देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, जातिवाद, धार्मिक मतभेद बढ़ रहा है। जैसी तमाम खबरें इन दिनों आपको खूब सुनने को मिल रही होंगी लेकिन क्या ये वास्तव में हो रहा है? जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है हर मीडिया चैनल, विपक्षी पार्टी यहां तक कि नसीरुद्दीन शाह जैसे बॉलीवुड दिग्गज भी यही राग अलाप रहे हैं कि देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ रहा है। देश के हर व्यक्ति में मन में एक डर पैदा करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है लेकिन क्या ये वास्तव में हो रहा है? क्या सच में मोदी सरकार में असहिष्णुता जातिवाद, धार्मिक मतभेद बढ़ा है? वास्तव में इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। अब इस सवाल का जवाब खुद आरटीआई ने दे दिया है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि यूपीए शासनकाल की तुलना में मोदी सरकार में सांप्रदायिक सद्भाव बेहतर रहा है। ये खुलासा गृह मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नोएडा के आईटी प्रोफेशनल और आरटीआई कार्यकर्ता अमित गुप्ता की अर्जी का जवाब दिया है। आरटीआई के जवाब में उपलब्ध कराए गये आंकड़ों के अनुसार साल 2004 से 2017 तक सांप्रदायिक हिंसा की 10,339 घटनाओं में कुल 1605 लोग मारे गए थे।
साल 2004 से 2013 के बीच मारे गए लोगों की संख्या 1,216 है। ये वो समय है जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। साल 2013-2017 के बीच मारे गये लोगों की औसत संख्या मोदी सरकार में प्रतिवर्ष गिरकर 97.25 पर आ गयी। सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा की 943 घटनाएं साल 2008 में यूपीए शासनकाल में हुई थी। इसमें 167 लोग मारे गए और 2,354 लोग घायल हुए थे।
साल 2004 से 2008 के बीच सांप्रदायिक हिंसा 3,858 घटनाएं हुईं थी और ये वो समय है जब यूपीए की सरकार थी। मतलब की यूपीए II में साल 2008 से 2013 के बीच सांप्रदायिक हिंसा की कुल 3,621 घटनाएं हुई थीं। साल 2008 में सबसे ज्यादा 943 और साल 2009 में 849 जबकि साल 2013 में, 823 सांप्रदायिक दंगे हुए थे। वहीं, 2014 से 2017 तक भारत में सांप्रदायिक हिंसा की 2,920 घटनाएं हुई हैं जोकि यूपीए शासनकाल की तुलना में कम है।
ये आंकड़े ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वास्तव में मोदी सरकार में सांप्रदायिक सद्भाव यूपीए शासनकाल की तुलना में बेहतर हुआ है लेकिन, फिर भी लेफ्ट लिबरल मीडिया हो या बुद्धिजीवी सभी ने यही दर्शाया है कि मोदी सरकार में सांप्रदायिक सद्भाव पर हमले हो रहे हैं। देश का सांप्रदायिक माहौल बिगड़ रहा है। धर्म-जाति के नाम पर गहरी खाई बन रही है। हालांकि, इन आंकड़ों से सभी को जवाब मिल गया होगा कि ये सिर्फ मीडिया और विपक्ष द्वारा फैलाया जा रहा एक भ्रम है जिससे आम जनता को मौजूदा सरकार के प्रति भ्रमित किया जा सके।
वास्तव में लुटियंस मीडिया ने देश में हर घटना को इतना बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जिससे किसी को भी ये लगने लगेगा कि देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा रहा है। मीडिया हो या टीवी चैनल्स के शोज सभी ने संवेदनशील मुद्दों को इस तरह से दिखाना चाहिए जिससे आम जनता के मन में नकारात्मकता को बढ़ावा न मिले और सद्भाव बना रहे।
मीडिया हो या टीवी चैनल्स अपने राजनीतिक मालिकों के लिए इस तरह के संवेदनशील मामलों को तूल देने से बचना चाहिए ताकि देश में सांप्रदायिक माहौल न बिगड़े। इसके साथ ही आम जनता को भी किसी के बहकावे में आने से बचना होगा और समझना होगा कि सिर्फ राजनेताओं के बहकावे में न आये। हर धर्म जाति का सम्मान करें। सिर्फ राजनीतिक हित के लिए देश में विपक्ष और मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे तनाव की गहराई को समझना होगा क्योंकि ये देश हमारा है और यहां शांति बनाये रखना हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है।