1986 में शाह बानो मामले के कारण कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद चर्चा में आये पूर्व कैबिनेट मंत्री आरिफ मोहम्मद खान एक बार फिर से चर्चा में हैं और इस चर्चा की वजह प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनकी सोच है। अपने मोदी विरोधी रुख के लिए मशहूर पत्रकार करण थप्पर को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर लेफ्ट-लिबरल गैंग द्वारा लगाये जा रहे निराधार आरोपों को खारिज कर दिया है।
जब करण थापर ने आरिफ मोहम्मद खान से पूछा क्या आपको इस तथ्य को लेकर चिंता नहीं होती कि मोदी सरकार में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है और न ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं था। इस सवाल के जवाब में खान ने कहा, ‘मुझे इसे लेकर कोई चिंता नहीं होती..और ये चिंता का सवाल आया कहां से ? वास्तव में आज तक हम उपनिवेशक मानसिकता से बाहर ही नहीं निकल पाए।” उन्होंने आगे कहा, मूल रूप से ये अंग्रेजों की देन है जिन्होंने हमारे मन में ये बातें भरी कि एक मुसलमान ही मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कर सकता है, एक समुदाय से आना वाला व्यक्ति ही उस समुदाय का प्रतिनिधित्व कर सकता है। और यही वजह है कि हमारे देश में समुदाय के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र बनाये गये हैं।‘ खान ने स्पष्ट किया कि जिस सवाल की वो बात कर रहे हैं वो वास्तव में अंग्रेजों की देन है। इससे स्पष्ट है कि बीजेपी द्वारा मुस्लिम विधायक न चुनना करण थापर का अपना मत है।
इसके बाद जब करण थापर ने सवाल किया कि ‘क्या बीजेपी मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित है जिस वजह से उसने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा।‘ इस सवाल के जवाब में खान ने कहा कि ‘उम्मीदवार किसे चुनना है किसे नहीं ये बीजेपी का अपना फैसला है और वो उन्हें ही चुनेंगे जिसको लेकर वो आश्वस्त होगी।‘
आरिफ मोहम्मद खान की ये टिप्पणी धर्म के आधार पर जीते हुए विधायकों पर राजनीति करने वालों को करारा जवाब है। खान की बात सही भी है अगर कोई सांसद किसी निर्वाचन क्षेत्र से जीतता है तो क्या वो उस क्षेत्र के एक विशेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है या पूरे क्षेत्र का। जाहिर है वो पूरे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि उसकी जीत में उस क्षेत्र की जनता का योगदान है जो सांसद के प्रति उनकी उम्मीद को दर्शाता है।
वास्तव में मुख्यधारा की मीडिया की सबसे बड़ी समस्या भी यही है जो ये समझने में असफल रही है कि ‘किसी भी चुने गये प्रत्याशी के धर्म से जुड़ा सवाल कहां से आया ? जबकि कोई उम्मीदवार अपने निर्वाचित क्षेत्र से जीतता है तो वो किसी विशेष समुदाय का नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
इस पूरे इंटरव्यू में जहां एक तरफ थापर बार बार बीजेपी और मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी चित्रित करने का प्रयास कर रहे थे वहीं, दूसरी तरफ आरिफ खान ने स्पष्ट कर दिया कि मोदी सरकार का चुनाव देश की जनता ने किया है ऐसे में जनता के जनादेश पर सवाल उठाने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। वास्तव में करण थापर के इस इंटरव्यू का मकसद सिर्फ यही दर्शाना था कि मोदी सरकार के अंतर्गत मुस्लिम वर्ग असुरक्षित महसूस करता है।
हालांकि, खान ने हर बार थापर के प्रोपेगंडा की धज्जियां उड़ा दी। इसके साथ ही उन्होंने उस तथ्य पर भी प्रकाश डाला जिसे आज भी लोग अनदेखा करते हैं वो ये कि कैसे उपनिवेशक मानसिकता ने जातिवाद और धर्म के आधार पर समाज को बांटने का काम किया है। हालांकि, जब खान ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि हिंदुत्व हो या भारतीयता ये दोनों ही एकरूपता की संस्कृति नहीं बल्कि समावेश की संस्कृति को दर्शाते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा को लेकर थापर जो भी कह रहे थे वो उनके व्यक्तिगत विचार हैं। मैंने कभी इस तरह की बातें किसी भी आरएसएस या बीजेपी के शीर्ष नेताओं से नहीं सुनी हैं।
इसके साथ ही खान ने छद्म धर्मनिरपेक्षता पर भी निशाना साधा और कहा कि यदि धर्मनिरपेक्षता का मतलब अलग पहचान का भ्रम पैदा करना है और तलाकशुदा महिलाओं के अधिकारों का हनन करना है तो इस तरह के धर्मनिरपेक्षता की पोल खोलना जरुरी हो जाता है।
कुल मिलाकर खान का इंटरव्यू एक ऐसा प्रोपेगंडा का खुलासा करता है जो समाज में नफरत फ़ैलाने का काम करते हैं और शर्म की बात तो ये है कि मुख्यधारा मीडिया का एक वर्ग भी इसमें शामिल है। अब ये समय की मांग है कि इस तरह प्रोपेगंडा को फैलने से रोका जाए और किसी भी प्रतिनिधित्व का चुनाव उसके धर्म और जाति के आधार पर न किया जाये। ये सौभाग्य की बात है हमने पृथक निर्वाचिका प्रणाली को काफी पीछे छोड़ दिया है और हमारे संविधान में प्रादेशिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को अपनाया गया है। अब जरूरत है हमें चुनावी प्रक्रिया का विश्लेष्ण करने का और इस तरह की खबरों की गहराई में जाने का। साथ ही अंग्रेजों द्वारा बोये गये विभाजन के बीज को जड़ से उखाड़ फेंकने का।