मीडिया और नौकरशाह दोनों ही आम जनता के लिए काम करते हैं, लेकिन एक नौकरशाह का सरकार की तरफ इसलिए ज्यादा झुकाव होता है क्योंकि उसे सरकार से वेतन-भत्ता मिलता है। वहीं मीडिया का झुकाव आम जनता की तरफ इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि वे स्वतंत्र होते है और सरकार से भी उन्हें किसी प्रकार का लालच नहीं होता, ऐसे में मीडिया की कमाई जनता पर ही निर्भर रहती है।
जरा सोचिए कि जब मीडिया भी सरकार से वेतन-भत्ता लेने लगेगी तो क्या होगा? कुछ इसी से संबंधित खबर आ रही है पश्चिम बंगाल से जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वे ‘जॉब गारंटी’ स्कीम के तहत विधानसभा में पत्रकारों की नौकरी के लिए एक बिल पारित करेंगी, जिससे उन्हें सरकार की तरफ से लाभ मिले।
रिपोर्ट्स के मुताबिक 24 जुलाई को कोलकाता प्रेस क्लब की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित प्लैटिनम जुबली कार्यक्रम में ममता पहुंचीं और उन्होंने पेंशन स्कीम के दायरे में आए 69 वरिष्ठ पत्रकारों को पेंशन संबंधी कागजात सौंपे। इन सभी पत्रकारों को पश्चिम बंगाल की ममता सरकार द्वारा 2,500 रूपए प्रति माह दिए जाएंगे। ममता बनर्जी की सरकार ने पिछले साल दिसंबर में इनमें से 30 पत्रकारों की सूची जारी कर दी थी, जिन्हें अभी पेंशन योजना का लाभ मिलेगा।
आज के दौर की मीडिया अपने एजेंडे के तहत ही खबरें प्रकाशित कर रही हैं। जो सच है उसे दिखाने की बजाय आज की मीडिया का झुकाव किसी न किसी राजनीतिक दल, विचारधारा की तरफ है और नतीजा यह है कि आज आम जनता तक जो खबरें पहुंच रही हैं वो निष्पक्ष नहीं है।
कुछ ऐसा ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने किया था। उन्होंने पिछले साल राज्य में ‘गोपबंधु संवादिका स्वास्थ्य बीमा योजना’ लागू की थी जिससे कि पत्रकारों को सम्मानित किया जा सके। पटनायक की सरकार पत्रकारों को इस योजना के तहत हर साल 2 लाख रूपए व बीमा कवरेज दे रही है। ओडिशा में इस योजना के तहत पहले चरण में 3,233 पत्रकारों को शामिल किया गया था।
यह सोचने वाली बात है कि राज्य गरीबों के कल्याण पर काम न करके पत्रकारों को लाभ पहुंचा रही है, जाहिर है कि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार भी नवीन पटनायक सरकार की तरह पत्रकारों को साधने में जुटी हुई है।
राज्य सरकारों का गरीबी, स्वास्थ्य व सुरक्षा से परे अब केवल पत्रकारों पर ही ध्यान रह गया है। ऐसा करके ममता बनर्जी पत्रकारों को अपने मनमुताबिक खबरों को जनता तक पहुंचाने में सफल होंगी। इन योजनाओं से यह भी पता चलता है कि ममता बनर्जी आम लोगों के कल्याण में दिलचस्पी नहीं रखती हैं और वो केवल पत्रकारों को खुश कर आम जनता को बरगलाने का काम करना चाहती हैं। ममता सरकार की इस योजना से उनकी सरकार का प्रचार होगा और जो सरकार के सच्चे व वफादार पत्रकार होंगे उन्हें इस योजना का लाभ मिलना तो तय है ही।
इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें पत्रकारों ने केवल अपने फायदे के लिए लॉबीस्ट के रूप में काम किया है। मीडिया और राजनीतिक दलों की सांठ-गांठ का सबसे प्रमुख उदाहरण राडिया टेप विवाद है जिसमें कई दिग्गज पत्रकार भी शामिल थे। कांग्रेस के 10 वर्षों के शासनकाल में मीडिया के चाटुकारों को मुफ्त विदेशी दौरे के लिए भी आमंत्रित किया जाता था जो उन्हें वर्तमान भाजपा की सरकार में नहीं मिल रहा है।
अब इस तरह के पत्रकारों में कांग्रेस के प्रति वफादारी और बीजेपी के लिए गुस्सा स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। यह सभी सिर्फ पेशे से पत्रकार हैं लेकिन पुरानी राजनीतिक पार्टी की चाटुकारिता में जुटे रहते हैं। ममता बनर्जी की इस योजना से कांग्रेस शासन के दौरान के कुछ ऐसे पत्रकार बाहर आएंगे जो अब तृणमूल कांग्रेस की सेवा करेंगे। अब पश्चिम बंगाल के पत्रकार व टीएमसी समर्थित देश के पत्रकार राज्य में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को नजरअंदाज कर ममता का गुणगान करेंगे।