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जिस गुरु ने हाथ पकड़कर लिखना सिखाया, उन्हीं के मुंह पर कालिख पोत रहा है मनमोहन

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
5 December 2019
in मत
मनमोहन सिंह, पीवी नरसिम्हा राव, कांग्रेस, 1984 दंगा,

(PC: Outlook India)

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मनमोहन सिंह एक ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री हैं जिनके कार्यकाल में सबसे अधिक भ्रष्टाचार हुए लेकिन अभी भी उनकी छवि साफ ही दिखाई जाती है। किसी भी प्रकार की आलोचना को यह कह कर दबा दिया जाता है कि उन्होंने भारत को दिवालिया होने से बचाया था। यही सब बातें कहकर कई भ्रष्टाचारों के बावजूद उन्हें छोड़ दिया जाता है। वे अक्सर मौन व्रत धारण किए रहते हैं इसी वजह से कोई उन पर सवाल नहीं करता।

परंतु इस बार उन्होंने एक ऐसा बयान दिया है जो शायद उनके साफ छवि पर भारी पड़ेगा। उन्होंने न सिर्फ अपनी परिवार भक्ति दिखाई है बल्कि अपने गुरु और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ भी विश्वासघात किया है।

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दरअसल, मनमोहन सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा, दिल्‍ली में जब 84 के सिख दंगे हो रहे थे, गुजराल जी उस समय के गृह मंत्री नरसिम्हा राव के पास गए थे। उन्‍होंने राव से कहा कि स्थिति इतनी गंभीर है कि सरकार के लिए जल्द से जल्द सेना को बुलाना आवश्यक है। अगर राव गुजराल की सलाह मानकर आवश्‍यक कार्रवाई करते तो तो शायद 1984 के नरसंहार से बचा जा सकता था।‘

Ex-PM Manmohan Singh: When the sad event of '84 took place, IK Gujral ji went to the then HM PV Narasimha Rao&told him,situation is so grave that it's necessary for govt to call Army at the earliest. If that advice had been heeded perhaps '84 massacre could've been avoided.(4.12) pic.twitter.com/bQmnktnmem

— ANI (@ANI) December 4, 2019

यह कोई छोटा मोटा बयान नहीं है। यह एक पूर्वप्रधानमंत्री के तरफ से आया है और यह पीवी नरसिम्हा राव के ऊपर 1984 के दंगो को मढ़ने का एक स्पष्ट प्रयास है। क्योंकि इस बयान में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बात ही नहीं की गयी है तो यह भी स्पष्ट दिख रहा है कि मनमोहन सिंह राजीव गांधी की भूमिका को पूरी तरह से भुला रहे हैं या जानबूझ कर यह आरोप नरसिम्हा राव के सिर मढ़ना चाहते हैं।

मनमोहन सिंह जिस प्रकार के विद्वान हैं उससे तो यह नहीं लगता है कि उनकी याददास्त इनती कमजोर होगी। इसका मतलब यह है कि मनमोहन सिंह ने गांधी परिवार की वफादारी करते हुए अपने बयान से 2 निशाने साधने की कोशिश की है। पहला यह कि 1984 के दंगों में राजीव गांधी का कोई हाथ नहीं था और दूसरा यह कि तत्कालीन गृह मंत्री नरसिम्हा राव दंगों को रोक सकते थे, इसलिए दंगों के जिम्मेदार वे हैं। स्पष्ट तौर पर नरसिम्हा राव पर यह आरोप लगाने के बाद मनमोहन सिंह ने अपने गुरु के साथ विश्वास घात किया है, जिन्होंने उन्हें वित्त मंत्री बनाया था। आइये जरा एक नजर डालते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कितना सच बोल रहे हैं।

1984 के दंगों में राजीव गांधी की भूमिका:

01 नवंबर 1984 के दिन सुबह से ही दिल्ली में सिखों के कत्ले-आम की शुरुआत हो चुकी थी, जो 03 नवंबर 1984 तक बिना रोक-टोक चलती रही। इस कत्ले-आम में हज़ारों सिखों को बेरहमी से मारा गया था। इसके बाद जो हुआ वह भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय था।

