ट्विटर पर बुधवार से ही विवाद छिड़ा हुआ है। बीते दो दिनों से ट्विटर पर लोग जोमैटो फूड डिलीवरी को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इस विवाद के साथ ही मिरर नाऊ की संपादिका एवं पत्रकार फाये डिसूज़ा का भी दोहरा रुख सभी के सामने आ गया जो केवल हिंदू धर्म को निशाना बनाने का अवसर ढूंढती हैं। अब फाये डिसूज़ा का इससे क्या संबंध ?
बता दें कि जोमैटो का विवाद तब शुरू हुआ था एक यूजर ने फूड आर्डरिंग एप्प जोमैटो से अपना आर्डर इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि डिलीवरी बॉय हिंदू नहीं था। ऑर्डर रद्द करने के बाद उस युवक ने जोमैटो को कोट करके ट्विट कर कहा कि मैंने डिलीवरी कैंसिल कर दी थी लेकिन फिर भी मुझे रिफंड नहीं किया गया।
इसी पर ज़ोमैटो ने उक्त यूज़र के ट्वीट के जवाब में कहा, ‘खाने का कोई धर्म नहीं होता, खाना खुद एक धर्म है।”। इसी के साथ Zomato ने ‘भोजन का कोई धर्म नहीं होता’ नामक अभियान प्रारम्भ कर दिया। खुद ज़ोमैटो के संस्थापक ने इस विवाद में अपना मत रखते हुए कहा, ‘हम भारत के विचारों और हमारे ग्राहकों-पार्टनरों की विविधता पर गर्व करते हैं। हमारे इन मूल्यों की वजह से अगर बिजनेस को किसी तरह का नुकसान होता है तो हमें इसके लिए दुख नहीं होगा।’
We are proud of the idea of India – and the diversity of our esteemed customers and partners. We aren’t sorry to lose any business that comes in the way of our values. 🇮🇳 https://t.co/cgSIW2ow9B
— Deepinder Goyal (@deepigoyal) July 31, 2019
जाहिर है कि जोमैटो का बयान अतार्किक है, भारत में भोजन का धर्म अवश्य होता है। यदि दूसरे शब्दों में कहें तो अपने खाने पीने की आदतों और हमारे खाने की पसंद हमारे धार्मिक भावनाएँ और हमारी व्यक्तिगत आस्था ही तय करती है। हम जो भी खाते हैं, वह हमारी धार्मिक भावनाओं के अंतर्गत ही आती हैं, जिसे भोजन का भी एक धार्मिक एंगल बन जाता है। लेकिन ज़ोमैटो के मामले में हमारे छद्म बुद्धिजीवी एवं लेफ्ट लिब्रल पत्रकार देश को ज्ञान बाँचने से बाज़ नहीं आ रहा है और इस विषय में भी इन्होंने अपने एजेंडे के तहत धार्मिक एंगल देना शुरू कर दिया।
लेकिन इसी बीच इस ट्रेंड को बढ़ावा देने में जिस पत्रकार का असली चेहरा सबके सामने उभरकर आया है, वो है मिरर नाऊ की संपादिका एवं पत्रकार फाये डिसूज़ा, जिन्होंने इससे पहले अक्षय पात्र के भोजन पर बवाल खड़ा किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय पात्र संस्था अपने भोजन में लहसुन और प्याज़ तक का उपयोग नहीं करता। चूंकि ये दोनों सब्जियाँ शास्त्रानुसार तामसिक प्रवृत्ति की हैं, इसलिए जिन राज्यों के स्कूलों को भोजन उपलब्ध करा रही है उसमें भी लहसुन और प्याज़ का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
परंतु ये बात विवादित अखबार ‘द हिन्दू’ को नागवार गुज़री और इसने एक भ्रामक लेख लिखते हुए ये प्रश्न किया – ‘कर्नाटक के स्कूली बच्चों को मिड डे मील से घृणा क्यों है?” इसी लेख का उपयोग करते हुए फाये डिसूज़ा ने सनातन धर्म के आहार संबंधी परम्पराओं का मज़ाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनके अनुसार, ‘हम धार्मिक शास्त्रों का उपयोग किसी गरीब बच्चे के आहार को तय करने के लिए नहीं कर सकते”।
Editorial — We cannot use religious philosophy to dictate what these children will or will not eat, simply because they're poor. @fayedsouza pic.twitter.com/sKWpRpb1ky
— Mirror Now (@MirrorNow) June 4, 2019
फाये डिसूज़ा ने दावा किया था कि प्याज़ और लहसुन को इनके आहार में शामिल करने से भोजन की गुणवत्ता और पोषण में काफी सुधार आएगा। हालांकि, यह तर्क काफी बेतुका है कि केवल प्याज़ और लहसुन के कारण किसी आहार के पोषक तत्वों में वृद्धि संभव है। परंतु जब ज़ोमैटो का विवाद सामने आया, तब इसी फाये डिसूज़ा ने ‘भोजन का कोई धर्म नहीं होता’ कहने में तनिक भी देर नहीं हुई।
“Akshay Patra’s food has religion
but Zomato’s food has no religion”
Right on ‘Hypocrisy’ @fayedsouza pic.twitter.com/qkEhLVVoOq— Shash (@pokershash) July 31, 2019
जो कल तक अक्षय पात्र को धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए दोषी ठहरा रही थीं, अब वही फाये डिसूज़ा ज़ोमैटो के विवाद पर अपने एजेंडे के अनुसार ज्ञान देती फिर रही हैं। इस्लाम और यहूदी धर्म में भोजन को लेकर काफी कठोर नियम बनाए गए हैं। लेकिन फाये डिसूज़ा को केवल भारतीय संस्कृति से ही आपत्ति होती है, क्योंकि ये उनके लिबरल यूटोपिया की स्थापना में आड़े आता है।