लोकसभा में जबरदस्त हार के 3 जुलाई को राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंपा तब उन्होंने अपने इस्तीफे में अप्रत्यक्ष रूप से एक इशारा किया था। उन्होंने लिखा था, “भारत में एक आदत है कि कोई भी शक्तिशाली सत्ता से चिपका रहता है, सत्ता का बलिदान नहीं करता। लेकिन हम एक गहरी वैचारिक लड़ाई और सत्ता की इच्छा का त्याग किए बिना अपने विरोधियों को परास्त नहीं कर पाएंगे।”
इसका मतलब साफ था कि वह अपने परिवार के किसी सदस्य को अध्यक्ष पद पर नहीं बैठने देना चाहते थे। उन्होंने यह स्पष्ट तौर पर भी कहा था और शायद उन्हें इस बात का अंदेशा भी था कि सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी के अध्यक्ष बनते ही पार्टी के ओल्ड गार्डस फिर से अपनी वर्चस्वता कायम करने के लिए सत्ता का खेल आरंभ कर देंगे।
सोनिया गांधी के कार्यकारी अध्यक्ष चुने जाने के बाद ऐसा हुआ भी। कांग्रेस पार्टी में सीनियर गांधी के वफादार माने जाने वाले ओल्ड गार्ड्स सोनिया के अध्यक्ष बनते ही युवा नेताओं के खिलाफ तख़्तापलट कर अपनी धाक जमाने में लग गए है। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस पार्टी में युवा नेता जैसे जोतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा के ऊपर उठने और कांग्रेस को वापस प्रासंगिक बनाने की उम्मीदें बढ़ी थी। कांग्रेस के ही कई नेताओं जैसे अमरिंदर सिंह ने युवा अध्यक्ष बनाने का समर्थन भी किया था। मौजूदगी के बावजूद अपने वजूद की खोज में लगी कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के वफादार अहमद पटेल और गुलाम नवी आजाद ने अपना दांव खेलते हुए सोनिया को फिर से अध्यक्ष बनने के लिए राजी कर लिया। नाटक करने में अनुभवी इन सभी वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी के सामने ऐसे नाटक करते रहे कि उन्हें युवा उत्तराधिकारी की तलाश है लेकिन बड़ी स्मार्टली इन वरिष्ठ नेताओं ने अपना लक्ष्य हासिल भी कर लिया।
अब जब सोनिया गांधी कांग्रेस के शीर्ष पद पर फिर से आसीन हो चुकी हैं तो पार्टी के ओल्ड गार्डस का दौर वापस लौट चुका है। इसका परिणाम कांग्रेस में नई नियुक्तियों पर भी देखने को मिल रहा है। हरियाणा में एक तरफ जहां सोनिया गांधी के पुराने वफ़ादारों में से एक भूपिंदर सिंह हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता नियुक्त किया गया तो वहीं राहुल गांधी द्वारा समर्थित युवा नेता अशोक तंवर जो राज्य की कांग्रेस इकाई के प्रमुख पद पर थे, उन्हें हटा कर 56 वर्षीय नेता और हुड्डा की करीबी कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार कांग्रेस में अभी और संगठनात्मक फेरबदल होने की उम्मीद है जिसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे कई राज्यों में नए प्रमुखों की नियुक्ति की जा सकती है और इन नियुक्तियों में भी सोनिया गांधी के प्रति वफादारी रखने वाले ओल्ड गार्ड्स को प्राथमिकता मिलने की उम्मीद है।
राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद पर रहते कई युवा नेताओं को मौका दिया था लेकिन वह इन राजनीति के पुराने खिलाड़ियों को बाहर नहीं कर पाये। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव जीते थे और मुख्यमंत्री पद के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट राहुल गांधी के पसंदीदा उम्मीदवर थे। लेकिन सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के बाद कमलनाथ और अशोक गहलोत का ही बोल बाला रहा और वे ही मुख्यमंत्री बने। जबकि छत्तीसगढ़ में भी 56 साल के भूपेश बघेल को सीएम पद पर नियुक्त किया गया था।
लोकसभा चुनाव में हार के बात राहुल गांधी ने बड़े ही शातिर तरीके से इन ओल्ड गार्ड्स पर हार का ठीकरा फोड़ना चाहा था, पर इन सभी ने हार की ज़िम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया। हार के बाद राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ ने अपने बेटों को टिकट देने पर जोर दिया हालांकि, वह निजी रूप से इसके पक्ष में नहीं थे। लेकिन फिर भी इन पुराने कद्दावर नेताओं के ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
कांग्रेस पार्टी भारत की ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ के रूप में जानी जाती है और इसलिए हर बार ‘ओल्ड गार्ड्स’ का ही वर्चस्व पार्टी में देखने को मिला है। बता दें कि कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) में 55 सदस्यों में से अधिकांश, सोनिया गांधी के समय के ही पूर्व दिग्गजों का कब्जा है जिसमें सभी नेता 70 वर्ष से भी अधिक उम्र के है। दो दशक पहले, जब सीताराम केसरी के नेतृत्व में पार्टी पतन की ओर बढ़ रही थी तब अहमद पटेल ने ही सोनिया को पार्टी अध्यक्ष बनाने का माहौल बनाया था और केसरी को बाथरूम में बंद करने का प्रकरण सामने आया। इसके बाद अगले 20 वर्षों तक, सोनिया के नेतृत्व में वह बड़ी भूमिका में रहे और अपने पत्ते चलते रहे। अब फिर से अहमद जैसे सभी नेता कांग्रेस में वापस सक्रिय हो चुके हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आज के ‘न्यू इंडिया’ में, जहाँ बीजेपी जैसी पार्टियों ने 70 साल की उम्र को अधिकतम उम्र के रूप में तय कर रखा है वहाँ 70 वर्ष से ऊपर की कार्यकारी समिति के पुराने सदस्यों के साथ कांग्रेस पहले की तरह अपनी भारतीय राजनीति में अपनी स्थिति कितनी मजबूत कर पति है और कितनी सफल हो पाती है।