यह लेख राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को लेकर जारी हमारी सिरीज़ का तीसरा भाग है। अपने विश्लेषण के दौरान हम आपको बताएँगे कि यह शिक्षा नीति बढ़ती उम्र के साथ कैसे आपके बच्चों पर सकारात्मक असर डालेगी और देश में अब तक चली आ रही पुरानी शिक्षा नीति से यह अलग कैसे है।
इस सिरीज़ की पिछले दो लेखों में हम आपको बता चुके हैं कि कैसे अब तक स्कूलों में 10+2 का फॉर्मूला चलता आया है। लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत सब कुछ बदलने वाला है। ड्राफ्ट के मुताबिक प्री-स्कूल से लेकर दूसरी कक्षा तक की शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत लाया गया है। इसके बाद तीसरी कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक की शिक्षा को इस ड्राफ्ट में प्रारम्भिक शिक्षा माना गया है। इन तीन सालों के दौरान बच्चों को खेल-कूद आधारित शिक्षा के साथ-साथ पाठ्यपुस्तक आधारित शिक्षा भी प्रदान की जाएगी। पांचवी कक्षा के बाद छठी से लेकर आठवीं कक्षा तक की शिक्षा को इस ड्राफ्ट में माध्यमिक शिक्षा कहा गया है। इन तीन सालों के दौरान बच्चों को विज्ञान, गणित, कला, सामाजिक विज्ञान और मानविकी संबंधी विषय पढ़ाए जाएंगे। हम आपको बता चुके हैं कि एनईपी के ड्राफ्ट के मुताबिक कक्षा तीन से लेकर पांच तक बच्चों को ‘जनरलिस्टिक टीचर्स’ यानि ऐसे अध्यापक पढ़ाएंगे जिन्हे लगभग सभी विषयों की जानकारी होगी, लेकिन माध्यमिक स्तर के दौरान बच्चों को विषय से संबन्धित विशेषज्ञ अध्यापक पढ़ाएंगे जो एक विशेष विषय के ही जानकार होंगे। इसके अलावा छात्रों को कला एवं शारीरिक शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।
इस ड्राफ्ट में इस बात का ध्यान रखा गया है कि बच्चों को कम उम्र में ही उनके पसंदीदा विषय का विशेषज्ञ बना दिया जाए। एनईपी के ड्राफ्ट के मुताबिक स्कूल, ब्लॉक और जिला स्तर पर विषय केन्द्रित और प्रोजेक्ट आधारित क्लब्स बनाए जाएंगे। केंद्र सरकार द्वारा फ़ंड किए जाने वाले ऐसे कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा जिसके तहत एक जैसी रूचि रखने वाले छात्रों को एक दूसरे के नजदीक लाया जा सके। इससे इन छात्रों को आपस में विचार साझा करने के साथ-साथ उन्हें एक दूसरे का सहयोग करने का भी मौका मिलेगा।
भाषा की बात करें, तो इस ड्राफ्ट में भाषा के माध्यम से देश के सभी कौनों से छात्रों को एकजुट करने का प्रयास किया जाएगा। नई शिक्षा नीति में माध्यमिक शिक्षा में ‘भारत की विभिन्न भाषाओं’ से संबन्धित पाठ्यक्रम को शामिल किया जाएगा जिसके तहत देश की तमाम भाषाओं के बीच की समानता को अंकित किया जाएगा। इसके अलावा पाठ्यक्रम में देश की अलग-अलग भाषाओं का संस्कृत और तमिल जैसी शास्त्रीय भाषाओं के साथ संबंध को दर्शाया जाएगा। जाहिर है कि ऐसे कोर्स के माध्यम से छात्रों को कम उम्र में ही देश की विभिन्नता से अवगत कराया जाएगा और बच्चों में एकता के भाव को बढ़ावा दिया जाएगा। इस कोर्स के अलावा बच्चों को किसी एक शास्त्रीय भाषा से संबन्धित दो-वर्षीय कोर्स भी कराया जाएगा। जिन बच्चों ने पहले से ही संस्कृत को अपनी मुख्य तीन भाषाओं के तौर पर चुन लिया होगा, तो उनके पास तमिल, तेलुगू, कन्नड, मलयालम और ओडिया जैसी अन्य शास्त्रीय भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनने का मौका मिलेगा। उत्तर भारत के छात्रों के बीच इन भाषाओं के प्रचार से उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच फैल चुके भाषीय भेद को खत्म करने में हमें काफी हद तक मदद मिलने की उम्मीद है।
इसके अलावा बच्चों को ‘संचार’ संबंधी शिक्षा भी प्रदान की जाएगी। छात्रों को अलग-अलग विषयों पर अपने विचार रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके अलावा बच्चों को समाज के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। इन सबके अलावा माध्यमिक शिक्षा के दौरान 4 अन्य तरीके के कोर्स को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
1) कक्षा छठी, सातवीं और आठवीं में वोकेशनल स्किल्स और क्राफ्ट कोर्स को जोड़ा जाएगा।
2) बच्चों को मूल स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि जरूरत के समय में ये छात्र अपनी और जरूरतमंदों को उचित प्राथमिक सहायता उपलब्ध करा सके।
3) नैतिक शिक्षा संबंधी कोर्स को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
4) इसके अलावा कक्षा 7 और आठ में बच्चों के चिंतन कौशल को विकसित करने के लिए बच्चों को समाज के सामने पेश आ रही चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
यह तो हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि तीसरी और पांचवी कक्षा में बच्चों का जनगणना आधारित एक टेस्ट होगा जिसमें इन तीन सालों के दौरान बच्चों की ज्ञान वृद्धि को परखा जाएगा। इन दो कक्षाओं के अलावा आठवीं कक्षा में भी एक जनगणना आधारित टेस्ट होगा जिसमें छठी, सातवीं और आठवीं कक्षा के दौरान बच्चों द्वारा अर्जित ज्ञान की गुणवत्ता का स्तर जांचा जाएगा। जनगणना आधारित टेस्ट का मतलब है कि सभी बच्चों का टेस्ट नहीं होगा बल्कि ज्ञान वृद्धि का आंकड़ा जुटाने और शिक्षा स्तर की गुणवत्ता को जांचने के लिए सिर्फ चुनिंदा बच्चों को ही परीक्षा देनी होगी।
जाहिर है कि इस नई शिक्षा नीति के तहत देश की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ी क्रांति आने वाली है। ड्राफ्ट के मुताबिक देश के छात्रों के दिमाग से रट्टेबाजी की आदत को निकालकर बच्चों को गहन चिंतन करने की ओर प्रेरित किया जाएगा। कुल मिलाकर यह नई शिक्षा नीति देश का भविष्य माने जाने वाले बच्चों के लिए क्रांतिकारी साबित होगी इसका हम सभी को स्वागत करना चाहिए। अगर यह नीति सफलतापूर्वक लागू होती है तो आने वाले समय में भारत में मानव संसाधन की गुणवत्ता में बड़ा और सकारात्मक बदलाव होने की उम्मीदें हैं।