल थे। बताया जा रहा है कि, ये सभी विधायक एक हो गए हैं। वर्तमान सरकार के सहयोगी इन विधायकों द्वारा गुपचुप तरीके से की गई मीटिंग के चलते सूबे में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। कमलनाथ मंत्रिमंडल में वादे के मुताबिक जगह नहीं मिलने से ये सभी विधायक खासे नाराज बताये जा रहे हैं। कुछ लोग इस मीटिंग को पिछले कुछ दिनों से लगातार आ रहे बीजेपी के बयानों से जोड़कर देख रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर ये विधायक कोई बड़ा फैसला करते हैं तो कांग्रेस सरकार अस्थिर हो सकती है।
बता दें कि, राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं। इस विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बसपा को 2, सपा को 1 व निर्दलियों को 4 सीटें मिली हैं। किसी भी पार्टी को 116 का जादूई नंबर ना मिलने से यहां अन्य ने सराकर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
नई दुनिया की एक खबर के अनुसार, शपथ समारोह के बाद नाराज निर्दलीय विधायक ठा. सुरेंद्र सिंह ऊर्फ शेरा भैया ने कहा था कि, “मैं तो जंगल में हूं जो करना है, उन्हें करना है। वादा किया था, उसे तोड़ दिया गया है।” वहीं संजीव सिंह से जब पूछा गया कि, क्या वे बीजेपी के संपर्क में हैं तो उनका कहना था कि, “राजनीति कर रहे हैं तो सबसे बातचीत करनी पड़ती है।” मंत्री पद के दावेदार कांग्रेस के कई ऐसे विधायक है जिनका नाम सूची में ना होने से वे शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित नहीं हुए। बिसाहूलाल सिंह, हरदीप डंग, झूमा सोलंकी, हिना कांवरे आदि कांग्रेस विधायक शपथ ग्रहण समारोह में दिखाई नहीं दिए। इन सब के नाम मंत्री पद की दावेदारी में चल रहे थे।
इससे पहले जयस और कांग्रेस के मनावर से विधायक डॉ हीरालाल अलावा के एक ट्वीट से सियासी हंगामा खड़ा हो गया था। हीरालाल आलावा ने ट्वीट कर कांग्रेस को नसीहत देते हुए अपने वादे को पूरा करने की बात कही थी। उन्होनें लिखा कि, जयस ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। वादे के अनुसार जयस की भागीदारी सरकार में होनी चाहिए। जयस को अनदेखा करना कांग्रेस की बडी भूल होगी। यही नहीं कांग्रेस से बागी चार विधायक भी मंत्री पद चाहते हैं।
उधर मंत्री पद नहीं मिलने पर सुमावली विधायक एदल सिंह कंसाना के समर्थकों ने मंगलवार शाम सरायछोला थाने के देवरी बाबा मंदिर के पास हाइवे पर जाम लगा दिया। इस दौरान उनके समर्थकों ने हाइवे पर गाड़ियों के टायरों में भी आग लगा दी। यह जाम लगभग ढाई घंटे तक रहा। इससे तीन से चार किलोमिटर तक गाड़ियों की लाइन लग गई। बदनावर से विधायक राजवर्द्धन सिंह को भी जब मंत्री पद नहीं मिला तो उनके समर्थकों ने मध्यप्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर नाराजगी जताई। उधर पिछोर के विधायक केपी सिंह के समर्थकों ने भोपाल स्थित उनके आवास पर इकट्ठा होकर प्रदर्शन किया। पिछोर से विधायक केपी सिंह का मंत्रिमंडल से बाहर होना चौंकाने वाला रहा है। केपी सिंह अपना पत्ता कटने के बाद से ही नाराज होकर जैसे अज्ञातवास पर चले गए। वे शपथ ग्रहण में भी नहीं दिखे और ना ही नेताओं के फोन उठाए।
गौरतलब है कि, पहले मुख्यमंत्री के नाम पर पार्टी आलाकामन को काफी कसरत करनी पड़ी थी। जैसे-तैसे वरिष्ठ नेता कमलनाथ का नाम तय हुआ तो सिन्धिया गुट नाराज होकर दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन करने पहुंच गया। किसी तरह सिन्धिया को मनाया गया तो लडाई मंत्री मंडल में अपने अपने खास लोगों को प्रभावशाली पद दिलवाने की शुरु हो गयी। अब निर्दलियों समेत सपा व बसपा विधायकों की बैठक और मंत्री पद नहीं मिलने से कांग्रेस के विधायकों की नाराजगी मध्यप्रदेश में पार्टी पर भारी पड़ सकती है। हो सकता है कि, बीजेपी और शिवराज सिंह की बात भी सच हो जाए।