लोकसभा चुनावों के बाद जुलाई में हमने आपको बताया था कि कैसे अब कुछ राष्ट्रीय पार्टियों से उनके ‘राष्ट्रीय दल’ होने का दर्जा छिन सकता है। इन पार्टियों में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई जैसी पार्टियों का नाम सामने आया था क्योंकि ये पार्टियां चुनाव आयोग द्वारा ‘नेशनल पार्टी’ के स्टेटस पाने के निर्धारित मानकों पर खरी नहीं उतर रही थीं। उस वक्त भारतीय चुनाव आयोग ने इन सभी पार्टियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। अब इन सभी पार्टियों ने चुनाव आयोग से उनका ‘राष्ट्रीय दल’ का दर्जा बरकरार रखने का अनुरोध करते हुए कहा है कि उन्हें आगामी चुनावों में प्रदर्शन बेहतर करने का एक मौका दिया जाना चाहिए। हालांकि, इस संबंध में अगर चुनाव आयोग के नियमों पर नज़र डाली जाए, तो हमें यह पता चलता है कि इन पार्टियों की दलीलों में कोई दम नहीं है, और इसके आसार बेहद ज़्यादा हैं कि इन पार्टियों से इनका नेशनल स्टेटस छिन सकता है।
बता दें कि सीपीआई ,एनसीपी और टीएमसी ने चुनाव आयोग के सामने पेश होकर अपने जवाब में दलील दी है कि पुराने राजनीतिक दल होने के साथ-साथ, राष्ट्रीय राजनीति में उनका अहम योगदान रहा है। इसलिए राष्ट्रीय दल के रूप में उनकी मान्यता का आंकलन पिछले चुनावी प्रदर्शन के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। सीपीआई ने अपने जवाब में यहां तक कहा है कि उनकी पार्टी का देश की स्वतन्त्रता में अहम योगदान रहा है और संविधान को मजबूत करने में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, ऐसे में उनकी पार्टी से नेशनल पार्टी का दर्जा नहीं छीना जाना चाहिए।
बता दें कि इलेक्शन सिंबल्स ऑर्डर 1968 के मुताबिक कोई भी पार्टी नेशनल पार्टी तब मानी जाती है जब वह पार्टी चार या चार से ज़्यादा राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनाव लड़े और उस पार्टी का उन चुनावों में कम से कम 6 प्रतिशत वोट शेयर हो। इसके साथ ही लोकसभा चुनावों में उस पार्टी के कम से कम 4 सांसद चुने जाने चाहिए।
अगर कोई पार्टी इन मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती है, तो उसके पास राष्ट्रीय दल का स्टेटस हासिल करने का एक और विकल्प मौजूद है। अगर किसी पार्टी को तीन या तीन से ज़्यादा राज्यों में चुनाव लड़ने के बाद कुल लोकसभा सीटों में से कम से कम 2 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की हो, तो भी वह पार्टी राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त करने के लिए योग्य होगी। यानि अगर किसी पार्टी को तीन राज्यों से 11 सीटें मिली हों, तो वह पार्टी राष्ट्रीय दल का स्टेटस पाने की हकदार होगी।
इन सब के अलावा अगर किसी पार्टी को कम से कम 4 राज्यों में ‘राज्य पार्टी’ होने का दर्जा मिला हुआ है, तो वह पार्टी भी नेशनल पार्टी का दर्जा पाने के योग्य होगी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद टीएमसी, सीपीआई, बीएसपी और एनसीपी जैसी पार्टियों पर राष्ट्रीय दल का दर्जा खोने का खतरा मंडराना शुरू हो गया था।
उन चुनावों के बाद भी चुनाव आयोग ने इन पार्टियों को ‘कारण-बताओ’ नोटिस जारी किया था। हालांकि, वर्ष 2016 में चुनाव आयोग ने अपने नियमों में बदलाव किया था जिसके बाद इन पार्टियों को थोड़ी राहत मिली थी। नये नियमों के मुताबिक, अगर कोई राष्ट्रीय पार्टी चुनावों के बाद ‘राष्ट्रीय पार्टी’ होने के मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती है, तो भी उससे राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा नहीं छीना जाएगा। हालांकि, अगर अगर वह पार्टी उसके बाद के चुनावों में भी मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती है, तो उस पार्टी से नेशनल पार्टी होने का स्टेटस छीना जाएगा।
अब चूंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन पार्टियों का प्रदर्शन इतना खास नहीं रहा था, तो अब इन पार्टियों से उनका राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा छिन सकता है। नॉर्थ ईस्ट में बुरे प्रदर्शन के बाद एनसीपी से नेशनल पार्टी का टैग छिन सकता है। दूसरी तरफ, टीएमसी अभी सिर्फ बंगाल राज्य तक ही सीमित है, जिसके कारण वह राष्ट्रीय पार्टी के मापदण्डों पर खरा नहीं उतरती। सीपीआई के पास भी वोट शेयर और राज्यों में उपस्थिति की भारी कमी है। यहां आपको इन पार्टियों के लोकसभा सांसदों की संख्या के बारे भी बता देते हैं। टीएमसी के पास इस वक्त लोकसभा में 22 सीट हैं, एनसीपी के पास सिर्फ 5 सीट हैं और सीपीआई के पास तो केवल 2 लोकसभा सीट ही हैं। ऐसे में इन पार्टियों को नेशनल स्टेटस देने का कोई औचित्य नहीं बनता है।
ध्यान देने वाली बात है कि एक राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक ही ‘इलेक्शन सिंबल’ दिया जाता है। इसके साथ ही राष्ट्रीय पार्टियों को सरकारी टेलीविज़न और रेडियो पर फ्री कैंपेन स्लॉट्स दिये जाते हैं, जिसके तहत इन पार्टियों को प्रचार करने में आसानी होती है। राष्ट्रीय पार्टी को नई दिल्ली में अपना ऑफिस खोलने का अधिकार भी प्राप्त होता है। अभी भारत में कुल 8 राष्ट्रीय पार्टियां हैं, जिनमें टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, सीपीआई, सीपीआई(एम) और ‘नेशनल पीपल्स पार्टी’ जैसी पार्टियां शामिल हैं। अब अगर चुनाव आयोग नियमानुसार इन पार्टियों के अनुरोध को स्वीकार नहीं करता है, तो इनसे नेशनल पार्टी होने का टैग छिन सकता है, और देश में सिर्फ 5 राष्ट्रीय पार्टी होने की स्थिति बन सकती है।