गृह मंत्री अमित शाह ने कल यानि मंगलवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल और अनुच्छेद 370 के प्रभाव को कम करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। सोमवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल को राज्यसभा से पास करा लिया गया था जहां इस बिल के समर्थन में 125 मत पड़े जबकि बिल के विरोध में सिर्फ 61 मत ही पड़े थे। कांग्रेस ने इस बिल का पुरजोर तरीके से विरोध किया था और यह विरोध मंगलवार को लोकसभा में भी देखने को मिला। हालांकि, इस दौरान लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने बेहद शर्मनाक बयान दिया। अधीर रंजन ने सरकार से यह सवाल पूछा कि “क्या अनुच्छेद 370 का मुद्दा भारत का आतंरिक मामला है? और क्या भारत को इसपर एकतरफा फैसला लेने का अधिकार है?” रंजन चौधरी के इस बेतुके सवाल पर गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें जोरदार जवाब दिया और उनसे पूछा कि क्या कांग्रेस पीओके को भारत का हिस्सा मानती है या नहीं! इसके अलावा शाह ने कांग्रेस से यह भी स्पष्ट करने को कहा कि क्या अधीर रंजन द्वारा कहे गये शब्द कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक लाइन है?
अधीर रंजन चौधरी का यह बयान राष्ट्र को शर्मसार करने वाला था। हैरानी की बात तो यह थी कि अधीर रंजन के इस विवादित बयान को लेकर कांग्रेस पार्टी खुद व्याकुल दिखी। जब अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में बयान दे रहे थे, तब सोनिया गांधी इशारों ही इशारों में साथी कांग्रेस सांसदों से कुछ सवाल पूछती नज़र आ रही थीं और इसके साथ ही वे परेशान भी दिखाई दे रही थी। बाद में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स सामने आने के बाद यह खुलासा हुआ कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी अधीर रंजन चौधरी के बयान की वजह से काफी गुस्से में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुबह की बैठक में पार्टी ने जिन विषयों को लेकर सरकार को घेरने की योजना बनाई थी, रंजन ने उन सभी विषयों से हटकर एक विवादित बयान दे डाला, और भाजपा और अमित शाह को कांग्रेस पर हमला करने के लिए बैठे-बिठाए एक बढ़िया मुद्दा दे दिया।
कांग्रेस की इस दुविधा से कांग्रेस पार्टी में लंबे समय से चल रहा नेतृत्व संकट एक बार फिर सबके सामने उभरकर आया है। लोकसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद से ही कांग्रेस पूरी तरह नेतृत्वविहीन हो चुकी है। और कांग्रेस के अंदर यह मतभेद केवल लोकसभा तक ही सीमित नहीं हैं। अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पूरी कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी नज़र आ रही है। ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेस नेतृत्व अब सिर्फ पी चिदम्बरम, कपिल सिब्बल, और ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं द्वारा ही चलाया जा रहा है, जो देश के अन्य कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के आवाज़ को दबाकर अपनी मनमानी करने पर अड़े हुए हैं। ये वरिष्ठ नेता जहां एक तरफ संसद में सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेन्द्र हुड्डा जैसे बड़े क्षेत्रीय नेता इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं।
कांग्रेस का यह नेतृत्व संकट ही है जिसके कारण अधीर रंजन चौधरी जैसे नेता लोकसभा में खड़े होकर ऐसे बयान दे रहे हैं जो कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष को कमजोर करते हैं। अगर भविष्य में कांग्रेसी नेताओं का यही देश-विरोधी रुख जारी रहता है, तो पार्टी के पहले से कमजोर पड़ चुके जनाधार को और बड़ा झटका पहुंच सकता है। कांग्रेस को जल्द से जल्द इस विषय में कोई बड़ा फैसला लेने की जरूरत है, अन्यथा कांग्रेस का यह नेतृत्व संकट पार्टी के अस्तित्व के लिए ही एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।