भारत की राजनीति में परिवारवाद का हमेशा से ही बोलबाला रहा है। राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष पदों पर पार्टी के मुखिया के परिवार वालों को ही बैठा दिया जाता है और इस बात को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है कि वह शख्स और पद के काबिल है भी या नहीं! ऐसा ही एक उदाहरण हमें बंगाल की राजनीति में देखने को मिल रहा है जहां टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को राज्य में पार्टी का प्रभार सौंपें जाने की पूरी तैयारी की जा रही है। पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा की डिप्टी स्पीकर और ममता बनर्जी की बेहद करीबी माने जानी वाली सोनाली गुहा ने भी इस बात की तरफ इशारा किया था। उन्होंने कहा था ‘हम ममता बनर्जी के नाम पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ममता जी को राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाने के लिए राज्य से बाहर रहना पड़ सकता है। उनकी अनुपस्थिति में राज्य में पार्टी का प्रभार अभिषेक बनर्जी संभालेंगे’। साफ है कि क्षेत्रीय राजनीति से बाहर होते ही ममता बनर्जी की जगह लेने अभिषेक बनर्जी पूरी तरह तैयार बैठे हैं। आपको बता दें कि 31 वर्षीय अभिषेक बनर्जी डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से सांसद हैं और टीएमसी के अंदर उनका काफी प्रभाव माना जाता है।
अभिषेक बनर्जी को ममता द्वारा वर्ष 2011 में राजनीति में लॉंच किया गया था। उसके बाद से पार्टी में लगातार उनका उदय होता गया और आज स्थिति ये है कि उन्हें पार्टी में नंबर 2 की हैसियत से देखा जाता है। पिछले कुछ समय से ममता बनर्जी द्वारा उन्हें पार्टी के महत्वपूर्ण सार्वजनिक बैठकों में भी शामिल किया जा रहा है। अभिषेक बनर्जी ने मीडिया से अभी कुछ खास संवाद तो नहीं किया है लेकिन अपने विवादित बयानों के कारण मीडिया में वे कई बार सुर्खियां बटोर चुके हैं। उनके कुछ बयानों के कारण तो कई बार टीएमसी को शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ा है, हालांकि इसकी वजह से पार्टी में उनके कद को कभी नुकसान नहीं पहुंचा। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2015 में जो बयान अभिषेक बनर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के परपौते सिद्धार्थ नाथ सिंह के लिए दिया था, तो उसने ममता बनर्जी की पार्टी को असमंजस की स्थिति में डाल दिया था। उन्होंने तब कहा था ‘अगर लाल बहादुर शास्त्री को यह पता होता कि उनका परपौता ऐसा निकलेगा, तो वे कभी शादी ही नहीं करते’। उससे पहले कि उनका यह विवाद शांत होता, उन्होंने अपने बयान से एक अन्य विवाद को जन्म दे दिया था। उन्होंने जादवपुर यूनिवर्सिटी में वीसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को लेकर यह कहा था कि ये छात्र कैम्पस के अंदर ड्रग्स, गाँजा और शराब के सेवन की आज़ादी चाहते हैं।
यह तो कुछ भी नहीं, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी अपने बयानों से अपनी पार्टी के लिए इससे भी बड़ी मुश्किलें खड़ी कर चुके हैं। वर्ष 2015 में पार्टी के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने टीएमसी का विरोध करने वालों के खिलाफ हिंसा फैलाने तक की धमकी दे डाली थी। उन्होंने कहा था ‘सड़क से लेकर संसद तक के अपने विरोध प्रदर्शन से ममता बनर्जी और टीएमसी ने साबित किया है कि जब बात राज्य से मुद्दों की होती है, तो ममता सरकार कभी उन्हें हल्के में नहीं लेती। जबतक ममता यहां हैं, कोई हमारी तरफ आँख उठाकर नहीं देख सकता, अगर ऐसा कोई करेगा तो हम उसकी आंखे निकालकर बाहर सड़क पर फेंक देंगे, अगर कोई अपने हाथ उठाएगा, तो हम उसकी बाजुओं को ही काट डालेंगे’। अपने इस बयान के माध्यम से उन्होंने राज्य में राजनीतिक हिंसा की परंपरा को बढ़ावा दिया था। पार्टी के अलावा वे अपने बयानों से पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की मुश्किलें भी बढ़ा चुके हैं। उन्होंने यह दावा किया था कि एक नक्सल नेता किशन जी को ममता बनर्जी ने मारा है जबकि इसके उलट खुद ममता बनर्जी ने यह दावा किया था कि किशन जी एक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया है।
अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए टीएमसी के एक प्रभावशाली नेता द्वारा ऐसे खुलेआम हिंसा की धमकी देना बेहद शर्मनाक है। यह टीएमसी की हिंसावादी परंपरा का ही सबसे बड़ा उदाहरण है। हैरानी की बात तो यह है कि ममता द्वारा अब इसी बदजुबान और हिंसक नेता को पार्टी का नया मुखिया बनाने की तैयारी की जा रही है। वर्ष 2021 में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनावों में राज्य के वोटर्स को ऐसी परिवारवादी पार्टी का बहिष्कार करने की सख्त जरूरत है।