लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो गए, और साथ ही साथ ये भी साफ हो गया कि एनडीए सत्ता में बनी रहेगी। 2014 में अपने शानदार प्रदर्शन में चार चांद लगाते हुए भाजपा ने अपनी सीटों की संख्या इस बार 303 सीट तक पहुंचा दी। एनडीए के प्रदर्शन का सबसे ज़्यादा प्रभाव एक बार फिर हिन्दी भाषी प्रदेशों में दिखा। पिछले वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने के बावजूद भाजपा ने अपनी लोकप्रियता बनाए रखी, और 2014 के मुक़ाबले इस बार 350 सीट पर एनडीए ने विजय भी प्राप्त की।
यही नहीं, दक्षिण भारत में भी भाजपा ने इस बार अपनी धमक बनाई है। कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 25 संसदीय सीट अपने नाम की है। यदि हम इसमें भाजपा समर्थित कर्नाटक में मांड्या से निर्दलीय उम्मीदवार एवं अभिनेत्री सुमालता को भी जोड़ ले, तो कांग्रेस और जेडीएस के हाथ केवल एक एक सीट लगी है।
कर्नाटक में भाजपा की ये जीत कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई दिग्गज जैसे मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व कांग्रेसी मंत्री वीरप्पा मोइली एवं के एच मुनियप्पा एवं राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा इस बार अपनी अपनी सीटें बचाने में पूरी तरह असफल रहे हैं।
जाने माने अखबार ‘द हिन्दू’ की हिन्द सीएसडीएस लोकनीति सर्वे ने भाजपा के प्रति बढ़े जनाधार को बखूबी दिखाया है। सर्वे डेटा के अनुसार केंद्र सरकार की नीतियों के प्रति जनता का व्यवहार काफी संतोषजनक रहा है। लगभग तीन चौथाई लोगों ने केंद्र सरकार की नीतियों में अपना विश्वास प्रकट किया। यही नहीं, कर्नाटक राज्य के जातिगत समीकरण भी इस बार भाजपा के पक्ष में दिखाई दिये।
जहां एक तरफ उत्तरी कर्नाटक में भाजपा ने लिंगायतों में अपना समर्थन बरकरार रखा, वहीं जेडीएस और कांग्रेस के बीच बेमेल गठबंधन के खिलाफ दक्षिण कर्नाटक, खासकर वोक्कालिगा बाहुल्य ओल्ड मैसूर की जनता में गुस्सा देखने को मिली। इससे भाजपा को राज्य के जातिगत समीकरण बदलने का सुनहरा अवसर मिला। चुनाव के पश्चात प्रकाशित सर्वे डेटा के अनुसार 10 में से 9 लिंगायत मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। यही नहीं भाजपा राज्य के अन्य ओबीसी और दलितों को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रही है।
ओल्ड मैसूर के इलाके में स्थित वोक्कालिगा समुदाय का भी जेडीएस से मोहभंग शुरू हो चुका है। सर्वे डेटा के अनुसार, इस बार 10 में से 6 वोक्कालीगा मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। कई विशेषज्ञों के अनुसार कांग्रेस और जेडीएस का कुल मत प्रतिशत भाजपा को हराने के लिए काफी था, पर ये अनुमान सच्चाई से कोसों दूर है। रही सही कसर कांग्रेस और जेडीएस के स्थानीय कैडरों के बीच तालमेल की भारी कमी ने पूरी कर दी। इतना ही नहीं, दोनों खेमों में उम्मीदवारों के चुनाव को लेकर काफी असंतोष व्याप्त था। शायद इसी अंदरूनी लड़ाई का परिणाम है कि कांग्रेस और जेडीएस को कर्नाटक में बुरी हार का सामना करना पड़ा है।
युवा वर्ग में भी भाजपा को भारी समर्थन प्राप्त मिला है। यही वजह है कि लोकसभा चुनवों में जातिगत समीकरणों के अलावा युवा वर्ग की पहली पसंद भाजपा होने के कारण पार्टी को फायदा मिला।
कांग्रेस-जेडीएस बेमेल गठबंधन के खिलाफ इस जनादेश ने राज्य की सरकार के अस्तित्व पर अब कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे लाचार प्रदर्शन के बाद दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होना लाज़मी था। गौरतलब है कि कर्नाटक में पिछले वर्ष सम्पन्न हुये विधानसभा चुनावों में भाजपा सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बावजूद सरकार नहीं बना स्की थी जबकि भाजपा से काफी कम सीट लाने वाले जेडीएस और कांग्रेस ने सत्ता की हताशा में एक दूसरे से हाथ मिला लिया था।
ऐसे में अब अगर कर्नाटक में सरकार गिरती है, तो ये भाजपा के लिए राज्य में सरकार बनाने का एक सुनहरा अवसर होगा । लोकसभा चुनावों में मिला ज़बरदस्त जनाधार राज्य के भावी चुनावों के लिए काफी मददगार सिद्ध होगा। कभी कांग्रेस और जेडीएस का गढ़ माने जाने वाले ओल्ड मैसूर और हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में भाजपा ने अपनी स्थिति को मजबूत की है लेकिन अभी भी भाजपा को राज्य में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए प्रयास करने होंगे ताकि भविष्य में जेडीएस-कांग्रेस का बेमेल गठबंधन भी फेल साबित हो जैसे इस बार के लोकसभा चुनावों में हुआ है।