वंशवाद और कांग्रेस का काफी पुराना नाता रहा है जो राजनीति में सालों से देखने को मिलता रहा है, जिसकी वजह से उनको चुनावों में लगातार शर्मनाक हार का भी सामना करना पड़ा। लेकिन देश का भला सोंचने के इतर वह परिवारवाद को बढ़ावा देने में ज्यादा भरोसा रखते हैं। एनडीटीवी की सीनियर रिपोर्टर और लेखक सोनिया सिंह की हाल ही में ‘डिफ़ाइनिंग इंडिया’ नाम की एक पुस्तक लॉंच हुई थी जिसमें उनहोंने उद्योगपति नंदन निलेकणी के संघर्ष की कहानी को बखूबी दर्शाया है कि कैसे वह युपिया कार्यकाल में वंशवाद की राजनीति से गुजरे हैं। साथ ही पार्टी की वंशवादी राजनीति और किस तरह से सोनिया गांधी आधार कार्ड में ‘भगवा’ को देखकर भड़क गई थीं..जैसे कुछ घटनाओं का भी उल्लेख है।
बात है वर्ष 2009 की जब कांग्रेस को 206 सीटों की शानदार बढ़त मिली थी और वह इससे गदगद हो उठे थे। चुनावों में मिली विजय के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नए मंत्रिमंडल का गठन करने के लिए मीटिंग बुलाई और कहा कि, वह एचआरडी मिनिस्ट्री में किसी नए चेहरे को शामिल करना चाहती हैं। इस अप्रत्याशित जीत के बाद राहुल गांधी ने नंदन निलेकणी का नाम सुझाया और उनको फोन कर मंत्री बनाए जाने की बात कही। हम आपको पहले यह बता दें कि, नंदन नीलेकणी इन्फोसिस जैसी दिग्गज आईटी कंपनी के को फाउंडर हैं जिनका सियासत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। हालांकि, वह एक बार बैंगलोर दक्षिण से चुनाव मैदान में उतरे थे जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। बक़ौल ‘नंदन नीलेकणी’ बताते हैं ‘राहुल गांधी ने मुझे फोन किया और कहा कि तुमको मंत्री पद दिया जा रहा है क्या स्वीकार करोगे?’ इस ऑफर के जवाब में नंदन निलेकणी ने अपने दोस्तों से विचार करने के बाद ‘हामी भर दी’। लेकिन आखिरी समय में जब दिल्ली में शपथ ग्रहण होना था उस वक्त राहुल ने फोन करके उनको पद देने से मना कर दिया था।
यह सब तो ठीक है, लेकिन सबसे बड़ी हैरान करने वाली बात यह थी कि, ‘आखिर किस आधार पर राहुल गांधी उनको मंत्री पद बांट रहे थे।‘ गौरतलब है कि, मंत्रिमंडल के सदस्यों पर प्रधानमंत्री विचार करता है लेकिन यहां पर राहुल सीधे जो सिर्फ एक सांसद थे वो खुद प्रधानमंत्री के फैसले ले रहे थे कि किसे मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए और किसे नहीं।
हालांकि, यहां राहुल गांधी के फैसले को बदलने वाली और कोई नहीं बल्कि सोनिया गांधी का फैसला होगा जिस वजह से नंदन निलेकणी को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया। ऐसे में यह साफ दर्शाता है कि कांग्रेस पार्टी कभी भी अपनी परिवारवाद राजनीति और पार्टी को एक व्यापार की तरह चलाने से ऊपर नहीं उठ सकी।
हमेशा ही से नेहरु-गांधी परिवार ने पार्टी को व्यापार की तरह चलाया और जो सही लगा वो फैसले लिए. जिस तरह से डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए भी वो खुद फैसले ले रहे थे वो इसे साबित भी करता है। सच तो ये था कि सोनिया गांधी भले ही अधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री नहीं बन सकी थीं लेकिन प्रधानमंत्री की शक्तियों का इस्तेमाल तो वही करती थीं और वही बड़े फैसले लेती थीं. डॉक्टर मनमोहन सिंह तो सिर्फ फैसलों को अधिकारिक रूप से मुहर लगाते थे। सोनिया गांधी के हस्तक्षेप का यह स्तर था, कि उन्होंने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की स्थापना की और खुद के वफादारों को ही इसमें शामिल किया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद एक वैकल्पिक कैबिनेट की तरह उभरा था। एनएसी ने कई प्रमुख कई प्रमुख विधेयकों के मसौदों में हस्तक्षेप किया था, जिनमें सूचना का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, कर्मचारी गारंटी अधिनियम और खाद्य सुरक्षा जैसे विधेयक शामिल हैं।
सोनिया गांधी भी शुरू से अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस की कमान अपने हाथों में रखती आई हैं। मनमोहन सिंह भले ही प्रधानमंत्री के पद पर आसीन थे लेकिन पार्टी द्वारा तैयार की जाने वाली रणनीति और फैसले सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी ही करती थीं। इस बात से देश की जनता भली भांति वाकिफ थी जो ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म के जरिये और बेहतर ढंग से जनता के समक्ष आई। खैर, यह तो रही मंत्रिमंडल के गठन में दिखी पार्टी के वंशवादी रवैये की, इसके इतर एक और बड़ा मामला भी इस किताब में है। यह मामला UIDAI (आधार) से जुड़ा है, जब नंदन नीलेकणी ने आधार का सुझाव पेश किया जिसमें ‘भगवा’ रंग देखकर सोनिया गांधी भड़क गई थीं। नंदन ने बताया कि, सोनिया गांधी ने उनसे कहा ‘आधार में बीजेपी का रंग क्यों इस्तेमाल किया है?’ इसके बाद नंदन निलेकणी ने बताया कि यह राष्ट्र के तिरंगे को दर्शाता है जो एक सम्मान की बात है। खुद को साबित करने के लिए उन्होंने बाद में आधार के कुछ सैंपल भी दिखाये। वह कहते हैं ‘यह बेहद हैरानी वाली बात है कि, आधार में भगवा रंग देखकर वह इतना भड़क गईं कि, उनको राष्ट्रवाद का मान न दिखा लेकिन विपक्षी दल का रंग उमें नजर आ रहा था। जाहिर है भगवा(Saffron) कलर देखकर सबसे पहले एक भारतीय के मन में तिरंगे की ही छवि बनेगी और वह इससे गौरवान्वित महसूस करेगा।
ऐसे में यह घटना साफ जाहिर करती है कि, कांग्रेस पार्टी में सिर्फ वंशवाद को बढ़ावा देने का काम किया जाता रहा है लेकिन राष्ट्रवाद मुद्दा कभी ज्यादा महत्वपूर्ण रहा ही नहीं। पार्टी ने कभी भी ऐसा काम नहीं कि दुनिया में भारत को ख्याति मिले और वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत देश के रूप में देखा जाये। यह कहना गलत नहीं होगा कि वंशवाद की राजनीति के कारण ही आज कांग्रेस का हाल एक क्षेत्रीय पार्टी से भी बदतर हो गया है और वह अपने अंत की ओर बढ़ चली है। नंदन निलेकणी जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति का कांग्रेस की इस छवि का बताना पार्टी की और दुर्दशा को और अधिक बिगाड़ने की दिशा में काम कर सकता है। देश की जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया है लेकिन इसके बाद भी उनमें वंशवाद को बढ़ावा देने की नीति थमी नहीं है फिर से सोनिया गांधी हैं जिनको कांग्रेस पार्लियामेंट्री(CPP) का अध्यक्ष चुना जाना यही दर्शाता है।