प्राचीन समय में एक कहावत बड़ी प्रचलित थी – ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई’, अर्थात् रघुकुल के समय से ये रीति सर्वमान्य है, प्राण भले ही चली जाए पर वचन न जाए। परंतु आज के भारतीय पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में अगर इसे देखा जाये, तो ये कहावत कुछ इस प्रकार होगी –
‘लुटियंस’ रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर टीआरपी न जाई!’
इसी का एक और बेजोड़ नमूना पेश किया है ‘आज तक’ ने, जब उन्होनें कश्मीर में वर्तमान स्थिति का जायजा लेने के नाम पर अपनी घटिया पत्रकारिता का एक और घटिया नमूना पेश किया। मूल घटना के अनुसार आज तक की पत्रकार मौसमी सिंह श्रीनगर में कश्मीर के वर्तमान स्थिति का जायज़ा लेने जा रही थीं, और उनके साथ सुरक्षा एजेंसियों ने कथित तौर पर बदसलूकी की, जिसे बाद में आज तक ने बढ़ा चढ़ा कर कुछ इस प्रकार से दिखाया –
श्रीनगर एयरपोर्ट पर सुरक्षाकर्मियों ने की मीडिया से बदसलूकी। देखिए @mausamii2u की रिपोर्ट #ATVideo
अन्य वीडियो: https://t.co/0lHmKyGH0i pic.twitter.com/PiFyrhPVFc— AajTak (@aajtak) August 24, 2019
हालांकि सोशल मीडिया के कुछ जागरूक यूज़र्स ने जब जांच पड़ताल की, तो माजरा कुछ और ही निकला। दरअसल, जम्मू–कश्मीर में अभी भी संविधान का अनुच्छेद 19 की दूसरी धारा लागू है, जिसके अंतर्गत क्षेत्र के सुरक्षा की दृष्टि से कुछ चीजों पर अभी भी रोक लगी हुई है। वैसे भी, सुरक्षा कारणों से श्रीनगर एयरपोर्ट पर अनावश्यक फोटोग्राफी अथवा वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों के सामने ज़बरदस्ती माइक लगाना और उनसे बदतमीजी से व्यवहार करना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता कैसे हुई?
जब प्रशासनिक कारणों से सुरक्षा एजेंसियों ने मौसमी सिंह और आज तक के अन्य पत्रकारों को अनावश्यक कवरेज करने से रोका, तो उल्टा मौसमी ने उन पर बदसलूकी करने का आरोप लगाया। इसके अलावा मौसमी ने महिला कांस्टेबल द्वारा दुर्व्यवहार करने का भी आरोप लगाया, जबकि श्रीनगर एयरपोर्ट पर उस समय महिला कांस्टेबल उपस्थित भी नहीं थीं। ऐसे में मौसमी के इस दोहरे रुख से आक्रोशित होकर कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने न केवल #ShameonAajTak और #BoycottAajTak ट्रेंड कराया, बल्कि मौसमी सिंह और आज तक को उनकी घटिया पत्रकारिता के लिए खूब खरी खोटी भी सुनाई –
https://twitter.com/ippatel/status/1165268176352903169
Even she can't report the news without doing any drama.. 🤔pic.twitter.com/x9aehhh30J
— Param|PCS 🇮🇳 (@FunMauji) August 24, 2019
I am ashamed to see @IndiaToday hiring actors just for a few TRPs.
Shouldn’t Mr. Puri be held responsible for his reporters shooting at Srinagar airport where even photography isn’t allowed since decades for national security reasons.
This is not journalism. This is crime.
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) August 24, 2019
When she shoved her mike towards the police, he should have smacked her! That would have put her in her place….rude
— Ro1 (@r04han) August 24, 2019
https://twitter.com/RanjitSMand/status/1165195103385743362
हालांकि यह पहला मामला नहीं है जब मौसमी ने इस प्रकार की घटिया पत्रकारिता का सहारा लिया हो। मौसमी सिंह अनाधिकारिक रूप से कांग्रेस पार्टी का प्रचार करती है, चाहे वो प्रियंका गांधी का समर्थन करने के लिए कुछ राहगीरों को उकसाना हो, या फिर कुछ पत्रकारों द्वारा बड़बोले कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर से कठिन सवाल पूछे जाने पर उनसे बदतमीजी से व्यवहार करना हो, मौसमी सिंह ने वो सब कुछ किया है, जो पत्रकारिता के मानकों पर बिलकुल भी खरा नहीं उतरता। ऐसे में यदि वे केवल टीआरपी के लिए श्रीनगर में सुरक्षा कर्मियों से बदसलूकी करें, और बाद में अपने आप को सही ठहराने के लिए पीड़िता बनने का नाटक करें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इससे पहले भी आज तक ऐसी ही घटिया पत्रकारिता के लिए हाल ही में आलोचना का शिकार बना था। जब बिहार में बच्चे दिमागी बुखार का शिकार बन रहे थे, तो आज तक की प्रख्यात पत्रकार अंजना ओम कश्यप ने मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में कवरेज के लिए पहुंची, और बिना कुछ सोचे समझे वहाँ उपस्थित एक डॉक्टर से अतार्किक सवाल जवाब करने लगीं जिसके जिसके बाद सोशल मीडिया पर उन्हें जमकर लताड़ा गया।
Shame On You #AnjanaOmKashyap
Ask Power Modi Ji Nitish Babu Health Minister after 100+ death u r run to cover after doin Hindu Muslim one month fuk off. If you have courage ask resignation from CM and pm.#Muzzafarpur #IMA@anjanaomkashyap @aajtak@SanjayTripathi_ @JitinPrasada pic.twitter.com/mTqF6revXk— Pawan Dixit 🇮🇳 (@IncDixit) June 19, 2019
इसी तरह अपनी आदतों से बाज़ न आते हुए अंजना ने कुछ दिन पहले टीआरपी के कुछ अंकों के लिए पत्रकारिता को शर्मसार करते हुये उत्तर प्रदेश के एक विधायक की अपने बेटी के विवाह से कारण हुई अनबन को सबके सामने उजागर करते हुए पूरे परिवार को ही विलेन घोषित कर दिया। क्या इसे हम पत्रकारिता कहेंगे? सिर्फ टीआरपी के लिए इस हद तक गिर जाना पत्रकारिकता के किन मानकों पर लिखा गया है? आज तक का इस घटिया पत्रकारिता को अप्रत्यक्ष समर्थन देने के लिए जितनी भी निंदा की जाये, कम है।