ममोहन सिंह ने यह आरोप लगाया है कि उस वक्त के गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अगर IK Gujral की बात मानी होती तो यह दंगा नहीं होता। शायद मनमोहन सिंह यह भूल रहे है कि उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे और बिना उनके इशारे के बिना कुछ भी संभव नहीं था। इस बात का खुलासा करते हुए विनय सत्पथी ने अपनी किताब Half Lion में यह बताया है कि कैसे एक फोन से गृह मंत्री को अपना काम नहीं करने दिया।

मनमोहन सिंह, नरसिम्हा राव

उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि सुबह 6 बजे ही गृह मंत्री के ऑफिस में एक कांग्रेस के नेता जिन्हें राजीव गांधी का करीबी माना जाता था, उनका का फोन आता है और यह आदेश मिलता है कि इन दंगों के लिए एक कोर्डिनेटेड response की आवश्यकता है इसलिए सभी दंगों की सभी खबरें अब से सीधे PMO को दी जाएंगी।

इसके बाद नरसिम्हा राव राम जेठमलानी से भी मिलते हैं और वह भी ये नोटिस करते हैं कि गृह मंत्री किसी भी पुलिस के संपर्क में नहीं थे। इससे स्पष्ट था कि जब PMO ने स्वयं हस्तक्षेप किया है तो उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। इस किताब के अनुसार अगले दिन लगभग 2733 लोगों के मारने या जलाने की खबर आई थी। इससे यह स्पष्ट ही होता है कि इन दंगों में राजीव गांधी ने खुद कमान संभाली हुई थी।

यही नहीं 15 नवंबर 1984 के दिन एक सार्वजनिक सभा में राजीव गाँधी ने सिख कत्ले-आम पर कहा था कि “जब एक बड़ा पेड़ ज़मीन पर गिरता है, तब धरती थोड़ी हिलती है।” इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका इशारा इन्दिरा गांधी की मौत के तरफ था। जैसे मानो वो इशारा कर रहें हो कि इन्दिरा गांधी कि हत्या के बाद भड़के दंगे जायज थे।

इस मामले में कई जांच बैठी लेकिन किसी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किसने यह दंगा कराया था। इसका कारण भी था कि उसके बाद भी सरकार कांग्रेस की ही थी।

पीवी नरसिम्हा राव पर जब सवाल दागे जा रहे थे तब भी वह इस सच्चाई को बता सकते थे और राजीव गांधी पर आरोप लगा सकते थे लेकिन उन्होंने भी परिवार की चापलूसी करते हुए यह बात किसी को नहीं बताई।

इन दंगों की जांच के लिए एक सिटीज़न कमेटी बनी थी और इसमें कुछ बातों को सामने लाया भी गया था। भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में श्री एस.एम सीकरी और बाकी सारे बुद्धिजीवियों ने सिख कत्लेआम के दौरान सरकार के अधीन दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली पुलिस, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता, दिल्ली के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर और पूरी सरकारी व्यवस्था को ही आपराधिक कठघरे में खड़ा कर दिया था।

सिटीज़न कमीशन 03 नवंबर 1984 का हवाला देकर लिखती है कि इस दिन श्रीमती इंदिरा गांधी का दाह संस्कार करना था और इससे ठीक पहले दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर को छुट्टी पर भेज दिया गया। अब गृह सचिव को इस पद की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई थी। इंदिरा गांधी के दाह संस्कार के संबंध में फौज और पुलिस को विदेशी मेहमानों की सुरक्षा के इंतज़ाम में लगाया गया। इन सभी घटनाओं से पता चल जाता है कि यह दंगा कितने सुनयोजित तरीके से करवाया गया था।

