हाल ही में मीडिया और सिनेमा से संबन्धित 49 हस्तियों ने पीएम मोदी को एक सार्वजनिक पत्र लिखते हुये उनका ध्यान मॉब लिंचिंग की बढ़ती हुई घटनाओं के प्रति आकर्षित करने का प्रयास किया था। उन 49 हस्तियों की इस सूची में अदूर गोपालाकृष्णन, अनुराग कश्यप, अपर्णा सेन, रामचंद्र गुहा और बिनायक सेन जैसे लोग शामिल थे, इनमें बिनायक सेन देशद्रोह के गंभीर अपराध में दोषी पाये जा चुके हैं।
इसके बाद सिनेमा जगत के 62 हस्तियों ने उन 49 हस्तियों के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा। जैसा कि सभी जानते हैं कि 49 हस्तियों द्वारा लिखा गया ये पत्र कुछ नहीं केवल राजनीति से प्रेरित था और यही वजह है कि इन सभी को सोशल मीडिया पर यूजर्स ने खूब लताड़ लगाई। परंतु इस पत्र से कई सवाल भी खड़े होते हैं। सवाल ये कि क्या इनका डर उचित है, या ऐसी घटनाओं पर 49 लेफ्ट लिबरल ने जानबूझकर सांप्रदायिकता का रंग देने का प्रयास किया गया है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता संभालने के बाद से ही ऐसे कई मामले सामने आए हैं. इन मामलों में ये आरोप लगे हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर कथित रूप से सिर्फ इसलिए हमला किया गया है क्योंकि वह या तो अल्पसंख्यक समुदाय से है या फिर उसने कथित रूप से ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से मना कर दिया। हालांकि, इनमें में ज्यादातर मामले झूठे साबित हुए हैं। या यूं कहें इन मामलों को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग दिया गया।
इन मामलों के फर्जीवाड़े का प्रत्यक्ष प्रमाण उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में देखने को मिला, जहां अफवाह फैलाई गयी कि एक 15 वर्षीय मुस्लिम युवक को इसलिए कुछ लोगों ने जलाने की कोशिश की क्योंकि उसने ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से मना कर दिया था। हालांकि, पुलिस की गहन जांच पड़ताल के बाद ये मामला फर्जी निकला था।
यूपी पुलिस फ़ैक्ट चेक ने सोमवार को अपने वे वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से इस पूरे मामले पर एसपी संतोष के सिंह का वीडियो ट्वीट किया था। वीडियो के साथ लिखा गया, ‘हमें ‘जय श्री राम’ न बोलने की वजह से मुस्लिम लड़के को आग लगाने की खबरें मिली है । इस पूरे मामले की जांच की जा चुकी है और यह पाया गया है कि यह कहानी आधारहीन, मनगढ़ंत और द्वेषपूर्ण है। सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’
We have come across news regarding torching of a Muslim boy for not chanting religious slogans in Chandauli. The incident was investigated & found to be baseless,fabricated & malicious. Legal action shal b taken against rumour mongers on #SocialMedia. SP chandauli Santosh k Singh https://t.co/p8EUQKUBGV pic.twitter.com/resZ7QYy6B
— UPPOLICE FACT CHECK (@UPPViralCheck) July 29, 2019
हालांकि, इस अफवाह के फैलते ही लेफ्ट लिबरल मीडिया सक्रिय हो गया और फिर से हिंदुओं को निशाना बनाने का काम शुरू कर दिया। लेफ्ट लिबरल गैंग ने न केवल इस घटना पर सोशल मीडिया पर जमकर अफवाहें फैलाईं, अपितु यूपी पुलिस द्वारा दिये गए तथ्यों को भी स्वीकारने से मना कर दिया।
Muslim teenager set on fire after he refused to chant Jai Shri Ram. The Prime Minister of the country is busy shooting Man versus wild. https://t.co/emLOKkfMWh
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) July 30, 2019
ये शर्मनाक है कि सूडो सेक्युलर मीडिया अपने एजेंडे के लिए न केवल सच्चाई से मुंह मोड़ लेती है अपितु अफवाहें फैलाने के लिए माफी मांगने से भी मना कर देती हैं। वास्तव में इनका एकमात्र उद्देश्य ऐसी भ्रामक खबरें फैलाकर देश में स्थिति को तनावपूर्ण बनाए रखना है।
वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब इस तरह की भ्रामक खबरों के जरिये मीडिया के विशेष वर्ग ने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की हो। इससे पहले भी लेफ्ट लिबरल मीडिया द्वारा आपसी झड़पों को सांप्रदायिक रंग देने का घटिया प्रयास किया गया है। उन्नाव के एक मदरसे के कुछ छात्रों ने दावा किया कि उन्हें कुछ लोगों ने जबरदस्ती ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाने के बाद बुरी तरह पीटा। हालांकि, यूपी पुलिस ने इनके झूठ की धज्जियां उड़ाते हुए बताया कि ये एक आपसी झड़प थी, जिसे जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया गया था।
कानून व्यवस्था के एडीजी पीवी रामशास्त्री एवं पुलिस अफसर प्रवीण कुमार के अनुसार कुछ असामाजिक तत्व सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा, “जब तक यूपी पुलिस है, इन लोगों की चालें कामयाब नहीं होंगी। पुलिस बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई कर रही है”।
ऐसे ही एक मामले में एक ऑटो ड्राईवर आतिब ने आरोप लगाया कि उन्हें कुछ लोगों ने उसे एक शौचालय में इसलिए बंद कर दिया, क्योंकि उसने ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से मना कर दिया था। इस मामले में असामाजिक तत्वों ने हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए यह अफवाहें भी फैलाई कि आतिब की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो चुकी है। हालांकि, यह घटना बाद में झूठी सिद्ध हुई।
स्पष्ट है कि मुख्यधारा की मीडिया ने अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए इन घटनाओं को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया। मुख्यधारा की मीडिया को इस अवसरवादी पत्रकारिता के लिए अनेकों बार सोशल मीडिया पर लताड़ा गया है। यदि ऐसे ही चलता रहा, तो एक दौर ऐसा भी आएगा जब मुख्यधारा की मीडिया की खबरों को कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा।