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वो 3 कारण जिस वजह से हर चुनाव के बाद देश में कमजोर हो रही है भाजपा की पकड़

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
24 December 2019
in समीक्षा
भाजपा

PC: Hindustantimes

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अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों की बात करें तो वर्ष 2019 का साल भाजपा के लिए बुरा ही साबित हुआ है। कहीं जनता ने भाजपा पर भरोसा नहीं जताया, तो कहीं भाजपा के साथियों ने ही भाजपा की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया। इसी की बदौलत भाजपा आज महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता से बाहर हो गयी है, वहीं हरियाणा में वह एक क्षेत्रीय पार्टी जननायक जनता पार्टी के समर्थन से सत्ता में है। हैरानी की बात तो यह है कि इसी वर्ष लोकसभा चुनावों में इसी भारतीय जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की है।

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भाजपा ने इस वर्ष 545 सीटों वाली लोकसभा में 303 सीटें जीतकर इतिहास रचा था। हालांकि, इसके महज़ कुछ महीनों बाद ही हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। इसके मुख्यतः तीन कारण हो सकते हैं:

  1. राज्य के मुद्दे बनाम केंद्र के मुद्दे:

जब केंद्र में भाजपा सरकार सत्ता में आई थी, तो अगस्त में उसने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया था। यह वाकई बहुत बड़ा फैसला था, जिसने देश से लेकर विदेश तक कई दिनों तक सुर्खियां बंटोरी थी। इसके बाद जब भाजपा हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में चुनावों के लिए उतरी, तो भाजपा ने इन्हें बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा ने राज्य के मुद्दों को कम महत्व दिया और उनका सबसे ज़्यादा फोकस राष्ट्रीय मुद्दों पर था। उदाहरण के तौर पर हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही कृषि प्रधान राज्य हैं, और इन राज्यों में किसानों से संबन्धित बड़ी योजनाओं की घोषणा कर भाजपा बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी। इसी तरह झारखंड में भाजपा को राम मंदिर और CAA कानून जैसे मुद्दों का फायदा नहीं मिल सका। भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों तक ही सीमित रही और लोगों ने पार्टी के साथ जुड़ाव महसूस नहीं किया, जिसके कारण विपक्षी पार्टियों को बढ़त हासिल हुई।

  1. राज्यों में कमजोर नेतृत्व:

भाजपा का लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने का और राज्यों के चुनावों में बुरा प्रदर्शन करने का एक कारण यह भी हो सकता है कि केंद्र में तो भाजपा के पास मजबूत नेता उपलब्ध हैं, लेकिन राज्यों में पार्टी के पास मजबूत नेताओं की कमी नज़र आती है। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस को और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को छोड़ दिया जाए तो किसी अन्य राज्य में पार्टी के पास ऐसे नेता नहीं दिखाई देते हैं, जो अपने दम पर पार्टी की नैया पार लगा सकें। देवेन्द्र फडणवीस ने तो अपनी काबिलियत के दम पर राज्य में गठबंधन को बहुमत दिला दी थी, लेकिन हरियाणा में खट्टर और झारखंड में रघुवरदास जैसे कम लोकप्रिय चेहरे थे, जिसकी वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर ने पांच साल राज्य को भ्रष्टाचार रहित सरकार चला कर दिखाई, और राज्य का विकास करने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि, उनकी कमजोर छवि की वजह से उन्हें इस काम का फायदा नहीं मिल सका। केंद्रीय स्तर पर पीएम मोदी यह काम बखूबी करते हैं, लेकिन राज्य के स्तर पर भाजपा के नेता ऐसा करने में असफल रहे हैं।

  1. विपक्ष की रणनीति में बदलाव:

ऐसा लगता है मानो विपक्ष ने अब पीएम मोदी पर निजी हमला करने की रणनीति को छोड़कर राज्य के नेतृत्व को आड़े हाथों लेने की रणनीति का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। इससे पहले कांग्रेस और विपक्ष के नेता पीएम मोदी पर निजी हमले करते थे, जिसको लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम नरेश ने एक बार चिंता भी जताई थी। अगस्त में उन्होंने कहा था “उनके काम के महत्व को स्वीकार नहीं करना और हर समय उन्हें खलनायक की तरह पेश करके कुछ हासिल नहीं होने वाला है। यह वक्त है कि हम मोदी के काम और 2014 से 2019 के बीच उन्होंने जो किया, उसके महत्व को समझें, जिसके कारण वह सत्ता में लौटे। उनके काम की वजह से ही 30 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्ता में उनकी वापसी कराई है”। इसके अलावा हरियाणा के चुनावों में हरियाणा की कांग्रेस इकाई ने केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले का समर्थन किया था। राज्य स्तर पर विपक्ष ने जिस तरह जनता की नब्ज़ को भांपकर पीएम मोदी पर निजी हमला करने से परहेज किया और राज्य के कमजोर नेतृत्व पर हमला बोला, उसने विपक्ष को काफी हद तक मदद पहुंचाई।

इन तीन कारणों की वजह से भाजपा को राज्यों में उस हद तक सफलता नहीं मिली, जैसी सफलता भाजपा को लोकसभा चुनावों में मिली थी। अब आने वाले समय में दिल्ली और बिहार में चुनाव होने वाले हैं, और अगर भाजपा को यहां अपना प्रदर्शन सुधारना है, तो इन सब बिन्दुओं पर आत्मचिंतन करना ही होगा।

Tags: झारखंडझारखंड चुनावभाजपा
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