धारा 144 लागू करके कर्फ्यू के दौरान किस तरह भीड़ सिख समुदाय के घरों को चुन-चुन कर निशाना बनाने में कामयाब हो रही थी यह एक बड़ा सवाल है। जहां भी हिंसा हुई वहां किसी भी तरह के पुलिस प्रशासन की उपस्थिति का कोई ब्यौरा नहीं मिलता। संजय सूरी की 1984 के संदर्भ में लिखी गई किताब में भी कई सच सामने आते हैं। इस किताब में उन्होंने यह बताया है कि कांग्रेस के एक बड़े नेता पुलिस थाने में पुलिस अफसर की मौजूदगी में सिख कत्ले-आम में लूट के आरोप में पकड़े गए लोगों की पैरवी करते हुए दिखाई दे रहे थे।

कई चश्मदीद गवाहों ने पालम कॉलोनी, तिलक विहार, राज नगर जैसे इलाकों में हुए दंगों में सज्जन कुमार, बलवान खोखर, प्रताप सिंह, महा सिंह और मोहिंदर सिंह की भूमिकाओं के बारे में गवाही दी है। सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर सिख-विरोधी दंगों का चेहरा रहे हैं। इसके अलावा संजय सूरी की 1984 दी एंटी-सिख वॉयलेंस एंड आफ़्टर (किताब) में मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ की उन दिनों संदिग्ध और संभवतः आपराधिक भूमिका पर विस्तार से बताया है। वहीं सज्जन कुमार के केस में अहम गवाह रही श्रीमती जगदीश कौर ने फिल्म जगत के बड़े अभिनेता अमिताभ बच्चन पर भी आरोप लगाया कि वह टीवी पर “खून के बदले खून” के नारे लगाते हुए दिखे थे।

इस तरह से ममोहन सिंह का यह बयान देना और सभी आरोप पीवी नरसिम्हा पर मढ़ देना उनकी मानसिकता को दिखाता है कि कैसे वे अभी भी गांधी परिवार की चापलूसी से निकल नहीं पाए हैं। सोनिया गांधी के हाथों में कांग्रेस का कमान जाने के बाद से पीवी नरसिम्हा राव को एक बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कांग्रेस ने कभी भी उन्हें वह इज्जत नहीं दी जिसके वो असल हकदार थे। यहाँ तक कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को भी कांग्रेस मुख्यालय में नहीं ले जाने दिया गया।

अब तो यह आप समझ ही गए होंगे कि यह किसके इशारे पर हुआ था। अब इस तरह से मनमोहन सिंह का भी अपने राजनीतिक गुरु को धोखा देकर दोषी बनाना, उनकी दाशता को ही दिखाता है। यह पीवी नरसिम्हा राव ही थे जो मनमोहन सिंह को राजनीति में लाए और अर्थशास्त्री IP Patel द्वारा ठुकराये जाने के बाद उन्हें वित मंत्री बना दिया। यह पीवी नरसिम्हा ही थे जिन्होंने भारी विरोध के बावजूद मनमोहन सिंह को आर्थिक नीति पर फैसले लेने की खुली छूट दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि देश में परिवर्तन आया और देश साम्यवाद की जकड़ से छूट कर उदारवाद की राह पर चल पड़ा।

आज किसी भी कांग्रेसी नेता के मन में पीवी नरसिम्हा राव के लिए सम्मान नहीं रहा। मनमोहन सिंह ही वो आखिरी नेता थे जिनसे यह उम्मीद लगाई गई थी कि कम से कम वो पीवी नरसिम्हा राव की विरासत का मान रखेंगे लेकिन इस बयान से उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु के साथ विश्वासघात किया है। गांधी परिवार की जी हुज़ूरी करते करते इस बयान से उन्होंने शायद अपने ही अमर शब्दों को और अमर कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा। अब नरसिम्हा राव पर इस बयान के बाद अवश्य ही इतिहास उनके साथ न्याय करेगा।

इतिहास इसलिए भी अब मनमोहन सिंह को याद करेगा क्योंकि उन्होंने गांधी परिवार की चाटूकारिता के लिए अपने राजनीतिक गुरू व भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री पर 1984 के दंगे का आरोप लगाया, जोकि जगजाहिर है कि इस दंगे को किस परिवार ने और क्यों अजांम दिया था।

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